Hindi

9.06.2019 हरे कृष्ण! आज इस कॉन्फ्रेंस में 586 प्रतिभागी सम्मलित हुए हैं। आज नासिक रोड से केवल 17 भक्त सम्मलित हुए हैं परंतु मुझे इस कॉन्फ्रेंस में अधिक भक्तों के सम्मिलित होने की उम्मीद थी। आपको इस कॉन्फ्रेंस के बारे में अधिक से अधिक प्रचार करना चाहिए जिससे नासिक और नासिक रोड़ से अधिक से अधिक भक्त इस कॉन्फ्रेंस में सम्मलित हो सकें। ग्रेटर नोएडा से आज 45 भक्त हैं, मॉरीशस से भी 45 प्रतिभागी हैं परंतु संख्या में कमी आयी है। चिंतामणि माताजी जप कर रही हैं परंतु कौंतेय प्रभु आज इस कॉन्फ्रेंस में जप करते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं।इस प्रकार से मॉरीशस में सैकड़ों भक्त और शिष्य हैं, उन्हें भी इसके विषय में बताना चाहिए जिससे वे भी अधिक से अधिक मात्रा में इस कॉन्फ्रेंस में सम्म्मलित होकर जप कर सकें। इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से प्रतिदिन हरिनाम की गंगा बह रही है, आप स्वयं तो हरिनाम के अमृत का लाभ ले ही रहे हैं, आपको अन्यों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि वे भी इसका लाभ ले सकें। " ज्योत से ज्योत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो" आप सभी को इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ज्योत अर्थात ऊर्जा मिल रही है, इसलिए आपको अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए जिससे वे भी इसका लाभ उठा सकें। आज सम्भवतया रविवार है, आज संख्या 600 से कम है। आज प्रतिभागियों की संख्या कम है, इसलिए यह समझ आता है कि आज रविवार है। "जीव जागो जीव जागो गौराचंद्र बोले" चैतन्य महाप्रभु हमें उठा रहे हैं कि हे जीव, अब तुम जाग जाओ। यदि हम एक बार जग जाए और उसके पश्चात दुबारा कभी नहीं सोये, तो यह उत्तम है। 'जीव जागो, जीव जागो', इस भजन में, वास्तव में शरीर के जागने की बात नही हो रही है, अपितु इसमें आत्मा के जागने की बात हो रही है। कृष्ण सेवा करने से या भगवान की अन्य सेवाओं में संलग्न रहने से हो सकता है कि हमारा शरीर थक जाए।(हंसते हैं) , इसके बाद 5-6 घंटे सोना आवश्यक है। प्रभुपाद जी कहते हैं कि वृद्ध और बालक अधिक समय तक सो सकते हैं, परंतु एक व्यस्क भक्त के लिए 6 घंटे की निंद्रा पर्याप्त हो सकती है। हमारी आत्मा कभी भी नहीं सोती है, वह सदैव जागृत रहती है। छह घंटे की नींद के बाद शरीर जब जगता है तो आत्मा पुनः जागृत हो फिर से कृष्ण की सेवा के लिए ,मंगला आरती में जाने के लिए, जप करने के लिए या अन्य आध्यात्मिक सेवाओं को करने के लिए तैयार रहती है। जब हम भक्तों के संग में या आध्यात्मिक गुरु के संग में आते हैं तब हम जागृत होते हैं। ओम अज्ञान-तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री-गुरवे नमः।। आध्यात्मिक गुरु हमें जागृत करते हैं, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं और ज्ञान रुपी अंजन को हमारी आँखों में लगाते हैं। यदि हम, गुरु और भक्तों की कृपा से एक बार जागृत हो जाए तब हमें पुनः सोना नही चाहिए और हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हुए आध्यात्मिक सेवाओं में संलग्न रहना चाहिए। मैं इस कॉन्फ्रेंस में कुछ भक्तों को सोते हुए देखता हूं, कुछ भक्त मंत्र का जप करते हुए अर्थात आधा मंत्र बोल कर, कुछ देर, लगभग 30 सेकंड के लिए सो जाते हैं और पुनः वे जागृत होते हैं, फिर मंत्र बोलते हैं, फिर सो जाते हैं। इसका अर्थ है कि वे अभी पूर्णरूपेण जागृत नहीं हुए हैं। कल हमने श्रीमदभागवतम के संदर्भ में एक धनुर्धर की तुलना में एक जप करने वाले साधक की गतिविधि के सम्बंध में चर्चा की थी। जैसे एक धनुर्धर अपने बाण को धनुष पर चढ़ा कर लक्ष्य को भेदता है। वह कैसे केंद्रित होता है। उसी प्रकार आत्मा एक जीव है, वह धनुर्धर ,बाण भी है। शरीर, मन, बुद्धि आसन सभी हमारे धनुष के अंग होते हैं। हमारा