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*जप चर्चा* *दिनांक 04 -05 -2022* (धर्मराज प्रभु द्वारा ) *हरे कृष्ण !* *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥* *श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले। स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्॥* *वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च। श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथान्वितं तं सजीवम्॥* *साद्वैतं सावधूतं परिजनसहितं कृष्णचैतन्यदेवं। श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिताश्रीविशाखान्वितांश्च।।* *हे कृष्ण करुणासिन्धु दीनबंधु जगत्पते। गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्त:।।* *तप्तकाञ्चनगौरांगि राधे वृन्दावनेश्वरि। वृषभानुसते देवि प्रणमामि हरिप्रिये॥* *वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।* *जय ! श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानन्द । श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द॥* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥* हरे कृष्ण ! सर्वप्रथम में गुरु महाराज के चरणो में दंडवत प्रणाम करता हूं और उपस्थित समस्त वैष्णव भक्तों को प्रणाम करता हूं। आप सभी का एक बार फिर स्वागत और आज का जो विषय है वैसे तो इसकी बहुत जरूरत है। प्रतिदिन हर एक के लिए डांसिंग अर्थात नृत्य करना कितना जरूरी है और कितना आवश्यक है हमारे भक्तिमय जीवन के लिए और सभी जानते हैं कि चैतन्य महाप्रभु ने जो हमें तीन विशेष तथ्य दिए हैं, जो तत्व बहुत ही प्रसिद्ध हैं, बहुत महत्वपूर्ण भी हैं। साथ ही साथ वह अपने भक्तिमय जीवन में उतारना बहुत महत्वपूर्ण है और बहुत आसान भी है। चैटिंग, डांसिंग एंड फिस्टिंग जिससे कि हम क्या कर सकते हैं, हम हर समय भगवान के कीर्तन में उनके लिए नृत्य करना है उनके लिए प्रसाद बनाना है। महाप्रभु चाहते थे उनको पता था कि कलयुग के जीवों को सबसे ज्यादा क्या अच्छा लगता है, उनको नाचना अच्छा लगता है, उनको खाना भी अच्छा लगता है, उनको यह तीनों ही चीजें अच्छी लगती हैं इसीलिए महाप्रभु ने कहा कि यदि उनकी यह तीनों ही चीज हैं भक्तिमय जीवन से जुड़ जाएं तो क्या होगा, उनके लिए यह अच्छा हो जाएगा इसीलिए महाप्रभु ने क्या किया तीनों को ऐसे भक्ति में डाल दिया जिससे कि सभी लोग इसका लाभ उठाकर भगवान की प्राप्ति आसानी से कर सकें। कलयुग में यह उद्देश्य था उनका और इसीलिए प्रतिदिन जो हम मंगला आरती में गाते हैं। *महाप्रभोः कीर्तन नृत्यगीत वादित्रमाद्यान् मनसो रसेन। रोमांच कंपाश्रुतरंग भाजो वंदे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्।।* श्री गुरुवाष्टक -2 अर्थ- श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन में कीर्तन, नृत्य, गायन तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए जो भावविभोर हो उठते हैं, तथा अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन करते हुए जो अश्रुपात, कम्पन तथा रोमांञ्चादि भावों का अनुभव करते हैं, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। महाप्रभु के नृत्य कीर्तन और गीत में जहां पर बहुत सारे वाद्य यंत्र बजाए जा रहे हो, उसको देख कर जो आध्यात्मिक गुरु हैं वह बहुत प्रसन्न होते हैं। रोमांच होता है, अश्रु बहते हैं और वे पुलकित होते हैं, इस प्रकार से और भी भाव प्रकट होते