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जप चर्चा, 6 अगस्त 2021, पंढरपुर धाम. 878 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। गौरांग, गौर हरि बोल, गौर प्रेमानंदे हरि हरि। आप सभी का स्वागत है। गुरु महाराज धूम कॉन्फ्रेंस में "एक भक्त को संबोधित करते हुए कह रहे हैं, आपका भी स्वागत है।" आप सभी भगवान के हो, या आप सभी मेरे भगवान के हो इसीलिए आप मेरे भी हो। वैसे केवल में ही नहीं, आप हम सभी भी ऐसा कह सकते हो। जीव किनके है? जीव मेरे भगवान के हैं, कृष्ण के जो भी लगते हैं वह भी मेरे हैं। ऐसा हमारा संबंध है। हमारा संबंध केवल भगवान से ही नहीं तो भक्तों से भी हैं। जीवो से भी है। इस प्रकार हम सभी का एक परिवार बन जाता है। इसीलिए कहां है वसुदेव कुटुंबकम कुटुंब, मतलब परिवार। सारे लोग हमारे हैं। यह विचार भी आ गया मन में फिर आपको कह कर सुनाया। किंतु ओर ही कुछ सुनाने का विचार मैंने करके रखा है। उसकी और मुड़ते हैं। कल हमने चर्चा किया पंचतत्व, उन्होंने क्या किया, कीर्तन किया। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। कीर्तन और नृत्य, लूट सके तो लूटलो, लूट रहे थे आनंद को बांट रहे थे। हरि हरि, तो यह जो भी किया पंचतत्व ने जो किया यह कार्य कहो या लीला कहो या उन्होंने जो लीला खेली, यह कार्य वैसा ही किया उन्होंने जैसा शास्त्रों में बताया है। इसका आधार शास्त्र है। ग्रंथ इसका आधार है। भगवान भी जब प्रकट होते हैं तब शास्त्रोक्त शास्त्र उक्त शास्त्रों में कही हुई बातों का आवलंबन भगवान भी करते हैं। सभी के समक्ष भगवान एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आपने आचरे जगत सिखाएं हरिः ओम ऐसी शुरुआत होती हैं कलि संतरण उपनिषद की शुरुआत होती है। मैं यहां कलि संतरण उपनिषद खोल कर बैठा हूं। कलयुग का धर्म कौन सा है, ठीक है कलयुग का धर्म तो नाम संकीर्तन है ही या हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करना, यह कलयुग का धर्म है। इसका आधार है यह कलि संतरण उपनिषद। हमारे गौड़िय वैष्णव बारंबार इस कलि संतरण उपनिषद का संदर्भ देते हैं। और श्रील प्रभुपाद तो सर्वत्र अपने तात्पर्य में या अपने कथा प्रवचनों में इस बात को पुनः पुनः कहा करते थे, स्मरण दिताते थे। उसी बात का हम भी आपको स्मरण दिलाने जा रहे हैं, ताकि आपको भी याद रहे और आप भी उसकी पुनरावृत्ति करते रहे और औरों को याद दिलाते रहे। यहां तो वैसे ब्रह्माजी नारद मुनि को याद दिलाते हैं। अभी कलयुग आया है। तो कौन सा धर्म होगा कलयुग में, व्दापार अन्ते ब्रम्हाणाम जगानाम, द्वापर युग के अंत में नारद मुनि नारायण नारायण कहते हुए गए होंगे। या नारद मुनि बाजाय वीना राधिका रमण नामें अपना वीणा बजाते हुए पहुंच गए ब्रह्म लोग। और अपने पिताश्री अपने गुरु महाराज से उन्होंने पूछा, कथम भगवान गम परयंतन कलि संतरेयामिती भगवन ब्रह्माजी मैं तो सर्वत्र भ्रमण करते रहता हूं।, यह कलयुग आ धमके गा तो मैं इस कली से कैसे बच सकता हूं, कली से कैसे तर सकता हूं, आप कृपया बताइए। सह उवाच ब्रम्हा, तो फिर ब्रह्मा कहे। क्या कहा ब्रह्मा ने साधु प्रश्नोंस्मि यह जो तुम्हारा प्रश्न है। अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा, यह जो तुम्हारा प्रश्न है, यह सर्वोत्तम जिज्ञासा है। इसका में स्वागत करता हूं ।