लक्ष्य केवल भगवान के धाम या उनके चरण कमल की प्राप्ति करना होता है। हरि! हरि! यह हम जप करने वाले साधकों के लिए एक अद्भुत उदाहरण है। हमें उस सफल धनुर्धर के विषय में हमेशा सोचना चाहिए कि वह किस प्रकार से अपना ध्यान केंद्रित करते हुए अपने लक्ष्य का भेदन करता है। हमें भी उसके विषय में सोच कर उसके पथ का अनुसरण करना चाहिए, जिससे हम भी भगवदप्राप्ति कर पाएं। कल जप चर्चा के पश्चात हमने वहां नागपुर के भक्तों के साथ अर्थात जो मेरे आस पास भक्त बैठे हुए थे, उनके साथ इस विषय में और आगे चर्चा जारी रखी, वे बता रहे थे," एक आदर्श स्थिति यह है कि धनुर्धर, धनुष बाण को लेकर धनुष पर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाये, पूरे बल के साथ खींचे, लक्ष्य की ओर अपना ध्यान लगाएं और उसका भेदन करें, परंतु ऐसा भी हो सकता है कि वह धनुर्धर, बाण को अपने हाथ में ही पकड़ कर रखे अर्थात उसके पास बाण भी है, धनुष भी है, लक्ष्य भी हैं परंतु वो बाण को हाथ में लेकर ही खड़ा रहेगा तो वह इस प्रकार लक्ष्य का भेदन नही कर पाएगा। हमारी भी ऐसी स्थिति हो सकती है, हम जप माला को हाथ में तो पकड़ कर रखते हैं,परंतु हम इसको गंभीरता से नही लेते हैं। हम जप करते हुए कभी कभी किसी का फ़ोन उठा कर बात करने लगते हैं, कभी टी वी देखते हैं और यदि अखबार वाला आ जाता है तो हम जप करते हुए ही अखबार पढ़ने लग जाते हैं। इस प्रकार हम केवल जप माला पकड़ कर बैठते हैं, इससे हमें हमारे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए। हमारे आचार्यों ने हमें इस तरह नहीं सिखाया है, यह आदर्श तीरंदाज की तरह नहीं हैं। हमारे शास्त्र में दो प्रकार के निर्देश मिलते हैं, पहला- विधि, दूसरा होता है निषेध। विधि अर्थात आपको क्या क्या और कैसे - कैसे करना चाहिए। निषेध अर्थात आपको ये ये कार्य नहीं करने चाहिए अर्थात कुछ कार्य करणीय होते हैं, कुछ कार्य अकरणीय हैं।यदि हम दोनों कार्यों को ध्यानपूर्वक करते हैं, तभी हम सही विधि का पालन कर पाते हैं। यच्छ्रोतव्यमथो जप्यं यत्कर्तव्यं नृभिः प्रभो। स्मर्तव्यं भजनीयं वा ब्रूहि यद्वा विपर्ययम्।। ( श्री मद्भगवतम १.१९.३८) जब राजा परीक्षित महाराज प्रारंभ में शुकदेव गोस्वामी जी से मिले, उन्होंने उनसे यह प्रश्न किया कि भजनीय क्या है और अभजनीय क्या है। हमें क्या जप करना चाहिए और हमें क्या जप नहीं करना चाहिए? क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। हमारा कर्तव्य क्या है, अकर्तव्य क्या है। सभी कार्यों को सही ढंग से किस प्रकार किया जाता है और कौन से गलत कार्य हैं जो गलत प्रकार से भी नहीं करने चाहिए। हमने कल जप चर्चा में करणीय विषयों के बारे में बात की थी अर्थात किस प्रकार हमें उस सफल धनुर्धर का अनुगमन करना चाहिए। आज हम निषेध के विषय में चर्चा करेंगे।यद्यपि हमारे पास समय अधिक नहीं है परंतु हमनें विषय प्रारंभ किया है कि, हमें जप किस प्रकार से नही करना चाहिए। मुझे स्मरण है, कुछ वर्ष पहले वृंदावन के कृष्ण बलराम हॉल में एक नाटक हुआ था, नाटक में एक चरित्र अर्थात एक माताजी किस प्रकार जप करती है, उनके जप शैली के विषय में मंच पर प्रदर्शित किया गया था। यह माताजी, जिनके विषय में दर्शाया गया वे कुछ अधिक ही सचेत थी, वे कभी भी बैठ कर जप नहीं कर सकती थीं, वह अन्य चीजों का अवलोकन करती हुई जप माला को हाथ में लेकर इधर उधर घूमती रहती। जप करते समय यदि बीच बीच में फ़ोन आ जाता तो वह फ़ोन उठाती और साथ साथ में हरे कृष्ण हरे कृष्ण करती रहती, उनकी माला थैली भी बड़ी विशेष थी, उसमें उनका फोन रखने के लिए एक अलग स्थान बना हुआ था। जिसमें वह अपनी चाबियां भी रखती थी। उनका मनका बैग एक छोटे से कार्यालय की तरह था, पत्र, टेलीफोन आदि का बिल भी उसमें रखती और सिनिक सिनिक हरे हरे करते हुए जप करती घूमती रहती थी। क्या आप भी इस प्रकार से जप करते