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जप चर्चा 26 जून 2020 पंढरपुर धाम श्री गुरु गौरांग जयते
802 स्थानों से भक्त जप सत्र में शामिल हुए हैं। जप, यह प्रार्थना है जप यह एक प्रार्थना नहीं मुख्य प्रार्थना है
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
हरे कृष्ण जप यह प्रार्थना करते रहिए यह प्रार्थना खुद के लिए तो है ही और साथ-साथ औरों के लिए भी है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
या महामंत्र प्रार्थना है। कैसे , प्रार्थना है? आप प्रार्थना कह सकते हो या एक भाव विचार भी कह सकते हो और एक प्रार्थना है । आप प्रार्थना कहो भाव कहो विचार कहो या भावना भी कह सकते हो, एक प्रार्थना विचार भावना यह भी है
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
अनुवाद - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"
हरे कृष्ण की प्रार्थना कर तो रहे हैं, हरे कृष्ण कहते हुए या राधा कृष्ण कहते हुए हम जो प्रार्थना करते हैं वह प्रार्थना क्या है, सर्वे भवंतु सुखिनः सभी सुखी हो यह भाव है, कह तो रहे हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण प्रार्थना कर रहे हैं, हम भगवान को संबोधित कर रहे हैं , भगवान का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं, हे राधे कृष्ण फिर तो राधा कृष्ण बोल रहे हैं क्या चाहते हो, क्या विचार है तुम्हारा? बदले में उसका उत्तर है सर्वे सुखिनः भवंतु हे राधा कृष्ण, हे राधा पंढरीनाथ, विट्ठल रुक्मिणी, हे सीता राम लक्ष्मण हनुमान
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे
सर्वे भवंतु सुखिनः सभी सुखी हो। सर्वे संतु निरामयः सभी निरोगी हो। सर्वे भद्राणि पश्यंतु सभी मंगलमय का अनुभव करें मा कश्चित दुखभागभवेत् कोई भी किसी को भी किंचित भी दुख ना हो
यह प्रार्थना कहो या फिर उच्च विचार। जीवन कैसा सरल और विचार कैसा, उच्च विचार। जो हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं, यह उच्च विचार है। निस्वार्थ भी है, सारे संसार का विचार, उद्धार, संसार के भाग्य का उदय सभी निरोगी रहे कोई दुखी नहीं रहे मतलब सभी सुखी रहें और सिर्फ सुखी नहीं रहे प्रल्हाद अल्हाद दायिने अल्हाद का अनुभव करें। आनंद दिव्य है भौतिक भी हो सकता है सुख दुख के साथ संबंध है लेकिन आनंद जो है आनंद का कोई द्वंद नहीं है , आनंद द्वंद के साथ नहीं जुड़ा है सुख के साथ दुख है, द्वंद है । आनंद के साथ सच्चिदानंद भगवान के साथ सभी आनंद का अनुभव करें। सर्वे भवंतु सुखिनः सभी दिव्य आनंद का अनुभव करें जप करते रहो प्रार्थना करते रहो। मैंने कहा कि यह प्रार्थना खुद के लिए भी है, अंग्रेजी में कहावत है उदारता अपने घर से शुरू हो। यह जो प्रार्थना है, यह उदारता है, हम दानी बनते हैं इसकी शुरुआत, इस औदार्य की शुरुआत इसका लक्ष्य सर्वप्रथम हम स्वयं ही होने चाहिए। यह प्रार्थना हमारे लिए भी, औरों के लिए भी सभी के लिए प्रार्थना करते रहो। श्रील भक्तिचारू स्वामी महाराज के लिए भी प्रार्थना जारी रखिए प्रार्थना करिए।