हैं। चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन और नृत्य को देखकर और चैतन्य महाप्रभु ने हमें यह प्रदान किया है। नृत्य की विधि जो की ऐसा हो जाता है कि हम नाचना चाहते हैं लेकिन कभी-कभी थोड़ा बहाना भी बन जाता है ऐसी कहावत है नाच ना आवे आंगन टेढ़ा कहते हैं। कभी-कभी हम नाच नहीं सकते कारण अलग अलग हो सकत है किंतु फिर भी अगर हम स्वस्थ हैं तंदुरुस्त हैं तो भगवान के लिए नृत्य करना बहुत जरूरी है। चैतन्य महाप्रभु तो स्वयं ही इतना नृत्य करते थे यहां तक कि जब हरिदास ठाकुर ने अपना देह छोड़ा तो उनके देह को लेकर उनको उठा कर चैतन्य महाप्रभु ने नृत्य किया था। *नमामिहरिदासंतंचैतन् : त: त -प्रभुमसंस्थाम। आपियान-मूर्तिं स्वंकेकत्वानानर्तयः।।* (चैतन्य चरितामृत अन्त्य 11.1) अनुवाद - मैं हरिदास ठाकुर और उनके गुरु श्रीचैतन्य महाप्रभु को अपना सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूं, जिन्होंने हरिदास ठाकुर के शरीर को उनकी गोद में लेकर नृत्य किया था। चैतन्य महाप्रभु ने हरिदास ठाकुर के दिव्य शरीर को उठाकर क्या किया, नृत्य करने लगे सभी जगह। इससे हम समझ सकते हैं कि नृत्य करना हर एक स्थिति में मतलब किसी की मृत्यु हुई है या कोई जीवित है भगवान के लिए जो नृत्य है वह कभी भी रोका नहीं जा सकता है और हमारा कीर्तन केवल नृत्य के लिए ही सीमित नहीं होना चाहिए। केवल हम नाच रहे हैं और हरी नाम का उच्चारण नहीं कर रहे हैं तो फिर वह नृत्य क्या हो जाएगा। बाहर के जो लोग नृत्य करते हैं उसका जो उद्देश्य है, क्या है? इन्द्रियतृप्ति और हमारे भक्ति में जो भाव होता है उस भावना को भी भगवान को अर्पित करने का एक साधन है नृत्य और भगवान इससे बड़े प्रसन्न हो जाते हैं और हर क्षण इस नृत्य में हमारे जो हाथ हैं, यह हमारे पैर हैं हमारा पूरा शरीर है जितना भी हम इसका जो उपयोग करते हैं तो क्या हो रहा है। हम इसको भी भगवान के चरणों में अर्पण कर रहे हैं। इस नृत्य के द्वारा और हमारी भक्ति में भावना को प्रदर्शित करने के लिए यह क्या है यह बहुत ही आसान तरीका है नृत्य करना और चैतन्य महाप्रभु अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा कर नाचते थे। दोनों हाथ ऊपर उठाकर मतलब प्रार्थना करना कहना कि हे भगवान मैं आपके प्रति शरणागत हूं। जैसे द्रौपदी भी भरी सभा में जब उसका वस्त्र हरण हो रहा था तभी उसने दोनों हाथ ऊपर उठाए हुए थे दोनों हाथ ऊपर उठाने का मतलब वह भगवान से प्रार्थना कर रही थी तब भगवान ने बड़े प्रसन्न होकर उसकी रक्षा की क्योंकि जब हम भी दोनों हाथ ऊपर उठाकर नृत्य करते हैं तो भगवान तुरंत वहां आ जाते हैं जैसे भगवान कहते हैं। नाहम तिष्ठामी वैकुंठे योगिनाम हृदयेसु वा। तत्र तिष्ठामी नारद यत्र गायंती मद-भक्त: ।। "अनुवाद- मैं वैकुंठ में नहीं हूं और नही योगियों के दिलों में मैं वहीं रहता हूं जहां मेरे भक्त मेरी गतिविधियों का महिमा मंडन करते हैं।" यह समझा जाना चाहिए कि भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व अपने भक्तों की संगति नहीं छोड़ते हैं। हे नारद मुझे वैकुंठ में ढूंढना भी मुश्किल हो जाएगा, योगियों के हृदय में भी ढूंढना मुश्किल है, लेकिन मैं वहां जरूर रहूंगा। जहां मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन नृत्य करेंगे वहां मैं जरूर रहूंगा वह मेरा पता है "दिस इज माय एड्रेस" वह वहां पर तुम मिल सकते हो। यह इतना विशेष है भगवान का यह जो कीर्तन है, नृत्य