हैं ? इस कॉन्फ्रेंस के प्रारंभ होने से इसमें हम कम से कम एक स्थान पर बैठ कर जप करते हैं। यह संभावना नहीं हैं कि आप घूमते हुए जप करें परंतु हो सकता है कि पूर्व में आप में से कुछ भक्त माताजी के समान ही घूमते हुए पूर्णरूप से गंभीरता से जप नहीं करते होंगे। क्या आपको वो दिन याद है, जब आप भी इस प्रकार से जप करते थे ? अभी कुछ भक्त इसी समय अपनी टिप्पणियां भेज रहे हैं, जिसमें वे बता रहे हैं कि इस कॉन्फ्रेंस से उन्हें किस प्रकार लाभ हुआ है और किस प्रकार अब उनका जप ठीक प्रकार से हो रहा हैं। इसलिए हमें इस कॉन्फ्रेंस का लाभ उठाना चाहिए। अमेरिका से हार्दिक पटेल, वे पहले घूमते हुए जप किया करते थे। मैंने उन्हें एक स्थान पर बैठकर जप करने के लिए कहा। अब वे एक स्थान पर बैठकर जप करते है। हम स्थिर होकर अपने जप पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं परंतु जब हम इधर उधर घूमते हैं तब हम जप पर ध्यान नहीं दे सकते अथवा हम ध्यानपूर्वक जप नही कर सकते। हमें एक स्थान पर स्थिर बैठकर जप करना चाहिए। कुछ भक्त लिख रहे हैं कि गुरु महाराज हम आपके समक्ष बैठ कर जप करते हैं और भी कई अनुभव लिख कर भेज रहे हैं कि किस प्रकार वे इस कॉन्फ्रेंस से लाभान्वित हुए हैं। परंतु समय का अभाव है, मैं ये सारे अनुभव अभी नहीं पढ़ सकता लेकिन बाद में इसे पढूंगा। हम जिस माताजी की बात कर रहे हैं, वह घूम घूम कर जप करने के साथ साथ बातूनी भी थी, जब भी वह किसी से मिलती, उनसे बातें करना प्रारंभ कर देती, जप माला हाथ में लिए हुए बैठकर ग्राम्य कथा करनी प्रारंभ कर देती। ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं अभी देख रहा था कि नासिक रोड पर कुछ भक्त बैठकर बातों में लगे हुए थे जो कि उचित नही है। नाटक में उस माताजी ने अपनी जप थैली को एक कार्यालय के रूप में इस्तेमाल किया परन्तु ध्यान केंद्रित नहीं किया। उस नाटक में आगे यह दिखाया गया कि एक दिन जप करते समय उन माताजी ने अपना हाथ जप थैली में डाल हुआ था और वह कुछ बिल देख रही थी। उनके हिसाब से वह जप भी कर रही थी, बिल देखते देखते उन्होनें माला की थैली देखी, अरे! माला तो है ही नहीं, उन्होनें सही प्रकार से थैली को देखा, उस थैली में माला नहीं थी, उसने अपनी माला खो दी थी। वह सोच रही थी कि मैं हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रही हूं, मेरी तुलसी माला अंदर है, इससे हमें यह अंदाजा लग सकता है कि उनके मन और बुद्धि की क्या स्थिति थी, उन्हें ये भी नहीं पता कब उनकी तुलसी माला खो गयी, वो हमेशा उस थैली में हाथ डाल कर सोचती थी कि मैं जप कर रही हूँ, पर यह गंभीरता पूर्वक जप नहीं था, जहाँ उन्हें ये भी पता नही लगा कि उनकी जप माला नही है। इस प्रकार हमने समय का अभाव होते हुए भी इन दो बातों की चर्चा की, कल हमने विधि के विषय में बताया कि धनुर्धर किस प्रकार अपने लक्ष्य का भेदन करता है। हमें उसी प्रकार ध्यानपूर्वक जप करना चाहिए। आज हमने निषेध के बारे में चर्चा की, जिस प्रकार वह माताजी घूमते हुए 'हरे कृष्ण' महामंत्र का जप कर रहीं थी, उन्हें यह भी पता नही लगा कि उनकी माला खो गयी है, यह निषेध है। ठीक है, आप को अब यह ज्ञान प्राप्त हो चुका है, अब आप ध्यानपूर्वक और एकाग्रता के साथ जप कीजिए। हरे कृष्ण

English