यहां पर एक और बात है वराहरूपा माताजी और सूरदास प्रभु हमारे इस्कॉन खारघर के पति पत्नी इनका भी कोरोना पॉजिटिव के संबंध में रिपोर्ट पहुंचा है। सभी तो ग्रस्त हैं ही और भी कई लोग कोरोना से ग्रस्त हैं भारत में तो 5,00,000 से भी अधिक और विश्वभर में कई सारे लोग कोरोना से ग्रस्त हैं। कोरोना नई नई बीमारी है लेकिन बीमारी होना, कोई नई बात नहीं है। संसार में सभी लोग ग्रस्त हैं ही, व्याधि से आदि से या फिर आदि भौतिक आदि दैविक आदि आध्यात्मिक कष्टों से परेशान तो हैं ही और फिर क्या कहना
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहंकार एव च।जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ।। (श्रीमद्भगवद्गीता 13.8 )
इंद्रियों के विषयों का त्याग मिथ्या अहंकार रहित जन्म मृत्यु जरा व्याधि इनका दुख दोष जानना।
इस संसार में परेशान और दुखी आप कोई भी नाम लो, कोई नहीं कह सकता कि हां मैं सुखी हूं। कोई कष्ट नहीं किसी प्रकार का दुख नहीं तो संभव नहीं होगा। भगवान ने सृष्टि बनाई है और उसका वर्णन इन शब्दों में किया है दुखालयम् अशाश्वतम फिर भगवान ने ही यह मार्ग दिया है श्री चैतन्य महाप्रभु ने
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
और कहा
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुण: । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग: परं व्रजेत् ॥ (श्रीमद भागवतम 12.3.51)
हे राजन् यह कलियुग दोषों का सागर है लेकिन इस युग में एक महान गुण है जो भी इस कलयुग में हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करता है वह इस संसार के भव बंधन से मुक्त होकर भगवान के अध्यात्मिक धाम में वापस लौट जाता है और समय और युगो में भी दोष होंगे कलियुग में अधिक दोष होंगे *कलेर्दोषनिधे राजन* ऐसी भविष्यवाणी की है शुकदेव गोस्वामी ने, टिकाएं कि है , ऐसा समय आएगा तो हम क्यों अचंभित रहे। यह सब हो रहा है, कलियुग के दोष हम अनुभव कर रहे हैं, यह सब पहले ही निर्धारित हो चुका है इसके लिए उपाय भी हैं और फिर एक ही उपाय है कलेर्दोषनिधे राजन अस्ति है, अस्थि नहीं कहना अस्थि मतलब हड्डियां, हंसती भी नहीं कहना हम हंसते हैं, हस्ती तो हाथी हुआ, अस्ति ठीक है। यह उच्चारण अस्ति एक महान गुण इस कलियुग का
कीर्तनादेव कृष्णस्य.. ये नोट करना चाहिए, अस्ति ह्येको महान् गुणः... कितने गुण या महान गुण, या इन महान गुणों से कितने महान गुण हैं, इस कलि के कोई गुण है, यह महान गुण कलि का हो सकताहै?, हां है, और तो सारे अवगुण हैं या तो दुर्गुण हैं किंतु एक गुण है, एक कहा, दो या...