है, महाप्रभु स्वयं भी करते थे। कीर्तन कभी-कभी ऐसा भी होता था कि कृष्ण जब अपनी रासलीला करते थे तो पूरे ब्रह्मा की रात को एक रात में कन्वर्ट कर देते थे, कितना भी लंबा कर सकते थे । इसी प्रकार श्रीवास आंगन में भी कीर्तन होता था, नृत्य होता था ब्रह्मा जी की रात में भी कभी-कभी क्या होता था कि इतना लंबा कीर्तन करते रहते थे किसी को पता नहीं चलता था की सारी रात हम ने कीर्तन किया। किंतु महाप्रभु क्या करते थे कि ब्रह्मा जी की पूरी रात को बढ़ा सकते थे और जैसे गुरु महाराज का जब कीर्तन होता है तो कोई बैठ भी नहीं सकता तुरंत उसको अंदर से प्रेरणा मिलती है कि नाचना है बस अभी बैठना नहीं है। एक बार मुझे स्मरण है कि मैं पुणे के मंदिर में गया था और गुरु महाराज जी वहां पर आए थे और एक भक्त था उसका पैर में कुछ फ्रैक्चर हुआ था इसलिए वह एक चेयर पर बैठा हुआ था और मंदिर के ब्रह्मचारी शायद न्यू ब्रह्मचारी था और वहां पर बैठा था चेयर पर और जब गुरु महाराज का कीर्तन शुरू हुआ तो उसकी भी इच्छा हो रही थी कि वह नाचे, सारे भक्त भी नाच रहे थे और सभी भक्त उस को मना करने लगे कि नहीं अभी मत उठाओ, नहीं तो और भी पैर टूट जाएगा उसको कुर्सी पर जबरदस्ती बैठा रहे थे। किंतु फिर भी वह उनके साथ नाचने का प्रयास कर रहा है, वह कहने लगा कुछ भी होने दो महाराज जी नाच रहे हैं और मैं नहीं नाच रहा यह कैसे हो सकता है और गुरु महाराज स्वयं भी, आप सभी गुरु महाराज के मुख से सुन चुके हो जैसा कि जब गुरु महाराज ने पहली बार हरे कृष्ण फेस्टिवल अटेंड किया वहां के भक्तों को देखा, बाहर के भक्तों को, उनको देखकर वे प्रसन्न हुए और उसके बाद अपने रूम में जाकर अंदर से दरवाजा बंद करके वह जिस प्रकार से भक्त नाच रहे थे गा रहे थे उसी प्रकार से गुरु महाराज भी अपने कमरे में बंद होकर नृत्य कर रहे थे गा रहे थे। इसलिए इस प्रकार से हम समझ सकते हैं कि नृत्य और कीर्तन कितना अधिक महत्वपूर्ण है हमारे भक्तिमय जीवन में प्रगति करने के लिए। वैसे द्वारका माहत्म्य में में भी वर्णन है जैसे कि बताया जाता है कि स्वयं भगवान भी बताते हैं कि एक बार नारद वहां पर जो मेरे नामों का कीर्तन करते हुए नृत्य करता है उसका क्या होता है एक उदाहरण देते हैं। जिस तरह एक वृक्ष होता है और उस वृक्ष पर बहुत सारे पक्षी बैठे हुए हैं यदि हम वृक्ष को हिला दे तो क्या होगा कि सभी पक्षी उड़ जाते हैं ठीक इसी प्रकार जब हम नृत्य करते हैं भगवान के नामों का कीर्तन करते हैं तो क्या होता है हमें पता नहीं होता है कि कितने जन्म जन्म के जो पाप हैं जो हमारे अंदर मौजूद है वह पाप क्या होते हैं तुरंत ही नष्ट हो जाते हैं। इतनी ताकत है भगवान के नाम का नृत्य और कीर्तन करने में है। इसी प्रकार एक बार गुरु महाराज जी बता रहे थे की संगीत में नृत्य होना आवश्यक है भक्ति में , यदि ऐसा हो, तभी क्या हो जाता है तभी वह असली संगीत है तो बिना नृत्य के संगीत नहीं होता है। इसीलिए श्रीलरूप गोस्वामी भक्तिरसामृतसिन्दु में कहते हैं कि हमें भगवान के समक्ष जाकर नृत्य करना यह विशेष प्रकार से भक्ति का एक अंग है। ऐसा नहीं है कि हम केवल लोगों को दिखाने के लिए नाच रहे हैं हम क्या करते हैं हम केवल भगवान की प्रसन्नता के लिए नृत्य करते हैं और भगवान को प्रसन्न करने के लिए नृत्य करेंगे तो क्या हो जाएगा तब लोग देखेंगे कि कितनी गंभीरता से कितने प्रेम से यह नृत्य कर रहे हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिए इसको देख कर लोग आकृष्ट हो जाएंगे इस प्रकार चैतन्य महाप्रभु स्वयं अपने अनुयायियों के साथ जब नवदीप में कीर्तन करते थे और नृत्य करते थे तब लोग सोचते थे कि यह क्या हो रहा है। जो लोग एक बार नृत्य में अंदर जाते थे फिर बाहर नहीं आ पाते थे इस प्रकार का चक्रव्यू होता था, कुछ लोगों को चक्रव्यू के अंदर जाना पड़ता था महाप्रभु का चक्रव्यू, उसी प्रकार जब महाप्रभु नृत्य करते थे तब लोग केवल देखने के लिए ही जाते थे बाहर से, किन्तु बाहर नहीं आ पाते थे अंदर जाने के बाद और नृत्य करना शुरू कर देते थे। कीर्तन के साथ, विशेष प्रकार से एक चाबी है हमारे पास जो कीर्तन के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। स्मरण हो रहा है मुझे यहां पंढरपुर में लगभग 15 साल पहले की बात है, मेरे पैर का एक्सीडेंट हुआ था फ्रैक्चर हुआ था और उस समय मैं चल नहीं पा रहा था। फिर गुरु महाराज ने देखा उनको तो पता ही था और वह जानते थे कि मैं हमेशा नृत्य करता हूं, गुरु महाराज के कीर्तन में , गुरु महाराज ने पूछा मुझसे कि कार में बैठ गया है और फिर मैं प्रणाम भी नहीं कर पाता था हाथ जोड़कर केवल करता था। गुरु महाराज ने कहा की धर्मराज तुमने नृत्य नहीं किया आज ? मैंने कहा गुरु महाराज अंदर से इच्छा है किंतु यदि आपकी कृपा हो तो मैं कर सकता हूं ऐसा कहा और पंढरपुर से अरवाडे जब पहुंच गया वहां एक प्रोग्राम था। वहां पर मुझसे कहा लोगों ने कि अरे अरे तुम क्यों नाच रहे हो तो मैंने भी कहा कि मुझे गुरु महाराज का आशीर्वाद मिल गया है अभी मैं नाच सकता हूं और तब से नाचना मेरा जारी रहा। इसीलिए गुरु महाराज की वाणी में इतनी शक्ति है और यदि हम उसका लाभ उठाएंगे तो अच्छा है और नहीं उठाएंगे तो यह जो अभी केवल नए लोगों के लिए डांस है जैसा उनको नए स्टेप्स दिखाएंगे कि ऐसा करो वैसे करो, ऐसा नहीं, वैसे तो स्वामी स्टेप्स सभी के लिए हैं जो प्रभुपाद जी ने प्रारंभिक तौर पर समझाया था मतलब केवल पैर को ऐसे करो और ऐसे करो बस सिंपल लेकिन बाद में हम लोगों ने अलग प्रकार के विशेष तरीके भी निकाले हैं अब जब आप पंढरपुर में आओगे, यहां पर दोनों हाथ ऐसे करके भक्त नाचते हैं बहुत आनंद आता है करने में और ऐसे श्रील प्रभुपाद कहा करते थे, और एक पत्र में भी लिखा है कीर्तन हो रहा है केवल दूर खड़े होकर देखने के लिए नहीं हो रहा है हमें क्या करना चाहिए हमें भी इसके अंदर प्रवेश करके नृत्य करना चाहिए भगवान की प्रसन्नता के लिए और श्रील प्रभुपाद चैतन्य चरित अमृत के एक श्लोक के तात्पर्य में बताते हैं कि वास्तव में लोग कीर्तन और नृत्य का अर्थ नहीं समझ रहे हैं । इसी प्रकार श्रीनिवास आचार्य ने जो लिखा है षड् गोस्वामी अष्टकम में उसके अनुसार *कृष्णोत्कीर्तन-गण-नर्तन-परौप्रेमामृतंभो-निधि धीरधिरा-जन-प्रियौप्रिया-करौनिर्मत्सराउपूजितौ।श्री-चैतन्य-कृपा-भरौभुवीभुवोभारवाहंतराकौ वंदेरूपा-सनातनौरघु-यवागोपालको।।* (षड गोस्वामीअष्टकं ) -अनुवाद (1) मैं छह गोस्वामी, अर्थात् श्रीरूपगोस्वामी, श्रीसनातनगोस्वामी, श्रीरघुनाथभट्टगोस्वामी, श्रीरघुनाथदासगोस्वामी, श्रीजीवगोस्वामी, औरश्रीगोपालभट्टगोस्वामी, जो हमेशा पवित्र जप में लगे रहते हैं, उनको अपना सम्मानपूर्वक प्रणाम करता हूं। कृष्ण का नाम और नृत्य, वे भगवान के प्रेम के सागर की तरह हैं और वे कोमल और बदमाश दोनों के बीच लोकप्रिय हैं क्योंकि वे किसी से ईर्ष्या नहीं करते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, वे