साधु साधु! कई बार कोई अच्छी बात करता है या कहता है तो उसका अभिनंदन करते हुए भी कहते हैं साधु साधु। बहुत अच्छे बहुत सुंदर। सर्व श्रुतिरहस्यम गोप्यम ततश्रुणुम मैं तुमको सुनाता ही तुम उसको सुनो सर्वश्रुतिरहस्यम श्रुतियों का शास्त्रों के दो भाग हैं। एक होता है श्रुति और दूसरा होता है स्मृति। स्मृति का मूल ग्रंथ श्रुति है। श्रुति का महिमा कुछ विशेष है। उन श्रुति ग्रंथों में जो रहस्य बताया है, उसी को मैं तुमको सुनाता हूं। गोप्यम ततश्रुणुम और मैं जो तुमको सुनाऊंगा वह बड़ी गोपनीय बात है। श्रुति शास्त्रों का सार कहूंगा। येन कलि संसारम तरिष्यसि और मैं जो कहूंगा उसका तुम पालन करोगे। निश्चित ही तुम भी बच जाओगे। इस कलिकाल से भगवद आदि पुरूषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निरध्रितकलिरभवतिती ब्रह्मा शुरुआत में सर्व श्रुतिरहस्यम सारे श्रुतियों का जो रहस्य हैं उस को समझाते हुए कहे। आपको पता है नारद आदि पुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारणमात्रेण निरध्रितकलिरभवतिती बस भगवान का नाम लेना है। भगवान का नाम उच्चारण करना है। बस तर जाओगे। कुछ तो समाधान हुआ नारद जी का। क्योंकि वह वैसे जानना चाहते थे। नारायण के नाम तो बहुत है। कई सारे नाम है या सहस्त्रनाम है विष्णु सहस्तनाम है। सहस्त्र से भी अधिक नाम है। नारदः पुनः पप्रच्छ तन्नाम किमीती नारदः पुनः पप्रच्छ नारद पुनः प्रश्न किए तन्नाम किम उसमें से कोई विशेष नाम है जिसका कलयुग में उच्चारण करने से उद्धार होगा, आप तो सारे सामान्य जन में बात कर रहे हो। हां भगवान का नाम लो। भगवान का नाम लो। नाम के उच्चारण से तर जाओगे। लेकिन मैं जानना चाहता हूं तन्नाम किम उसमें कोई विशेष नाम है जिसके उच्चारण से कलयुग में उद्धार होगा। स उवाच हिरण्यगर्भः, इसके उत्तर में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा कहें हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।। इति षोडषकम नामनाम कलिकल्मषनाशनम। नातः परतरोउपाय सर्ववेदेषु दृष्यत्ये।। कभी-कभी ओम भी उच्चारण में होता है ओम हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।। ब्रह्मा कह रहे हैं तो उनके उच्चारण में यह वैदिक मंत्र है। ओम से प्रारंभ होते हैं। तभी वैदिक मंत्र इसीलिए ओम भी कहे होंगे। उनके वानी में गांभीर्य है और प्रेम भी है भाव भी है। इस महामंत्र का उन्होंने उच्चारण किया और फिर कहां इति षोडषकम नामनाम कलिकल्मषनाशनम नातः परतरोउपाय सर्ववेदेषु दृष्यत्ये हे नारद इति मतलब यहां अभी जो मैंने कहे इति षोडषकम नामनाम 16 नाम वाला यह मंत्र है। 16 नाम वाला यह नाम है। 32 अक्षर 16 नाम। कलिकल्मषनाशनम कली के जो कल्मष है, कली के जो दोष है जिसको शुकदेव गोस्वामी कहे हैं क्या या कितने दोष हैं? कलेर्दोषनिधे राजन जो बात ब्रह्मा कह रहे हैं वही बात शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं। ब्रह्माजी नारदजी को और शुकदेव गोस्वामी सुना रहे हैं परीक्षित महाराज को। बात एक ही है यहां शास्त्र की बात चल रही है। कलि संतरण उपनिषद शास्त्र की बात चल रही है। और शुकदेव गोस्वामी एक आचार्य के रूप में है। साधु शास्त्र आचार्य यह प्रमाण है ना। और यह सभी मेल खाते हैं। सभी एक ही भाषा बोलते हैं। एक ही सत्य परम सत्य का वह वर्णन करते हैं। निरूपण करते हैं। वक्तव्य में कहते हैं। तो जो ब्रह्मा