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2nd जून 2019
हरे कृष्ण
आज कॉन्फ्रेंस में 578 ही भक्त (सहभागी) हैं, आज 600 भक्त नहीं हैं कॉन्फ्रेंस में। आज सच्चिदानंद प्रभु रिट्रीट में सभी भक्तों को उत्साहित करेंगे इस कॉन्फ्रेंस में आने के लिए, और पदमाली प्रभु आज जप टॉक के बाद सबको बताएंगे कि किस प्रकार कॉन्फ्रेंस में आना है । मॉरीशस में रहने वाली जनक सुता माताजी का आज जन्मदिन है, उनको महाराज जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ही जनक सुता माताजी महाराज के संपर्क में आई और उन्होंने आज के लिए विशेष करके सभी भक्तों से (वैष्णवों से) आशीर्वाद की याचना की है। जैसा कि इस्कॉन में परिपाटी है कि हम उनको जन्मदिन की भी बधाई देते हैं, आपको आपके जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं हो और इसके साथ ही इस भौतिक जगत में आप दोबारा जन्म ना लें। आप शाश्वत रूप से प्रसन्न हो जाएं और सुखी हो जाए क्योंकि इस भौतिक शरीर में जन्म एक प्रकार से दुख है( दुख का कारण है)। इस संसार में कोई कृष्णभावनामृत का अनुशीलन करके भी प्रसन्न रहता है, लेकिन हम अपने वास्तविक स्वरूप में (आत्मा के रूप में) जब भगवान के साथ होते हैं या भगवान के समक्ष होते हैं या भगवान के साथ आदान-प्रदान करते हैं तभी हमें वास्तविक रूप से शाश्वत आनंद सुख की प्राप्ति होती है।
असल में भगवान हमारे शुभचिंतक हैं, हितेषी हैं, वे सदैव हमारी राह देख रहे हैं, हमारे लौटने का इंतजार कर रहे हैं कि कब हम उनके पास पुनःलौटेंगे और हमेशा के लिए उनके साथ रहेंगे और भौतिक देह में दुबारा नहीं आएंगे। हम इस भौतिक जगत में दोबारा तभी नहीं आएंगे जब पूर्णरूपेण हृदय का परिवर्तन हो जाएगा। जब तक परिवर्तन नहीं होगा तब तक हम आते रहेंगे। क्या आप चाहते हो इस भौतिक जगत में रहना? क्या आप यहां वापस आना चाहते हैं ? जब तक हमें यह पता नहीं होता है कि इस भौतिक जगत का कोई पर्याय आध्यात्मिक जगत है, तब हमें यही संसार अच्छा लगता है , जीना यंहा मरना यंहा इसके सिवा जाना कँहा, हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता है,
इस भौतिक जगत में हमें अच्छा लगे या ना लगे। लेकिन कृष्णभावनामृत में आने के उपरांत हमें पता चलता है कि यहां से निकलने का रास्ता भी है, और एक शाश्वत जीवन जीने का तरीका भी है। हम यहां से निकल भी सकते हैं और एक दूसरा जगत है शाश्वत जगत जहां हम जा सकते हैं। शुकदेव गोस्वामी भागवतम में लास्ट पंचम अध्याय के अंत में बता रहे हैं कि हम सभी हृत रोगी हैं। वास्तव में हम सभी को हृदय का रोग हो रखा है और काम रोग हो रखा है हम हृत रोगी हैं। श्रील भक्ति विनोद ठाकुर प्रभुपाद बताते हैं (एनेछि औषधि माया नाशिबारो लागी हरिनाम महामंत्र लाओ तुमि मांगी) इस रोग से उन्होंने निवारण बताया, उन्होंने औषधि बताई इस हरिनाम के द्वारा हम इस रोग से निवृत्ति पा सकते हैं। हमारे हृदय का परिवर्तन संभव है श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी बताते हैं कि (तोमारे लोइते आमि होहनु अवतार आमि बिना बंधु आर के पाछे तोमार) आपका मेरे प्रति और कौन बंधु है गौरांग महाप्रभु कह रहे हैं हम हृत रोगियों से जिनका हृदय कई प्रकार के रोगों से पीड़ित है बता रहे हैं कि गौरांग महाप्रभु के अलावा हमारा कौन हितेषी