सभी के लिए सुखद होते हैं और वे पूरी तरह से भगवान चैतन्य से आशीषित होते हैं। इस प्रकार वे भौतिक ब्रह्मांड में सभी बद्ध आत्माओं को वितरित करने के लिए मिशनरी गतिविधियों में लगे हुए हैं। कीर्तन मतलब केवल गा नहीं रहे, नाच भी रहे हैं और हम सोचते हैं कि यह शायद प्रभुपाद जी ने शुरू किया होगा। षड गोस्वामी लोग इतने सीनियर थे वह नृत्य गान करने के कारण, लोग उनके प्रति आकर्षित होते थे और उनका नृत्य केवल दिखावे के लिए नहीं होता था। चैतन्य महाप्रभु जब कीर्तन करते थे तब वक्रेश्वर पंडित, एक बार वह रिकॉर्ड हो गया तब गिनीज बुक जैसा कोई रिकॉर्ड नहीं होता था और यदि होता तो टूट चुका होता, पहले ही लगातार 72 घंटे कीर्तन और नृत्य हो रहा था वहां पर इतने बड़े-बड़े आचार्य और वैष्णव सभी को महाप्रभु ने कहा कि नृत्य करो, जबकि प्रभुपाद जी की 72 वर्ष से भी ज्यादा उम्र थी तब भी स्वयं प्रभुपाद जी भी नृत्य करते थे, गाते थे जिससे सबको प्रेरणा मिलती थी। बताते भी हैं चैतन्य महाप्रभु पार्षद लीला में स्वयं नृत्य करके भी दिखाते हैं और षड गोस्वामियों ने भी इसका अनुकरण किया और फिर बाद में हम जो कृष्णभावनामृत आंदोलन है इसमें भी क्या करते हैं, इसमें भी सिखाया है नृत्य करो, कीर्तन करो और हम उसको भी कर रहे हैं और वास्तव में यह जो कीर्तन नृत्य की जो सेवा है प्रभुपाद जी बताते हैं यह कोई भौतिक जगत का नहीं है यह आध्यात्मिक जगत से ही यहां प्रकट हुआ है। यह जो संकीर्तन है यह दिख रहा है कि हम यहां नाच रहे हैं लेकिन यह क्या है कि यहां की विधि नहीं है, यह तो आध्यात्मिक जगत से आया हुआ है जैसे यह वृंदावन नवदीप या मायापुर है, वहां गोलोक में जो नवद्वीप मायापुर या वृंदावन है हर समय वहां महाप्रभु नित्यानंद गौर गदाधर श्रीवासाचार्य अद्वैत आचार्य वह सभी हर समय नृत्य करते रहते हैं। मतलब वहां से जब यहां लेकर के आए हैं तो यह बड़ी ही विशेष कृपा उनकी हम सब पर रही है। इसीलिए यदि हम उसको अपने जीवन में अपनाते हैं और उसको उतारते हैं हम भी स्वयं नाचते हैं तब क्या होता है, विशेष रूप से हम भगवान को प्रसन्न कर पाएंगे और प्रभुपाद जी बताते हैं। हम जितना अधिक मात्रा में कीर्तन और नृत्य में अपने आप को उस में प्रविष्ट करेंगे उससे क्या होगा कि और ज्यादा अधिक हमको जो कृष्ण भावनामृत का अमृत है उसका आस्वादन करना हमारे लिए बहुत आसान हो जाएगा और फिर एक तो आपको यह नेक्टर ऑफ़ डिवोशन में भी बताया है रूप गोस्वामी जी भी बताते हैं, क्या है कि महाप्रभु का कीर्तन वगैरा है लेकिन कृष्ण और बलराम भी कुछ कम नहीं है नाचने में, क्योंकि वही तो है ना महाप्रभु, कोई अलग थोड़ी ना है अर्थात रास होता है वह तो है ही किंतु यह अलग से भी होता है। यहां पर षड गोस्वामी गण बताते हैं कभी-कभी क्या होता है कि कृष्ण अपने ग्वाल बालों के साथ उसमें बलराम जी भी रहते हैं जब कोई उत्सव होता है तब वह पूरे नृत्य करने में कृष्ण बलराम अपने संग युवा साथियों के साथ बहुत नृत्य करते हैं और फिर यहां तक कि जो उनके गले में फूलों की माला है वह और जितना भी श्रृंगार है वह सब कुछ इतना हिलने लगता है उनका पीतांबर वगैरह और सारे जो गोपालक हैं ग्वाल बाल वह भी पूर्ण रूप से पसीने पसीने हो जाते हैं और फिर उनका पूरा शरीर भीग जाता है। कहते हैं कि यह भी क्या है उनका यह जो भीगना है या जो उनकी थकान है वह भी क्या है, वह भी एक विशेष लक्षण है उनका थकान होना फिर यह पूरा