ने कहा था शुकदेव गोस्वामी ने भी वही कहा। कलिकल्मषनाशनम ब्रह्मा जी इसलिए यह कह रहे हैं, क्योंकि कलि संतरण उपनिषद में ऐसा कहां है। और फिर यह भी आप समझ लेना कि यहां कलि संतरण उपनिषद शाश्वत है। सदा के लिए हैं। जब-जब कलयुग आता है। आपको पता है ना, हम क्यों कहते हैं? जब जब कलयुग आता है ब्रह्मा के 1 दिन में कितनी बार कलयुग आता है? आप लोग तैयार तो हो लेकिन कैसे बोलोगे। हजार बार कलयुग आता है। और फिर हजार बार ऐसे जिज्ञासा भी होती हैं। नारद मुनि पहुंच जाते हैं ब्रह्मा के पास। ब्रह्मा वही कलि संतरण उपनिषद की बात सुनाते हैं। तो कलि संतरण उपनिषद शाश्वत है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। हरि हरि, जब तक कलयुग आता है तो कलयुग का धर्म कौन सा होता है, इसीलिए कहा भी है हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् । क्या कहां ह क यहां नाम उच्चारण मात्र से नाम उच्चारण मात्रेन कहां है। कलि संतरण उपनिषद में और इस वाक्य में श्लोक में कहां है हरेर्नामैव केवलम्। केवलम कहो हरेर्नामैव केवलम् या नाम उच्चारण मात्रेण एक ही बात है तो हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् कलौ मतलब क्या? कली, कली जैसा कुछ संकेत होता है। लेकिन कली का क्या? कलयुग में, कलौ मतलब कलयुग में। या हरि का हरौ होगा तो हरि मे.. ।कलयुग में कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा दूसरा उपाय नहीं है, दूसरा उपाय नहीं है, दुसरा उपाय नहीं है। और यह वचन सत्य है शास्त्र का वचन इसको कहते हैं, त्रिकालाबादित सत्य। यह कैसा सत्य? त्रिकालाबादित सत्य तीनों कालों में या काल के प्रभाव से कोई परिवर्तन नहीं होता। यह सत्य है, सत्यमेव जयते। सत्य की जय भी होती है और सत्य शाश्वत भी होता है, सदैव सत्य सत्य ही रहता है। तो कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा यह वचन भी शाश्वत है। इस प्रकार यह संसार का चक्र चलता रहता है। सतयुग आया तो यह धर्म फिर त्रेतायुग आया तो यह धर्म, यज्ञ धर्म, द्वापर युग आया भगवान की अर्चना, कलौ तद् हरि कीर्तन कलयुग आया तो फिर भगवान का हरि कीर्तन, और सत्य युग में ध्यान। चार युग है तो चार विधियां भी है और यह सत्य युग भी आता है बारंबार, फिर आता है द्वापर युग त्रेता युग और कलयुग। तो इस प्रकार यह सब इस ऑल सेट, इज ऑल प्रोग्राम यह सारी सिस्टम बनी हुई है और यह सब भगवान की रचना है। तो नातः ब्रह्मा कह रहे हैं, वही बात कह रहे हैं जो कलिसंतरण उपनिषद की बात है। नातः परतरौपाय सर्व वेदेषु दृष्यते ब्रह्मा कह रहे हैं और ब्रह्मा जी स्वयं भी आचार्य है, वे केवल सृष्टि कर्ता ही नहीं है। दुनिया या हिंदू जगत में तो ब्रह्मा सृष्टि कर्ता है इतना ही जानते हैं, सुने होते हैं। लेकिन ब्रह्मा आचार्य भी है यह बहुत कम लोगों को पता है, ब्रह्मा आचार्य है। चार संप्रदाय है उसमें से एक ब्रह्म नारद मध्व गौडीय संप्रदाय हैं। यह कितने लोगों को पता है? तो ब्रह्मा, जो आचार्य भी हैं वह साधु, शास्त्र, आचार्य और यह आचार्य ब्रह्मा शास्त्र की बात कर रहे हैं। शास्त्र को दोहरा रहे हैं। जो शास्त्र अपौरुषेय है। किसी साधारण व्यक्ति की रचना नहीं है, शास्त्र अपौरुषेय है। हरि हरि। मतलब भगवान की रचना है। भगवान के श्वास के साथ यह सब शास्त्रों के वचन मिश्रित होते हैं, निकलते हैं और यह सदा