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*जप चर्चा*
*परम् पूजनीय श्री लोकनाथ महाराज द्वारा*
*दिनांक 14 मई 2022*
हरे कृष्ण!!
गौरांगा!!गौरांगा!!
*( जय) श्री कृष्णचैतन्य प्रभु नित्यानंद। श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
इस जूम कॉन्फ्रेंस में, कम से कम मैं तो भक्तों के साथ जप करता हूं। इस कॉन्फ्रेंस में दस- बीस देशों से कम से कम हजार दो हजार की संख्या में भक्त जप करते हैं और तत्पश्चात लगभग इस समय अर्थात पौने सात बजे पर हम हल्का सा जपा टॉक करते हैं, जो कि अभी प्रारंभ हो रहा है। वैसे माफ करना, आपके जप को हमनें ऐसे बीच में रोक दिया। किसी कार्य को प्रारंभ करना तुलनात्मक दृष्टि से कुछ आसान हो सकता है। मेंटेनेंस की तुलना में क्रिएशन अर्थात निर्माण आसान माना जाता है। आप समझ रहे हैं? जप करना या जप प्रारंभ करना कठिन भी है और जैसा कि हम कह रहे हैं तुलनात्मक दृष्टि से यह आसान भी कहा जा सकता है। लेकिन एक बार हमने जप करना प्रारंभ किया है और फिर दीक्षा भी हो गई, हमनें संकल्प भी लिया। प्रतिदिन सोलह माला जप करो- ऐसा आदेश भी हुआ और हमनें स्वीकार भी कर लिया। अब हमें क्या करना है? न्यूनतम 16 माला का जप करते रहना है। कब तक करना है? वैसे प्रतिदिन करना है। यह जप प्रतिदिन करना है। कितने दिन? प्रतिदिन।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले.... गोविंद नाम लेकर... कब तक। आखरी सांस तक आप कहोगे या सुनने के उपरांत या भगवान का नाम लेकर ही हम शरीर को त्यागेंगे, तब तक हमें जप करना है। क्या यह उत्तर सही है? क्या हमें जप को रोकना है, जब शरीर रुक जाएगा। शरीर समाप्त हुआ, तो क्या जप को समाप्त करना है? हम ही समाप्त नहीं होंगे। जप करने वाला तो शरीर नहीं है। जप करने वाला कौन है? आत्मा?
*न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्र्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||*
(श्रीमद भगवद्गीता २.२०)
अनुवाद:-
आत्मा के लिए न तो कभी जन्म होता है और न ही मृत्यु। वह अस्तित्व में नहीं आया है और अस्तित्व में नहीं आएगा। वह अजन्मा, शाश्वत, सदा विद्यमान और आदिम है। जब शरीर मारा जाता है तो वह नहीं मारा जाता है।
शरीर का तो अंत हुआ, हमारा अंत नहीं होता। वैसे मैं कभी-कभी सोचता हूं कि मैंने भी जीवन भर यह कीर्तन किया है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहना फिर उसका जप या कीर्तन करना। जब इस शरीर का अंत होगा तो वहां से आगे क्या मैं हरे कृष्ण हरे कृष्ण नहीं कहूंगा? अचानक ब्रेक लगेगा? मैं जीवन भर जप करता रहा। कीर्तन करता रहा और शरीर का अंत हुआ। मेरा तो अंत नहीं हुआ और न ही होने वाला है तो क्या मेरा हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहना जप या कीर्तन करना बंद होगा ? नहीं होना चाहिए। हम तो अगले जन्म में भी जप /कीर्तन करते रहेंगे। जप करते रहेंगे। हम भगवत धाम भी जाएंगे, वहां क्या करना है? वहां भी *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* इस प्रकार यह हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहना है या
*तद्वाग्विसर्गोजनताघविप्लवोयस्मिन्प्रतिप्रतिश्लोकमबधबत्यपि । नामनंतस्ययशोऽङ्कितानिय त्शृण्वन्ति गायन्ति गृणंति साधव:।।*
( श्रीमद्भागवतं १.५.११)
अनुवाद:-