पसीना पसीना होना यह विशेष लक्षण है हमें आकर्षित करने का, इसीलिए भगवान यदि अभी पसीने में भीग गए, उससे क्या हो रहा है क्या उनके शरीर से बदबू आ रहा है ? नहीं, उसमें भी सुगंध है उसकी भी महक होती है यह बहुत ही विशेष बात है। भगवान जो करते हैं नाचते हैं उनका इतना सारा जो अश्रु प्रवाहित होता था और पसीना भी जो लोगों को स्पर्श होता था, क्या होता था उससे संसारा अलग महक या सुगंध हो जाती थी गुरु महाराज एक बार बता रहे थे कि चैतन्य महाप्रभु जब भ्रमण करते थे अलग-अलग स्थानों में विशेष रूप से साउथ इंडिया में जब अलग-अलग स्थानों से आए थे तो वहां उनके पहुंचते ही हजारों लोग वहां पहुंच जाते थे उनको कोई मैसेज नहीं दिया जाता था व्हाट्सएप वगैरह कुछ भी नहीं था। लेकिन फिर भी जब भगवान सबके हृदय में रहते हैं उन सब को पता लग जाता था, उनके शरीर की जो सुगंध थी उस सुगंध से भी पता लग जाता था अपनी महाप्रभु की जो सुगंध होती थी उस से आकर्षित हो जाते थे। जिस प्रकार हिरण होता है ना वह देखता है कि कस्तूरी कहां है कस्तूरी कहां है इसीप्रकार महाप्रभु के शरीर से वे सभी आकर्षित होते थे उनकी आंखों से आंसू बह रहे हैं उसका सुगंध, महाप्रभु का नृत्य सभी को बहुत आकर्षित करता था, सभी उनके पीछे जाते थे उस नृत्य के कारण और श्रील प्रभुपाद बताते हैं जिस प्रकार एक विशेष वर्णन करते हैं। जब कृष्ण के भक्त नृत्य करते हैं तो क्या होता है? इस पृथ्वी पर जो अमंगल होता है उसका नाश कर देते हैं और अमंगल को मंगल बना देते हैं और नृत्य के समय उनकी जो अलग अलग भाव भंगीमय है जो भी प्रकट कर रहे हैं और अपने विशेष आंखों के द्वारा वे सभी पर दृष्टिपात कर रहे हैं। इससे भी क्या हो जाता है कि पूरी दसों दिशाओं का जो अमंगल है वह भी नष्ट हो जाता है। यह नृत्य का प्रभाव है और जब वह अपने दोनों हाथ उठाकर नृत्य करते हैं तो उससे क्या होता है, जो अलग-अलग ग्रह हैं देवताओं के भी ग्रह लोक हैं वहां का भी जो अमंगल है वह भी नष्ट हो जाता है। देखिए भक्त जब नृत्य और कीर्तन करता है तो केवल वहां के आसपास के पेड़ पौधों को ही लाभ होता है ऐसा नहीं है या केवल इसी धरातल का ही लाभ होता है ऐसा नहीं है यह पृथ्वी के परे भी जो अलग-अलग ग्रह हैं वहां पर भी इसका प्रभाव पहुंच जाता है इसीलिए यह जो नृत्य करना या कीर्तन करना यह केवल किसी व्यक्ति के लिए ही या अन्य के लिए ही है। ऐसा नहीं है यह चाहे कोई नया हो या पुराना हो सभी के लिए है जब राजा प्रताप रुद्र ने देखा की अलग-अलग टोलियां बनी थी जगन्नाथ रथ यात्रा में और सभी दर्शन कर रहे थे बहुत ही आनंद से दर्शन कर रहे थे और राजा प्रताप रूद्र पर तो विशेष कृपा हो रही थी वहां, राजा प्रताप रूद्र बहुत ही विनम्रता से वहां झाड़ू लगा रहे थे रथ के सामने तब महाप्रभु बड़े प्रसन्न हुए थे और देखा भी था उनको मिले भी थे और जब देखा कि सातों टोलियों में कीर्तन और नृत्य है बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि कौन सी टोली में कौन-कौन नृत्य कर रहा है या कीर्तन कर रहा है कौन-कौन जा रहा है और महाप्रभु एक टोली में नृत्य कर रहे थे। लेकिन राजा प्रताप रूद्र को ऐसी महाप्रभु ने अपनी कृपा उन पर की थी जिससे राजा प्रताप रुद्र क्या कर पा रहे थे चैतन्य महाप्रभु को सातों साथ की साथ टोलियो में नृत्य करते हुएदेख पा रहे थे और उनको आश्चर्य हुआ, महाप्रभु इधर भी है उधर भी सब जगह हैं और एक ही साथ मुझे दिख रहे हैं। हम समझ सकते हैं