*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-१३/०५/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
रुक्मिणी मैया की जय
आज रुक्मिणी द्वादशी महोत्सव है। आज के द्वादशी को रुक्मिणी द्वादशी कहते है। चतुर्दशी को केवल चतुर्दशी नहीं कहते इसी प्रकार कई तिथियों में भगवान् का प्राकट्य जुड़ा है जैसे विजय दशमी। कृष्ण जन्मे अष्टमी को तो कृष्ण जन्माष्टमी , राम जन्मे नवमी को तो राम नवमी। ये अलग अलग नाम प्रसिद्ध है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
का जप करने वाले हम जापक है जप करने वाला जापक कहलाता है। हरे कृष्ण के जप में हम कृष्ण को सम्बोधित करते है कृष्ण अवतारी है कृष्ण के जितने अवतार है उसमे हम कृष्ण को सम्बोधित करते है। हरे है राधा हरे केवल राधा नहीं है।
*नानावतारं अकरोद्भुवनेषु किंतु*
भगवान् के नाना अवतार है। यह नाना नानी वाला नहीं है हा। राधा भी अवतार लेती है राधा का भी विस्तार होता है। गोपिया भी राधा का विस्तार है। एक तो गोपियों से श्रेष्ट है राधा। गगोपिया प्रेष्ठा है राधा परम प्रेष्ठा है। चन्द्रावली और राधा एक ही है तत्त्व की दृष्टि से सिद्धांत की दृष्टि से। वृन्दावन की गोपिया कात्यायनी की आराधना कर रही थी एक मास में हेमंत ऋतु में मार्गशीष महीने में। कात्यायनी को वे प्रार्थना कर रही थी - *नन्द गोप सुतं देवी पतिम में कुरुते नमः* वे प्रार्थना कर रही थी नन्द के पुत्र को हमारे पति बना दो। १६१०८ गोपिया द्वारका में कृष्ण की रनिया बनती है। १६१०८ में २ पट रानी है या प्रमुख रानी है और वह है सत्यभामा और रुक्मणि।
चन्द्रावली बनती है रुक्मिणी और राधा बनाते है सत्यभामा। रुक्मिणी के रूप में आज के दिन उसने जन्म लिया कुण्डिन पुर में।
विदर्भ में है यह कुण्डिनपुर। नागपुर से कुछ १००-१५० किलोमीटर दूर है यह। यहाँ आज के दिन भीष्मक नंदिनी बानी यह राज भीष्मक की पुत्री। चन्द्रावली के पिताश्री का नाम है चन्द्रक।
जब वह रुक्मिणी बनती यही तो उनके पिता बनाते है भीष्मक। जब वह छोटी थी तो कृष्ण की कथा या द्वारका धीश की कथा सुनाने का अवसर मिला। द्वारकाधीश की कथा सुन सुन कर प्रेम उतपन्न हुआ। हम जब सुनते है कृष्ण के सम्बन्ध में नाम, रूप , गुण लीला के सम्बन्ध में तो हम आसक्त होता है । हम भगवान् को भूल बैठते है हम च्युत है हमारा पतन होता है तो हम भूल जाते है ब्रह्माण्ड में भ्रमण करते है किन्तु रुक्मिणी की बात ऐसी नहीं है रुक्मिणी भ्रम में नहीं थी जब उसने कथा सुनी तो उसको कृष्ण का स्मरण हुआ ऐसा दर्शाया है लीला में रुक्मिणी ने कृष्ण की लीलाये सुनी द्वारका से आये कई ऋषि से। ऋषि मुनि आते है तो क्या करते है ? उत्सव में लीला कथाये सुनते है चर्चा होती है।
ऋषि मुनि जब कथा सुनते तो बाल रुक्मिणी कथा को सुना कराती थी सुन सुन कर उसका चित्त आकृष्ट हुआ। पत्र में लिखा है रुक्मिणी ने सब। विवाह का समय जब आया विवाह योग्य जब बनी यह सब आपको नहीं कहेंगे ८ बजे कथा में सब कहेंगे। पत्र भेज दिया जब कृष्ण पढ़े तो रथ में आये तूफान की तरफ एक ट्रैन का नाम भी है तूफान। प्रातःकाल कुण्डिनपुर पहुंच गए। कृष्ण आगे थे उन्होंने किया अपहरण रुक्मिणी का और फिर द्वारका के लिए प्रस्थान किया शुभमंगल सावधान हुआ विवाह सम्पन्न हुआ रुक्मिणी बन गयी रानी द्वारकाधीश की। रुक्मिणी सभी रानियों में श्रेष्ठ थी। चन्द्रावली बनती है रुक्मिणी। रुक्मिणी मतलब सोना।
रुक्मिणी के अंग का रंग स्वर्ण रंग का है। रुक्मिणी गौरांगी है। विदर्भ में जन्म हुआ तो यह हो जाती है वैदर्भी ऐसे असंख्य नाम है। श्री श्री विट्ठल रखुमाई की जय। कुण्डिन पुर में है कुछ समय था आपकी जानकारी के लिए कुन्डीरपुर में भी ISKCON है। यह भी धाम है अवन्तिपुर धाम। कुण्डिनपुर भी धाम है यहाँ भी कृष्ण बलराम आये थे वहा जो कृष्ण ने अपहरण किया तो वहा सब असुर आये थे शिशुपाल, रुक्मी।
रुक्मी का संकलप था मेरी बहन का विवाह होगा तो शिशुपाल के साथ।
कृष्ण वहा आये और रुक्मिणी को ले गए। रुक्मिणी और किसी की हो ही नहीं सकती।
कुण्डिनपुर में जहा अपहरण हुआ वही पर हमारा ISKCON है। रुक्मिणी ने पत्र में लिखा था मै अम्बिका मंदिर से लौटूंगी तो बिच में आप मेरा अपहरण करना वही स्थान पर आज हमारा ISKCON है। हमारे प्रॉपर्टी में शुरुवात में जब हमने प्राप्त की तो वहा ५ कदम्ब के वृक्ष थे यह और कही नहीं है हमारे भक्तो का दवा यह है कृष्ण जब आये थे तो कदम्ब के माला पहन के आये थे और कुछ फूल गिरे तो उसी से यह वृक्ष है वहा।
आज तो वहा कई सारे कदम्ब के वृक्ष है। रुक्मिणी द्वारकाधी पंढरपुर गए और वहा रह गए ५००० वर्ष पूर्व की बात है। एक समय रुक्मिणी रूठ गई। उस रुक्मिणी को खोजते हुए द्वारकाधीश पहुंच गए पंढरपुर। महाराष्ट्र ने जन्म लिया था इसीलिए माइका में गई रुक्मिणी। वहा पुंडलिक नाम के भक्त ने कहा आप यही रह जाओ। पुंडलिक नाम के भक्त को विशेष वरदान देने आये रुक्मिणी और द्वारकाधीश। पुंडलिक ने कहा भविष्य में यहाँ कई सारे लोग आएंगे आपके दर्शन के लिए। तब से द्वारकाधीश और रुक्मिणी पंढरपुर में विराजमान है।
विट्ठल रुख्मिणी पंढरपुर के है। हरी हरी
रुक्मिणी मैया की जय
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By admin|2023-07-29T09:13:09+00:00May 13th, 2022|Comments Off on Chandravali of Vraja, appears as Rukmini of Dwarka!