दूसरी ओर, वह साहित्य जो असीमित परमेश्वर के नाम, प्रसिद्धि, रूप, लीलाओं आदि की दिव्य महिमाओं के वर्णन से भरा है, एक अलग रचना है, जो एक क्रांति लाने की दिशा में निर्देशित दिव्य शब्दों से भरा है। ऐसा दिव्य साहित्य, चाहे वह ठीक से न भी रचा हुआ हो, ऐसे पवित्र मनुष्यों द्वारा सुना, गाया तथा स्वीकार किया जाता है, जो नितान्त निष्कपट होते हैं।
श्रवण, कीर्तन, स्मरण, वन्दन यह भक्ति है और भक्ति करना तो जीव का धर्म है। जब तक जीव है, भक्ति करता रहेगा। जैसे हम साधक हैं, साधना की सिद्धि हुई, इसे मंत्र सिद्धि भी कहते हैं। मंत्र सिद्धि या परफेक्शन ऑफ द चैटिंग द होली नेम ऑफ द लॉर्ड। परफेक्शन को क्या कहोगे? एक दिन में हम जप/ कीर्तन करके परफेक्ट हो गए अब आगे हमें जप या कीर्तन करने की आवश्यकता नहीं? वैसे परफेक्शन तो यह होगा कि हम जप करते ही रहे, साधना करते रहे। जप की साधना कहो या कीर्तन की साधना कहो, श्रवण कीर्तन की साधना या नित्यम भागवत सेवा की साधना या कीर्तनीय सदा हरि की साधना। साधना से क्या होना चाहिए? हम निष्ठावान बनेंगे। निष्ठावान वह अवस्था है, वह स्तर है जहां से व्यक्ति फिर पीछे नहीं मुड़ता। नो यू टर्न या नो मोर आया राम, गया राम। राम आया भी और गया भी। कब गया पता भी नहीं चलता, अगले डोर से आ गया पीछे की डोर से एग्जिट हो गया। ऐसा नहीं होता है। नो मोर यू टर्न। जब हम निष्ठावान बनेंगे, केवल हमें निष्ठावान ही नहीं बनना है, हमें रुचि भी बढ़ानी है। श्रद्धा से प्रेम तक के जो सोपान है। हमें निष्ठा से भी आगे बढ़ना है या ऊपर चढ़ना है। अगर सोपान की बात है तो? फिर रुचि के स्तर पर पहुंचना है।
*नामे रुचि, जीवे दया, वैष्णव सेवा* रुचि से ऊपर और भी सोपान है। आसक्ति! हम आसक्त है।
*श्रीराधिका-माधवयोर्अपार- माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम्।प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥*
अर्थ:-
श्रीगुरुदेव श्रीराधा-माधव के अनन्त गुण, रूप तथा मधुर लीलाओं के विषय में श्रवण व कीर्तन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसास्वादन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसावस्वादन करने की आकांक्षा करते हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
लोलुपता। लोलुपता अच्छी नहीं होती ना लेकिन किस में है ये लोलुपता! ये राधा माधव के नाम, रूप, गुण, लीला के श्रवण का आस्वादन करने में है। वे कब-कब आस्वादन करते हैं? प्रतिक्षण! प्रतिक्षणे आस्वादन लोलुपस्य। हमें आसक्त होना है, हम कैसे आसक्त हो सकते हैं। किसी ने श्रील प्रभुपाद से प्रश्न पूछा तो प्रभुपाद ने कहा कि जैसे एक शराबी होता है।लोग उनको शराबी इसीलिए भी कहते हैं क्योंकि जीना तो क्या जीना, शराब के बिना। वह शराबी है। हरि! हरि!
यहां लॉक डाउन के समय भी सब कुछ बंद था। मंदिर भी बंद थे लेकिन सरकार को शराब की दुकानें खोलने पड़ी क्योंकि कुछ लोग सोच रहे थे कि बिना शराब हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। जब दुकानें खोली तो वहां भीड़ उमड़ आई। अहं पूर्वम् अहं पूर्वम्। जैसे कि कुंभ मेले में वे अमृत पान के लिए टूट पड़ रहे हो। अहं पूर्वम् अहं पूर्वम्। हम पहले, हम पहले। श्रील प्रभुपाद कह अथवा समझा रहे थे कि जैसे शराबी या ड्रंकड व्यक्ति जिसको शराब का चस्का लगता है। यह ओवरनाइट नहीं होता, वह एक दिन में या कुछ दिनों में शराबी नहीं बनता। शराब पीते पीते पीते पीते पीते पीते पीते एक दिन ऐसा समय आता है कि जीना तो क्या जीना इस शराब के बिना। हम भी इस हरि नाम में ऐसे आसक्त हो सकते हैं। पीते पीते, बस पीना है, उसमें आस्वादन है। हरि! हरि!