9th June 2019 Chant with focus and concentration Hare Krishna! Today we have 586 participants, 17 from Nashik road, we must spread the word around. We must get more devotees from Nashik and Nashik road. Noida has 45 participants, Mauritius has 45 participants, and numbers have dropped. I don’t see so many on the screen. Numbers are dropping. In Mauritius there were several hundred devotees, so please pass the message, and take advantage of this opportunity. I am happy to see all of you here doing japa. “Jyot se jyot jagate chalo. Prem ki ganga bahate chalo.” You could ask others to join, you are fired up you could touch other prabhus and lit them up, wake them up. That’s all meaning of “jyot se jyot jagate chalo, prem ki ganga bahate chalo.” Let the Ganga of prem flow and let everyone take advantage of this. Let everyone be part of it. Let everyone drown and absorbed in drinking the nectar of the holy name. So, I think today must be Sunday, number is smaller under 600. Today less participants, so it is understood that it’s Sunday. ”jiva jago ,jiva jago gaurachandra bole” Gauranga is calling jiva jago, body is awake now awaken the soul. We wake up and we just never sleep. The body needs sleep, because we work hard for Krishna (laughs), body is resting, maybe for 6 hours. Prabhupada also says about 6 hours sleep. Elderly people sleep for 6 hours but the soul is not sleeping. When we have rested, the body wakes up, the soul is ready to go again to serve Krsna. He is ready to attend mangal arati, chant our rounds and the soul is now awake, it is nourished. Once we wake up we are searching, maybe something in the past, someone wakes you up, shakes you up, or you come into contact with a devotee or spiritual master. om ajyana timirandhasya jnananjana salakaya caksur unmilitam yena tasmai sri guruve namah Spiritual master is waking you up giving you ‘jnananjan’, some knowledge. Uttishta Jagrata, the vedic statement also says. Once you are spiritually woken up, you should stay awake, become Krishna conscious, chanting and doing other devotional practices. I see many of you sleeping while chanting, chanting half mantra and then sleeping for 30 seconds or sometimes longer. And then you wake up and start chanting again. So, you have not really woken up? You are not chanting in full consciousness. Yesterday we made reference to the archer, how the whole activity of chanting is compared to the shooting or an archer. How he holds his bow, how he is focused. He poises his body, his mind, and soul to focus on his target. So, we need to practice our chanting and be focused, chanter is the jiva and is the archer and the arrow is the body, mind and intelligence. Target is the Lord’s abode, Lord’s lotus feet. The atma, the archer, the soul reaches back to Godhead. This is a wonderful illustration, chanter follows the example of the archer, just copy him, look at him how he is focused and his concentration. Yesterday after the japa talk we continued the discussion here with the devotees chanting with me in Nagpur, talking about the archer. The archer he is holding the arrow in his hand, fixes it to the bow and then pulls the string from the back with all his strength, he must be focused and conscious to perform this action, he cannot be distracted from the target. Then he shoots. So, one archer can be totally focused. And another archer he does archery with no concentration, he does everything mechanically, no focus. He may just carry the bow and arrow not doing anything. Some of us can be compared to this archer, we perform the act of chanting only for the sake of doing it, chanters just hold the japa mala, moving back and forth, relaxed mood, watching television, engaging