कि जो महाप्रभु का नृत्य है, उनका जो कीर्तन है वह केवल अपनी मस्ती में नहीं थे बल्कि सबको अपनी कृपा भी दे रहे थे विशेष या अन्य जीवो को और भी अधिक आकर्षित करने के लिए कहते हैं ना हायर टेस्ट, मतलब क्या है हम कुछ खा रहे हैं हमको बहुत अच्छा लगता है ऐसी बात नहीं है उसका टेस्ट तो हमको मिल ही जाता है, प्रसाद है इसलिए। किंतु फिर भी हम भक्त हैं तो क्या होता है कि हम को एक आनंद का अनुभव होता है और हम जो इस्कॉन में या हरे कृष्ण आंदोलन में नृत्य करना सबसे आसान तरीका है भक्ति करने का, वैसे प्रसाद भी है, लेकिन आज हमारा डांस का टॉपिक है अतः डांस में हमें विशेष रूप से कुछ करना नहीं पड़ता है। छोटे बच्चे भी नाच सकते हैं उसमें छोटे बच्चे भी नृत्य करके उसको भक्ति का एक अंग प्रदर्शन कर सकते हैं। भगवान की प्रसन्नता के लिए जबकि उनको पता नहीं है कि यह भी भक्ति का एक अंग है। फिर भी क्या कर सकते हैं भगवान की प्रसन्नता के लिए वह भी नृत्य करके , भगवान भी देखेंगे कि अरे यह तो मेरी प्रसन्नता के लिए कर रहे हैं । इसीलिए एक विशेष भगवान को आकर्षित करने का पहलू है और यदि किसी को इतना अच्छा नृत्य नहीं आता है तो श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि इसके लिए यह जरूरी नहीं, आपको कहीं जहां ट्रेनिंग होता है ना डांस ट्रेनिंग होता है बहुत सारे डांस एकेडमी होते हैं तो क्या है कि एक बार में कहीं किसी स्थान में गया था और वहां पर मेरा एक प्रवचन था और वह शायद 3 स्टोरी बिल्डिंग था और सबसे ऊपर था वहां पर हमारा प्रवचन का प्रोग्राम था। जब मैं ऊपर गया तो वहां में जल्दी पहुंच गया और जो नीचे वाला फ्लोर था वहां मैंने देखा कि वहां डांस एकेडमी लिखा हुआ था थोड़ा मैंने अंदर झांक कर देखा, वहां के जो डांस डायरेक्टर थे उनसे मिला और उनसे कहा कि बहुत अच्छी बात है कि आप डांस सिखाते हो लेकिन आप जो डांस सिखाते हो आप कभी हमारे कीर्तन में भी उनको लेकर के आइए आप देखिए कि हमारे भी इस्कॉन का हर एक स्टेप कैसे होता है। यह कीर्तन नृत्य यही हमारे क्या हैं ? इसके ऊंचे तत्व है। इसके द्वारा हम अपने आप को भक्ति में प्रगत करते हैं। मुझको बड़ा आश्चर्य हुआ कि अलग-अलग डांस एकेडमी इतने सारे हैं कहीं पर भरतनाट्यम है या अन्य है किंतु फिर भी उस नृत्य का जो वास्तविक उद्देश्य क्या है ? जबकि हमारा जो नृत्य है वह भगवान की प्रसन्नता के लिए था यह उस उद्देश्य को प्रकट करता था लेकिन अभी कलयुग में उसने इसको जो कृष्ण भावना भावित भक्त हैं उसके लिए क्या है कि उसका नृत्य ही उसका जीवन है क्योंकि वह उसी के द्वारा भगवान को प्रसन्न कर सकता है। एक बार किसी ने पूछा प्रभुपाद समझो यदि कोई भक्त हो जिस का उत्साह कम हो गया है उसको लग रहा है कि वह बहुत डल हो गया है उसे कुछ रुचि नहीं आ रही है भक्ति में और उसको लग रहा है कि अभी बस वही वही बात हो रही है तो अभी क्या करूं? श्रील प्रभुपाद ने कहा, कि क्या करो भगवान के पास जाओ और कीर्तन में नृत्य करो बस उत्साह तुम्हें मिल जाएगा यह सबसे आसान तरीका है। कोई कह सकता है कि मैं इतना नाच नहीं सकता हूं फिर भी वहां बैठे-बैठे अंदर ही अंदर से हम क्या कर सकते हैं नाच सकते हैं तो शरीर के द्वारा करना तो अच्छा ही है लेकिन कभी ऐसी स्थिति आ जाती है शरीर के कारण या कुछ कि हम वहां प्रत्यक्ष रूप से हम नहीं कर सकते किंतु हम ऐसा भाव व्यक्त कर सकते हैं कि हम भगवान के लिए नृत्य कर रहे हैं। वहीं पर ऐसे मन में