आसक्त भी होना है, भाव को भी जगाना है।
*नयनं गलदश्रुधारया वदनं गद्गद्-रुद्धया गिरा। पुलकैर्निचितं वपुः कदा तव नाम-ग्रहणे भविष्यति॥*
यह शिक्षाष्टकं का छठवां जो अष्टक है। यह भाव भक्ति की बात करता है।स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही... वन्डरिंग।
*कबे बोलो से-दिन अमर (अमर) अपराधा घुचि', शुद्ध नाम रुचि, कृपा-बले हाबे हिदोय संस्कार।।*
अर्थ:-
हे कब, वह दिन मेरा कब होगा? आप मुझे अपना आशीर्वाद कब देंगे, मेरे सभी अपराधों को मिटा देंगे और पवित्र नाम के जप के लिए मेरे दिल को स्वाद [रुचि] देंगे?
मैं अपराध से मुक्त कब होऊँगा? नाम में रुचि कब होगी? इतनी रुचि कि उसका आस्वादन करते समय
*नयनं गलदश्रुधारया वदनं गद्गद्-रुद्धया गिरा। पुलकैर्निचितं वपुः कदा तव नाम-ग्रहणे भविष्यति॥*
अर्थ:-
हे प्रभो! आपका नाम-कीर्तन करते हुए, कब मेरे नेत्र अविरल प्रेमाश्रुओं की धारा से विभूषित होंगे? कब आपके नाम-उच्चारण करने मात्र से ही मेरा कण्ठ गद्गद् वाक्यों से रुद्ध हो जाएगा और मेरा शरीर रोमांचित हो उठेगा?
*महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन। रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥*
अर्थ:-
श्रीभगवान् के दिव्य नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
रोमाञ्च- एक, कम्प- दो, अश्रु- तीन यह कब होगा ? यह भाव है। भाव से भी ऊंची एक स्थिति है, जो प्रेम की स्थिति है। जब इस प्रेम का आस्वादन करेंगे, हम भी प्रेमी बनेंगे।
'यह कौन सा कीर्तन हो रहा है? ' राजा प्रताप रूद्र ने पूछा- जब रथ यात्रा में सम्मिलित होने के लिए बंगाल से, नवद्वीप से, शांतिपुर से, श्रीखंड से, पुलिन ग्राम से भक्त आ रहे थे और जगन्नाथ पुरी धाम में प्रवेश कर रहे थे। (जगन्नाथ पुरी धाम की जय!) उस समय राजा प्रताप रूद्र अपने महल की छत पर चढ़े थे और वहीं से कीर्तन को देख और सुन भी रहे थे। ( मेरे विचार से) उनके साथ सार्वभौम भट्टाचार्य थे। राजा ने पूछा कि मैंने तो पहले और भी कीर्तन सुने थे, वही महामंत्र *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
वही वाद्य
*'तथाई तथाई' बजालो खोल,घाना घाना ताहे झजेरा रोल, प्रेमे ढाला सोनारा अंग, कैराने नुपुरा बाजे*
अर्थ:-
और मृदंग बजाया और झांझ समय पर बजते रहे। भगवान गौरांग की झिलमिलाती सुनहरी विशेषताएँ नाच उठीं और उनके पैरों की घंटियाँ बज उठीं।
किंतु यह जो कीर्तन है, जिसको मैं अभी सुन रहा हूं। यह मेरे चित को आकृष्ट कर रहा है। मेरे ह्रदय प्रांगण में कुछ खलबली मचा रहा है। यह कैसा कीर्तन है?
इसके विषय में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा और पूछा था।
*किबा मंत्र दिला, गोसाइं, किबा तारा बाला जपिते जपिते मंत्र करिला पगला*
अनुवाद:-
"मेरे प्रिय स्वामी, आपने मुझे किस प्रकार का मंत्र दिया है? मैं केवल इस महा-मंत्र के जाप से पागल हो गया हूँ!