in gossip, reading the newspaper while chanting, this is not what Bhagavatam is teaching. Our acaryas have not taught us like this. It is not like the ideal archer. We get instructions from the scriptures and sastras like viddhi - you do this and nishedha- don’t do that. When King Parikshit in the very beginning as soon as he met Shukadeva Goswami he enquired. yac chrotavyam atho japyaṁ yat kartavyaṁ nṛbhiḥ prabho smartavyaṁ bhajanīyaṁ vā brūhi yad vā viparyayam [SB 1.19.38] He wants to know, what we should worship? And what we should not worship? What should we chant? And what we should not chant? What should we do? And what we should not do? Tell me, what is right and what is wrong. Be like the ideal archer in action that is how you should be, this is the “do part”; what we are talking about here today is the don’t part. Unfortunately, we do not have much time now, just started the topic, what not to do. How to chant, things not to do while chanting and chanting should not be done in this way. Few years ago, the devotees did a drama in the Krishna Balarama hall in Vrindavan, they depicted one character, one mataji on her style of chanting, and they demonstrated this on stage. This mataji she could never sit and chant. She was all over the place chanting, and whilst chanting she was very busy doing other stuff. While chanting if the phone rang, she would drop the chanting and answer the call. She had this big bead bag, in the bead bag her keys would be there, the phone and all little accessories. The bead bag was like a little office, everything will go in there, letters, telephone bills etc. She would be really busy and very distracted whilst chanting. She would chant, snik snik hare hare. So, this group chanting is helpful, we get you all to sit down on the asana and chant. So, if you join this conference there is no chance of chanting casually like the lady in the drama. Devotees are also writing to share their experience, realizations and benefits of this group chanting. So, we should take advantage of this conference. There is this devotee from America Hardik Patel, he used to be chanting like that moving from here to there. I got him to sit down and focus. Once you sit down to chant, you have more control better vibes. More focused. Many of you are writing about the benefits of this group chanting, no time to read all now, but I will read it. The lady we talked about is like a gossip manager, can open a dialogue in the middle of chanting, just like that I could see some devotees from Nashik having a chat. That mataji from the drama, using her chanting bag as an office, used to mechanically chant, not focused. So, one day while chanting she looked in her bag for her japa mala, there was no beads there, she lost her beads. You can just imagine the style of chanting, her mind, and intelligence just chanting with no concentration- she did not realize the beads were no longer there. No focus, she was lost. Between yesterday and today we tried to demonstrate the right way of chanting like the archer, not like the lady who lost her beads. The do’s and the don’ts. Chant with focus and concentration. Hare Krishna.

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