या विचार ला सकते हैं वृंदावन मायापुर आदि स्थानों पर मैं वहां गया हूं वहां मैं नृत्य कर रहा हूं ऐसे भाव लाने से भी क्या होगा उससे हम दूर बैठे हैं किंतु फिर भी क्या है वहां हम बैठकर के नृत्य कर रहे हैं। लेकिन जो सक्षम हैं उनके लिए ऐसा नहीं होना चाहिए कि मैं अभी सीनियर हो गई या मैं नृत्य नहीं कर सकती या मेरे लिए आवश्यक नहीं है नृत्य, तो आप देखिए स्वयं गुरु महाराज जी भी नृत्य करते हैं। यहां पंढरपुर में भक्त लोग जब उन्होंने इतना देखा कि गुरु महाराज स्वयं आ गए सभी के बीच में और नृत्य करने लगे आगे पीछे आकर तो सभी समझ गए कि हमें भी अभी नृत्य करना है। गुरु महाराज बाह्य दृष्टि से एज के रूप में ज्यादा है किंतु अंदर से तो अभी मैंने देखा है कि जब गुरु महाराज जी कहीं से आए थे बहुत थके हुए थे किंतु अभी भी जब उनको मौका मिलता है तभी वो कीर्तन कर रहे हैं। केवल कीर्तन ही करेंगे ? तो नहीं, वही नृत्य भी करेंगे और स्वयं भी सबको नचायेंगे। यह बहुत विशेषता है गुरु महाराज जी की। हम देख सकते हैं कि राधानाथ स्वामी महाराज जी का नृत्य भी बहुत प्रसिद्ध है। एक बार गुरु महाराज कीर्तन कर रहे हैं और राधा स्वामी महाराज नृत्य कर रहे हैं और कंपटीशन चल रहा है। कुछ दिन पहले मैंने सुना कि जब गुरु महाराज एक बार जब भक्ति तीर्थ महाराज जब से गुरु महाराज जब यहां पर थे तब गुरु महाराज , मुझे वह स्थान स्मरण नहीं हो रहा है वहां पर गुरु महाराज ने मंगला आरती का कीर्तन लीड किया वह मंगला आरती गाने लग गए और भक्ति तीर्थ महाराज नृत्य कर रहे थे और बाद में मंगला आरती हो गई फिर बाद में नरसिंह आरती तुलसी आरती भागवतम , जप करने का समय है फिर बाद में 9:00 बजे तब भी कीर्तन हो रहा था और भक्ति तीर्थ महाराज नृत्य कर रहे थे। गुरु महाराज ने कहा कि आपने इतने समय तक नृत्य किया है आपने मुझे कहा नहीं कि मैं रोक दूं तो उन्होंने कहा कि आप कीर्तन कर रहे थे इसलिए मैं मृत्य कर रहा था , उन्होंने कहा मुझे आप के कारण है इतनी प्रेरणा हो रही थी कि मैं नृत्य करूं पूरा टाइम मैं हर समय नाचता रहूं यही विशेषता है कि जब गुरु महाराज कभी पंडाल प्रोग्राम होता है और जब वहां जाते ही तब पूरा पंडाल हिलने लग जाता है। पंडाल नहीं ,अंदर जो भक्त हैं सभी नृत्य करने लगते हैं और नए लोग आकर्षित होकर देखते हैं कि यह सब क्या हो रहा है। यहां पर लोकनाथ स्वामी महाराज आए थे उनको लगता है कि अरावड़े से आए हैं बहुत साल पहले महाराज ने कहा कि आप यदि नृत्य कर रहे हैं इसका मतलब आप खुश हैं आप नृत्य नहीं कर रहे हैं तो उसका मतलब क्या है आप दुखी हैं। दाल में कुछ काला है कभी-कभी हम कहते हैं कि लोगों से की नृत्य करो कुछ दिखाओ, से लोग कहते नहीं नहीं हम अंदर से ही कर रहे हैं। लेकिन यह बाह्य रूप से भी प्रकट होना चाहिए केवल मन से ही नहीं, इससे क्या होगा कि भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाएंगे। मुझे स्मरण है कि गुरु महाराज पूछते थे मुझसे नोएडा में, धर्मराज सभी को नचाते हो ना तुम? क्योंकि सभी को नचाना भी जरूरी है और यदि वह यहां नहीं नाचेंगे तो क्या है कीर्तन में यदि नृत्य करना है तो अंत में हमको अच्छा लगने लगता है। कीर्तन के विपरीत अर्थ क्या है नृत्यकी, अच्छा कि हम बाहर नृत्य में आकृष्ट हो जाए तो हम महाप्रभु के कीर्तन में आकृष्ट होकर उसका लाभ ले सके। हरे कृष्ण ! श्रील प्रभुपाद की जय !

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