बने रहते हैं। हरि हरि। तो ब्रह्मा कह रहे हैं नातः परतरौपाय सर्व वेदेषु दृष्यते परतरौपाय इससे कुछ दूसरा या बढ़िया उपाय कहोगे, नातः अतः मतलब इससे यह जो हरे कृष्ण मंत्र का उच्चारण करें और यह जो कली के कल्मषो का नाश करेगा। ना अतः इससे परतरहः परतरौपाय इससे कोई बढ़िया उपाय है कहोगे तो, है ही नहीं। सर्व वेदेषु दृष्यते सभी वेदों में वैदिक वांग्मयम में दूसरा कुछ उपाय बताया ही नहीं। कौन कह रहे हैं? ब्रह्मा कह रहे हैं। किसको कह रहे हैं? नारद जी को कह रहे हैं। और यह ब्रह्मा कैसे हैं? यह ब्रह्मा ही वह व्यक्ति है जिनको स्वयं भगवान ने सारे वेद सुनाएं तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय:। श्रीमद्भागवत के प्रथम अध्याय, प्रथम स्कंध, प्रथम श्लोक में यह बात कही है। तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये तो ब्रह्मा को कहां है आदि कवि और उनको भगवान ने वेद सुनाएं। यह इतिहास भी है, यह लीला भी है। ऐसी घटना घटी है। ब्रह्मा वैसे सर्वज्ञ है, क्योंकि भगवान ही गुरु बन गए उनके। शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् जैसे अर्जुन के गुरु बन गए भगवान कुरुक्षेत्र में। यहा सृष्टि के प्रारंभ में और कोई था ही नहीं बस भगवान थे और ब्रह्मा थे। ब्रह्मा के ऊपर तरस खाए, पढ़ाए सारा एजुकेशन उनका स्वयं भगवान ही किए। तो ऐसे ब्रह्मा, सारे वेदों के ज्ञाता वह कह रहे हैं.. नातः परतरौपाय सर्व वेदेषु दृष्यते इन शास्त्रों में या वेदों में दूसरा कोई उपाय नहीं है। तो आप समझ रहे हो? यह जो अंतराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ का जो भी कार्य है या विधि विधान है यह सभी शास्त्रोक्त है। द बुक्स आर द बेसिस ग्रंथ ही आधार है। या कल भी मैं सुन रहा था श्रील प्रभुपाद कह रहे थे नो मेंटल स्पैक्यूलेशन। हमारे आंदोलन में हम जुगार नहीं खेलते, जुगार खेलना तो एक महापाप है ना। तो जुगार मतलब ठगाई, ठगाना औरों को, मनमानी करना और उर्पटांग बातें कहना। ऐसा सब होता है धर्म के क्षेत्र में तो ऐसी ठगाई चीटर्स एंड चीटेड जिसको श्रील प्रभुपाद कहते हैं। तो ऐसा काम हम नहीं करते हरे कृष्ण आंदोलन में, हर बात प्रामाणिक। तो प्रमाण क्या है? शास्त्र प्रमाण, साधु, शास्त्र, आचार्य प्रमाण। और फिर वह भी केवल ब्रह्मा ने कहां ही नहीं कि हे नारद कलयुग में हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन होना चाहिए उसका उच्चारण होना चाहिए। वैसे ब्रह्मा स्वयं प्रकट हुए। पहले तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय.. और सब पंचतत्व की जय.. वे सारे प्रकट हुए। और उन्होंने संकीर्तन किया, संकीर्तन धर्म की स्थापना की और परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तन भी कहा। जय हो संकीर्तन आंदोलन की। जय हो सत्यमेव जयते। इस सत्य की जय होगी सत्य भगवान है और भगवान का नाम सत्य है। हरि से बड़ा हरि का नाम ऐसा भी महिमा गाया है। हरि से भी हरि का नाम बड़ा है, महान है। तो वह ब्रह्मा भी प्रकट हुए प्रवेश किए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में 500 वर्ष पूर्व। और जिस ब्रह्मा ने उपदेश किया था नारद मुनि को कीर्तन करो और फिर नारद जी प्रचार भी करने वाले थे। वैसा ही जो अभी सुनेंगे पिताजी से, गुरु से सुनेंगे ब्रह्मा से और फिर वही प्रचार करने वाले हैं। नारद