कैसा मंत्र है, जब से मैं इस मंत्र का कीर्तन सुन रहा हूं, इस मन्त्र ने मुझे या इस मंत्र में जो बल,शक्ति है।
*नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्ति- स्तत्रार्पिता नियमितः स्मरणे न कालः एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नाऽनुरागः॥2॥*
अर्थ:-
हे भगवान्! आपका अकेला नाम ही जीवों का सब प्रकार से मंगल करने वाला है। कृष्ण, गोविन्द जैसे आपके लाखों नाम हैं। आपने इन अप्राकृत नामों में अपनी समस्त अप्राकृत शक्तियाँ अर्पित कर दी हैं। इन नामों का स्मरण और कीर्तन करने में देश-कालादि का कोई नियम भी नहीं है। प्रभो! आपने तो अपनी कृपा के कारण हमें भगवन्नाम के द्वारा अत्यन्त ही सरलता से भगवत्-प्राप्ति कर लेने में समर्थ बना दिया है, किन्तु मैं इतना दुर्भाग्यशाली हूँ कि आपके नाम में मेरा तनिक भी अनुराग नहीं है। मुझे तो पागल बना दिया है।
वहां राजा प्रताप रुद्र भी कुछ अनुभव कर रहे थे। उन्होंने कीर्तन सुना, उन्होंने पहली बार इस तरह का कीर्तन सुना था। यह कुछ भिन्न लग रहा था, कुछ भिन्न था। उन्होंने पूछा यह कौन सा कीर्तन है, जवाब में उनको बताया गया कि यह प्रेम कीर्तन है। इस कीर्तन का नाम प्रेम कीर्तन है, श्रद्धा से प्रेम तक। प्रेम कीर्तनं
*गोलोकेरा प्रेम-धन, हरि-नाम-संकीर्तन, रति न जन्ममिलो केने ते संसार-बिशानेले, दीक्षा-निसि हिया न कोनू , उपाय।*
( वैष्णव भजन- हरि हरि विफले )
अर्थ:-
गोलोक वृंदावन में दिव्य प्रेम का खजाना भगवान हरि के पवित्र नामों के सामूहिक जप के रूप में उतरा है। उस नामजप के प्रति मेरा आकर्षण कभी क्यों नहीं आया ? दिन-रात मेरा हृदय
सांसारिकता के विष की आग से जलता रहता है और मैंने इसे दूर करने का कोई उपाय नहीं किया है।
हरि हरि!!
हमारा लक्ष्य भी प्रेम कीर्तन करना है। जब हम प्रेम कीर्तन कर पाएंगे, तो ही हम भगवत धाम लौट सकते हैं।
एंट्रेंस पर हमारा कुछ स्क्रीनिंग होगा, कुछ परीक्षण होगा।
जैसे श्रीवास आंगन अर्थात श्रीवास ठाकुर बाड़ी में यह संकीर्तन प्रारंभ हुआ। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने पंचतत्व और कुछ शुद्ध भक्तों के साथ में कीर्तन करना प्रारंभ किया। शुरुआत में रात भर कीर्तन और नृत्य होता था, उस कीर्तन में केवल शुद्ध भक्तों को ही आने की अनुमति थी। केवल 100% शुद्ध भक्त को अनुमति थी। एक दो बार, वैसे जो इतने अधिक शुद्ध नहीं थे, वे भी प्रवेश कर लिए लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने डिटेक्ट कर लिया कि कोई गलत अथवा अशुद्ध व्यक्ति अथवा अपराधी व्यक्ति का इसमें प्रवेश किया है। उस दिन, उस समय चैतन्य महाप्रभु में वह भाव प्रकट नहीं हो रहे थे, कुछ तो गड़बड़ी है।
तब उन अशुद्व व्यक्तियों को बाहर निष्कासित किया गया था। एक बार शायद श्रीवास ठाकुर की सास( मदर इन लॉ) को भी बाहर किया था और एक समय ब्रह्मचारी जो दावा कर रहा था कि मैं इतना तपस्वी हूं, मैं केवल दुग्ध पान करता हूं, मेरी इतनी महिमा है लेकिन उसको भी बाहर किया गया। ऐसे यह भी कहने का प्रयत्न हो रहा है कि भगवत धाम में प्रवेश जो 100% शुद्ध व्यक्ति है, वही कर सकता है। इसलिए भक्ति विनोद ठाकुर भी कहते हैं कि
*अपराध शून्ये होइया, लहो कृष्ण नाम।* आप अपराध कर सकते हो आपको अपराध करने की अनुमति है लेकिन कितने अपराध कर सकते हैं? जीरो अपराध कर सकते हैं। कEल ही एक भक्त ने पूछा कि जब हम एक ही आयु के सम वयस्क भक्त एकत्रित होते हैं तो थोड़ा प्रजल्प करते रहते हैं।महाराज! क्या यह ठीक है? ज्यादा नहीं, थोड़ा थोड़ा प्रजल्प करते हैं। आप क्या कहोगे? इसके उत्तर में क्या कहोगे? मैंने भी कल इसका उत्तर दिया ही था। वैसे मैंने कल भक्तों से पूछा था। आपकी क्या राय है? वही आपसे पूछ रहा हूं। आप क्या सोचते हो, थोड़ा थोड़ा प्रजल्प हो जाए। क्या यह ठीक है? ओके है कहने वाले अपने हाथों को ऊपर करें? मतलब मैंने भी यही कहा था कि नहीं, परमिशन अर्थात अनुमति नहीं है।
( कुछ हमारे यहां ज़ूम पर कुछ प्रतिभागी भी हाथ ऊपर कर रहे हैं। श्रीमती राधिका दिल्ली, श्री चैतन्य पदयात्रा से और भी कुछ भक्त हाथ ऊपर कर रहे हैं। आप हाथ ऊपर कर रहे हैं, इसका मतलब क्या है?? तुम क्या फेवर में हो? प्रजल्प करना चाहिए? आप हाथ ऊपर क्यों उठा रहे हैं?)