है? कौन मित्र है ? वास्तविक मित्र वह होता है जो दुविधा के समय, परेशानी के समय, हमारे काम आता है । गौरांग महाप्रभु हमारे वास्तविक मित्र हैं, इस हृदय रोग की औषधि लेकर हमें मदद करने के लिए संसार में आए। श्रील गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज कई बार कहते हैं कि हमारे इस्कॉन मंदिर वास्तव में चिकित्सालय हैं, जिसमें हृदय के रोग का निवारण किया जाता है और हमारे सभी भक्त डॉक्टर की तरह हैं और कृष्णभावनामृत की क्रिया हृत रोगियों के लिए वास्तव में दवा है।
एक बार एक गौड़िय वैष्णव जब बीमार पड़े तो उनको एक चिकित्सक देखने के लिए आया और वह उनका निरीक्षण कर रहा था स्टेथोस्कोप लगा कर शरीर को देख रहा था, उनके हृदय के भाग को देख रहा था वह इस प्रकार की ध्वनि सुन रहा था, जिसे सुनकर वह बहुत विस्मृत हो गया। यह किस प्रकार की ध्वनि आ रही है, मैंने सोचा नहीं था कि इस प्रकार की ध्वनि हृदय से निकल सकती है, वह कान लगाकर सुन रहा था। डॉक्टर ने हॄदय से जो ध्वनि सुनी (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) इस प्रकार जब उन्होंने महामंत्र को सुना, फिर उन्होंने उन वैष्णव की तरफ देखा क्या वह बोल रहे हैं, उनके होठ नही हिल रहे हैं, उन्होंने देखा कि किस प्रकार से आत्मा भगवान के लिए रो रही है, भगवान को पुकार रही है, महामंत्र का जप कर रही है, उस वैष्णव का शरीर इतना जीर्ण क्षीर्ण हो गया था कि वह बिल्कुल हिलने ढुलने लायक नहीं थे। महाराज जी ने अभी बताया कि उनका शरीर इतना वयोवृद्ध हो चुका था इतना जीर्ण क्षीर्ण हो गया था कि उनका कोई भी अंग हिल ही नहीं पा रहा था और उस अवस्था में भी उनके शरीर में वह आत्मा उपस्थित थी। वह भगवान को पुकार रही थी और इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि वास्तव में हृदय का परिवर्तन यही है। हृदय का परिवर्तन जब तक नहीं होता है (हम कई बार अपने जपा टोक में कह भी चुके हैं कि वास्तव में जो जप करता है वह आत्मा करती है वह शरीर नहीं करता है, वह मुख नहीं करता है, हमारे हृदय का परिवर्तन वास्तव में यही है कि हम हृदय से भगवान का जप करें और जब तक हृदय में रोग रहेगा, तब तक हमे जप कीर्तन करना ही पड़ेगा इस रोग से मुक्त होने के लिए।
श्रील प्रभुपाद जी कहते हैं कि मुझे चेतना में क्रांति चाहिए, मुझे हृदय का परिवर्तन चाहिए । बहुत सी क्रांति देखी है जैसे फ्रांस की क्रांति देखी, ब्रिटेन में बहुत क्रांति रही इस प्रकार बहुत क्रांतियां आई और गई। हमारे संसार को पुनः भीषण अवस्था का सामना करना पड़ा, जब तक हमारी चेतना में क्रांति नहीं होती, हमारी चेतना परिवर्तित नहीं होती है, और हमारी चेतना का परिवर्तन नहीं होता, तब तक हृदय चेंज नहीं होता है, तब तक हम किसी न किसी प्रकार के रोग से पीड़ित रहेंगे। वास्तव में जब हृदय में परिवर्तन होगा, चेतना में परिवर्तन होगा तभी हम शाश्वत रूप से उसका अनुभव, आनंद प्राप्त कर सकेंगे । यह क्रांति जो हृदय की चेतना को शुद्ध करने की क्रांति है, जिससे कि हृदय परिवर्तन होता है, इस क्रांतिकारी आंदोलन का शुभारंभ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने 500 वर्ष पूर्व किया। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु, जो गौरांग नित्यानंद महाप्रभु के नाम से जाने जाते हैं (अजानुलम्बितो भुजो कंकावदातो संकीर्तनेक पितरो कमलायताक्षो ) ये दोनों करुणा के अवतार हैं और वही संस्थापक आचार्य हैं, संस्थापक पिता भी हैं इस संकीर्तन आंदोलन के जो कि क्रांतिकारी आंदोलन है। इसके द्वारा हृदय का परिवर्तन देखने को मिल रहा है , इस क्रांतिकारी आंदोलन के एक सेनापति हुए यानि सेनापति भक्त श्रील प्रभुपाद जी आए और श्रील प्रभुपाद जी ने नित्यानंद प्रभु की इच्छा को संस्थापित किया इस्कॉन आंदोलन के द्वारा और आज यह इस्कॉन आंदोलन पूरे संसार में फैला हुआ है और यह जीवो में क्रांतिकारी परिवर्तन लाता है।
जिसके द्वारा भक्तों का हृदय का परिवर्तन हो रहा है इस आंदोलन में भक्तों को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आंदोलन में हम सबकी इच्छा यही है कि आप सभी इस क्रांतिकारी आंदोलन का भाग बनें और इस पूरे संसार में कृष्णभावनामृत आंदोलन को फैला कर उनका हृदय परिवर्तन करने में उनकी मदद करें। जो गुरु और गौरांग की इच्छा है, जो महाप्रभु की इच्छा है उसमें हम अपने आप को स्थापित करके उनकी इच्छा को पूर्ण करके उनकी प्रसन्नता का कारण बने। क्या आप सभी संसार का वास्तविक परिवर्तन देखना चाहते हैं, संसार में इनफार्मेशन तो बहुत हैं, टेक्नोलॉजी भी बहुत हैं पर क्या वास्तव में संसार का परिवर्तन देखना चाहते हैं। एक बार हमने इंग्लैंड में पदयात्रा का आयोजन किया वह यह थी हम (चले पदयात्रा को चेंज के लिए) प्रभुपाद जी की ही देन है पदयात्रा, जिसके द्वारा हम लोगों का हृदय परिवर्तन करने में उनकी मदद करते हैं, उनमें परिवर्तन लाने के लिए उनकी मदद करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यदि हम संसार में परिवर्तन देखना चाहते हैं तो वास्तव में उसकी शुरुआत कहां से होती है, उसका प्रारंभ कहां से होता है, उसका परिवर्तन होता है हमारे अपने स्वयं के हृदय से। जब हम अपने आप में परिवर्तन करेंगे तभी हम किसी और के हृदय में परिवर्तन करने में उसकी मदद करेंगे। हमें बहुत ही तीव्र इच्छा करनी होगी, बहुत ही दृढ़ता के साथ इच्छा करनी होगी अपने स्वयं के परिवर्तन की, तभी हम सबको परिवर्तित होते देख सकते हैं।
जब तक हम दृढ़ता के साथ अपना स्वयं का परिवर्तन करेंगे तो भगवान कृष्ण भी भगवत गीता में कहते हैं( कि व्यवसायात्मिता बुद्धिरेकेह कुरूनन्दन) भगवद्गीता 2.41 तो हमारी तीक्ष्ण बुद्धि होगी जब हम दृढ़ता के साथ अपनी बुद्धि को भगवान में स्थापित करेंगे तभी हमारे अंदर परिवर्तन संभव है (बहु शाखा हृनन्ताचशच) भगवान कहते हैं विचारों में बहुत सारी शाखाएं, हमारे मन में विभिन्न प्रकार की धारणाएं रहेंगी, संकल्प रहेंगे और मन संकल्प विकल्प करता रहेगा। हम बुद्धिरेकेह कूरूनन्दन नहीं कर पाएंगे उसके लिए अपनी बुद्धि को तीव्र और तीक्ष्ण बनाना होगा और हम मन के संकल्पों विकल्पों को रोक सके तभी हमारे हृदय का परिवर्तन संभव हो पाएगा। मैं सभी से इस कार्य में सफलता के लिए आशा करता हूं। इस कार्य में सफलता प्राप्त हो यह एक दिन या 3 दिन का ध्येय नहीं होना चाहिए। वास्तव में यही हमारे जीवन भर का लक्ष्य होना चाहिए और हमारी दृष्टि इस प्रकार बननी चाहिए कि हम अपने लक्ष्य (गोल) को प्राप्त कर सकें। इन्हीं शब्दों के साथ मै आप सभी को छोड़ता हूं, आप सम्यक दृष्टि विकसित करें और उसे प्राप्त करने के लिए आगे बढें।
हरे कृष्ण