मुनि प्रचार कर रहे हैं। वैसे नारद मुनि भी प्रकट हुए चैतन्य महाप्रभु की लीला में नारद मुनि कौन है? कौन है? याद है किसको याद है? हाथ ऊपर करो आप नहीं कर पाओगे, लेकिन कम से कम आप उंगली या हाथ तो दिखा सकते हो, अगर आप जानते हो। कल ही कही हुई बात पंचतत्व के एक सदस्य नारद मुनि और वह थे श्रीवास ठाकुर की जय। श्रीवास नारद मुनि है। नारद मुनि ने श्रीवास ठाकुर के रूप में भी हरि नाम का प्रचार किया। और वैसे भी अपने नारद मुनि रूप में भी किब जय जय गोराचाँदेर.. जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की आरती होती है। और आरती कौन करते हैं? आरति करेन ब्रह्मा-आदि देवगणे संध्या आरती हो रही है गंगा के तट पर। आरती कौन कर रहे हैं? ब्रह्मा आरती उतार रहे हैं और सारे देवता वहां एकत्रित हुए हैं। किब शिव-शुक नारद प्रेमे गद्गद् तो वहां उस आरती में आरती महोत्सव में शिवजी पहुंचे हैं, वहां सुखदेव गोस्वामी पहुंचें हे, नारद जी पहुंचे हैं और कीर्तन और नृत्य हो रहा है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे कहते हुए यह ब्रह्मा, नारद, शिव के गले गदगद हो रहे हैं, गला आवृद्ध होता है। तो नारद मुनि वे स्वयं कीर्तन कर रहे हैं। और फिर ब्रह्मा, ब्रह्मा भी प्रकट हुए हैं ब्रह्म हरिदास के रूप में और वह हमारे संप्रदाय के आचार्य तो है ही। तो उनको श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने पदवी दे दी तुम नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर हो। कैसे हरिदास ठाकुर? नामाचार्य, नाम के आचार्य। वे तीन लाख नाम का जप कर रहे हैं, और प्रचार कर रहे हैं। हरि हरि। वैश्या को भक्त बनाए, वैश्या प्रभावित हुई यह हरिदास ठाकुर और हरी नाम का प्रभाव है। वैश्या शरण में आई। हरिदास ठाकुर को में परास्त करूंगी, पिघल जाएंगे मेरे सानिध्य में ऐसा सोच कर आई थी। लेकिन हरिदास ठाकुर जिस प्रकार जहां वे जप कर रहे थे वहा कली का कोई प्रभाव नहीं था। कली कहां रहता है? जहां अवैध स्त्री पुरुष संग होता है वह भी एक अड्डा बन जाता है कलि का। लेकिन जहां नामाचार्य हरिदास ठाकुर नामोच्चार कर रहे थे हरे कृष्ण महामंत्र का, तो वहां पहुंच गए भगवान पहुंच गए नाम के रूप में, भगवान प्रकट हो रहे हैं प्रकट हुए हैं। तो कली ने इस वैश्या.. लक्ष्यहीरा उसका नाम था। लक्ष्यहीरा वैश्या ने खूब प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी। एक रात, दूसरी रात, तीसरी रात, मध्य रात्रि का समय..। किंतु जहांँ कृष्ण ताहाँ नाहि मायेर अधिकार माया का कोई अधिकार नहीं है, तो वही हुआ ना। इती षोड़शकम् नाम्नान कली कल्मष नाशनम् कली के जो कल्मष है वह नाश होंगे, उसका नाश होगा। और इस वैश्या के मन में जो कामुकता, कामैच्छा, कामवासना प्रचूर भरी पड़ी थी। तो हरिदास ठाकुर के मुखारविंद से निकलने वाला यह नाम और नाम मतलब यह भगवान ही उसने कली कल्मष नाशनम् वेश्या के मन में जो कली का अवैध स्त्री पुरुष संग जो विचार था उसका नाश हुआ जहांँ कृष्ण ताहाँ नाहि मायेर अधिकार। और तीसरे दिन यह लक्ष्यहिरा शरण में आई, हरिदास ठाकुर ने उनको अपना शिष्य बनाया। और फिर अब यह वेश्या, वेश्या नहीं रही आचार्य हो गई वह भी 300000 नाम का जप करने लगी। हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

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