*अत्याहार: प्रयासश्च प्रजल्पो नियमाग्रह: । जनसङ्गश्च लौल्यं च षड्भिरभक्ति विनश्यति।।*
( उपदेशामृत श्लोक संख्या 2)
अनुवाद:-
जब वह निम्नलिखित छह गतिविधियों में बहुत अधिक उलझ जाता है तो उसकी भक्ति सेवा खराब हो जाती है: (1) आवश्यकता से अधिक खाना या आवश्यकता से अधिक धन एकत्र करना; (2) सांसारिक चीजों के लिए अति-प्रयास करना जो प्राप्त करना बहुत मुश्किल है; (3) सांसारिक विषयों पर अनावश्यक रूप से बात करना; (4) धर्मग्रंथों के नियमों और विनियमों का केवल उनका पालन करने के लिए अभ्यास करना और आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं, या शास्त्रों के नियमों और विनियमों को अस्वीकार करना और स्वतंत्र रूप से या सनकी रूप से काम करना; (5) सांसारिक मन वाले व्यक्तियों के साथ जुड़ना जो कृष्ण भावनामृत में रुचि नहीं रखते हैं; और (6) सांसारिक उपलब्धियों का लालची होना।
षडभिः, षड मतलब छः, भि: मतलब इन छः से,
इस उपदेशामृत में यह जो 6 बातें कही गयी हैं, यह स्वयं रूप गोस्वामी प्रभुपाद द्वारा कही गयी है । वे उपदेश का अमृत सुना रहे हैं। उसमें कहा है- साधु। साधु सावधान। हे जप करने वाले साधकों या जप करने वाले भक्तों! सावधान! यह नहीं कर सकते, यह निषिद्ध है। इसका तात्पर्य भी आपको पढ़ना होगा। प्रभुपाद समझाते हैं कि अत्याहार क्या होता है, तत्पश्चात प्रजल्प विशेष रुप से प्रजल्प जनसंगश्च
*असत-संग-त्याग, - ए वैष्णव-आचार 'स्त्री-संगी' - एक आसाधु, 'कृष्णभक्त' आरा।।*
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.87)
अनुवाद:-
"वैष्णव को हमेशा सामान्य लोगों की संगति से बचना चाहिए। आम लोग भौतिक रूप से बहुत अधिक जुड़े होते हैं, खासकर महिलाओं से। वैष्णवों को भी उन लोगों की संगति से बचना चाहिए जो भगवान कृष्ण के भक्त नहीं हैं।
असत संग को त्यागना ही वैष्णवों का आचरण होता है। प्रजल्प अर्थात गॉसिप, रुमौर अर्थात अफवाहें इसी को ग्राम कथा कहते हैं। एक कथा होती है कृष्ण कथा और दूसरी होती है ग्राम कथा। शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं- श्रवण कीर्तन आदि, ऐसे हजारों टॉपिक ग्राम कथा के अंतर्गत या प्रजल्प के अंतर्गत या गॉसिप के अंतर्गत आते हैं, इसको टालना है। नहीं टालोगे तो विनश्यति। भक्ति का विनाश होगा।
हमने प्रारंभ में कहा भी था कि तुलनात्मक दृष्टि से किसी कार्य को प्रारंभ करना थोड़ा सा आसान हो सकता है किंतु उसको मेंटेन करते रहना है या मेंटेन करना है।श्रील प्रभुपाद ने भक्तों/ शिष्यों व अपने अनुयायियों को कहा कि मैंने जो भी बनाया अथवा क्रिएट किया है, उसे मेंटेन करो। ऐसा होमवर्क हम शिष्यों को प्रभुपाद के समय मिला। (हम सभी प्रभुपाद के शिष्य ही हुआ करते थे। आप नहीं थे? अगर आप होते तो आप भी प्रभुपाद के शिष्य बन जाते।) हम शिष्य को फिर यह होमवर्क है। अब आप आ ही गए, आपका स्वागत है। मेंटेनेंस, हर चीज का मेंटेनेंस होना चाहिए। टेंपल मेंटेनेंस, साधना मेंटेनेंस, जपा मेंटेनेंस। मेंटेनेंस या मेंटेनेंस का पोर्टफोलियो विष्णु ने अपने पास रखा है।
ब्रह्मा जो रजोगुण के इंचार्ज हैं, वह क्रिएशन को संभालते हैं। क्रिएशन तो हुआ, किंतु हमने कुछ नेगलेक्ट अथवा इग्नोर किया है। कई सारी बातों को हम टालते रहे या पोस्टपोन करते रहे हैं। ऐसा करेंगे तो हम .. ये इग्नोरेंस हो गया। हम तमोगुण के क्षेत्र में आ गए। रजोगुण से हमनें शुरुआत की। वैसे भक्ति का कार्य रजोगुण से नहीं होता है। वह गुणातीत है। तो भी... ( चेंज द टॉपिक अभी नहीं) कहा जाए कि रजोगुण से हमने शुरुआत की सतोगुण नहीं है। सतोगुण की बजाय, तमोगुण ने जीवन में प्रवेश किया। हम तमोगुणी बने। तमोगुण के इंचार्ज कौन हैं? शिवजी हैं, उनसे प्रेरणा लेकर हम इग्नोर करते रहे। जो निषिद्ध बातें हैं, उनको करते रहे। क्या होता है?
क्रिएशन हुआ था, उसको मेंटेन करने की बजाय अथवा मेन्टेन्स से पहले ही क्या हो जाएगा। डिस्ट्रक्शन, मे बी डेली बेसिस कुछ डिस्ट्रक्शन हो सकता है। डिस्ट्रक्शन! डिस्ट्रक्शन!( विनाश! विनाश) महाविनाश (ग्रैंड टोटल महा डिस्ट्रक्शन) हो सकता है अर्थात क्या हो सकता है? पुन: मुषिक भवः। पुनः चूहा बनो। आए थे तुम राम गए ... आया राम गया राम। यह दुर्लभ मानव..
*भजहु रे मन श्री- नंदन अभय-करनरविंदा रे दुर्लभ मानव-जनमा सत-संगे तारोहो ए भव-सिंधु रे*
( वैष्णव भजन)
अर्थ:-
(1) हे मन, बस नन्दपुत्र के चरणकमलों की पूजा करो, जो मनुष्य को निर्भय बनाते हैं। इस
दुर्लभ मानव जन्म को प्राप्त करके संतों की संगति से इस सांसारिक अस्तित्व के सागर को पार करें।
सत्संग जो प्राप्त हुआ था, उस सत्संग अथवा साधु संग से सर्वसिद्धि होना थी, सिद्धि को प्राप्त करना था। यह नहीं होगा, वी लूज एवरीथिंग। भक्तों के संग को हम खो बैठेंगे। फिर राम राम की बजाय मरा मरा करेंगे, फिर मरते रहो। पुनर मुशिक भवः। हरि! हरि! ओके! बेसिकली यह कहा जा रहा है, रिमाइंडर दिया जा रहा है कि हमें भक्ति को मेंटेन करना है। अपनी साधना को मेंटेन करना है और हम अपने जप की बात करते ही रहते हैं। जपा सेशन, जपा कॉन्फ्रेंस ही है। इसके अंतर्गत जो जपा टॉक होता है। कैसे जप को मेंटेन करना है डोंट डिस्ट्रॉय, मेंटेन। उसका विनाश नहीं करना है। उसका विकास करना है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे।।
हम आप सब की सफलता की प्रार्थना करते हैं। आप सब को यह मेंटेनेंस प्रोजेक्ट अथवा इस संकल्प में आप यशस्वी हो। वैसे भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा हैं- परम विजयते श्री कृष्ण संकीर्तनं।
संकीर्तन आंदोलन की जय!
संकीर्तन भक्तों की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
भक्ति चारू स्वामी महाराज की जय!
भक्ति चारु महाराज ने श्रील प्रभुपाद की ओर से, परंपरा की ओर से भी जो दिया है, उसको मेंटेन करो। हम भी कुछ दे रहे हैं। उसी का हम कुछ रिमाइंडर तो दे ही रहे हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!