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।
अनुवाद - "कलह और दंभ के इस युग में मोक्ष का एकमात्र साधन भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करना है । कोई दूसरा मार्ग नहीं है ।कोई दूसरा मार्ग नहीं है । कोई दूसरा मार्ग नहीं है ।
हरेर्नामेव केवलम.. वही बात शुकदेव गोस्वामी ने भी कही *अस्ति ह्येको *..एकः का एको हुआ संधि के नियमों के अनुसार। अस्ति ह्येको महान् गुणः.. क्या महान गुण है, कीर्तनाद..कीर्तनाद के आगे क्या.. एव और भी कुछ कह सकते थे लेकिन नहीं कहा, कीर्तनाद के बाद उन्होंने क्या कहा एवं। एवं मतलब निश्चित ही, कीर्तन से ही, हरेर्नामेव. नाम एवं नाम ही कीर्तनादेव.. और फिर शुकदेव गोस्वामी इतना ही कहते कीर्तनादेव तो हम कोई भी कीर्तन शुरु कर देते, इसीलिए उन्होंने हमारी कल्पना तक को नहींं छोड़ा है । कल्पना करो और आप सोचो, आप विचार करो, कीर्तनाद. कीर्तन तो करना है किंतु उन्होंने.. क्योंकि हम मनो धर्म में बहुत कुशल हैं । सारा संसार कौन से धर्म का पालन करता है मनोधर्म । मनोधर्म.. मुझे लगता है यह मनोधर्म हुआ, मेरा विचार है यह मनोधर्म है, इसी को फिर हम कहते हैं जुआ। जो जुगार है जुगार, जुगार खेलना, तो जब हम मनोधर्म शुरू करते हैं, मनो धर्म के अनुसार धार्मिक बनते हैं, इसको अंग्रेजी में कहते हैं व्यक्तिवाद । कई सारे वाद हैं, साम्यवाद और कौन-कौन से वाद है.. पूंजीवाद, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, तो इस तरह गांधीवाद भी है, साम्यवाद है, होते होते फिर नवीनतम वाद क्या है व्यक्तिवाद । हर व्यक्ति का वाद है, हर व्यक्ति का अपना विचार है, उसी के साथ यह माया लाभांश नियम जो करती है हर व्यक्ति का अपना विचार है। हरि हरि! इसीलिए परंपरा
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगे नष्टः परन्तप ॥ श्रीमद्भगवद्गीता 4.२ ॥
अनुवाद - इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा। किंतु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है।
एवं परंपरा प्राप्तं.. यह विचार कृष्ण का है, यह विचार ब्रह्मा जी का है, यह विचार नारद जी का है, यह विचार श्रील प्रभुपाद जी का है, यह गीता का विचार है यह भागवत का विचार है, इस तरह से चैतन्य चरित्रामृत का भी है । यह प्राधिकारी वर्ग है । लेकिन इस कलयुग में हम स्वयं ही प्राधिकारी वर्ग बन जाते हैं, और हमारे ऊपर या आगे पीछे कोई नहीं होता हम अकेले होते हैं । यह बीमारी है, यह रोग है, और वैसे यह नीच विचार है, हमारे नीच होने का यही कारण है, हम प्राधिकारी वर्ग को नहीं मानते । प्रमाण जो है प्रमाण.. कई सारे प्रमाण है, उनको स्वीकार नहीं करते और फिर करते हैं तो बहुत कुछ बोलते या बहुत कुछ बकते हैं, इसको सारा जुगार कहते है, यह ठगाई है। इसीलिए श्रील प्रभुपाद ने फिर कहा, कहते रहे ही एक ठगाता है दूसरा ठग जाता है ठगाने वाले कितने हैं सभी हैं लगभग। हरि हरि ! तो ऐसे ठगाई से बचने के लिए ऐसे मनो धर्म से बचने के लिए श्रील शुकदेव गोस्वामी महाराज इस वचन में कह रहे हैं कीर्तनादेव कृष्णस्य.. केवल कीर्तन करो ऐसा कह के वे रुके नहीं, उन्होंने कीर्तन करना है तो साथ में एक प्रकार की नियमावली भी दी है । नियमावली समझते हो.. इसे कैसे करना है.. उसे कहते हैं नियमावली। केवल ऐसा करना है नहीं कहा जाता लेकिन कैसे करना है कब, यह, वह, वह सब बताया जाता है कीर्तनादेव कृष्णस्य.. कीर्तन किसका करना है कृष्ण का कीर्तन करना है फिर क्या होगा.. मुक्त होगा व्यक्ति मुक्त होगा किस से मुक्त होगा मुक्तसङ्ग: .. संग से मुक्त होगा, कैसे संग से मुक्त होगा,
असत संग त्याग - एइ वैष्णव आचार। "स्त्री संगी" - एक असाधु 'कृष्णभक्त' आर।।च.च. मध्य २२.८७।।
अनुवाद- “एक वैष्णव को हमेशा सामान्य लोगों के सहयोग से बचना चाहिए। आम लोग बहुत अधिक भौतिक रूप से जुड़े होते हैं, खासकर महिलाओं से। वैष्णवों को भी उन लोगों की संगति से बचना चाहिए जो भगवान कृष्ण के भक्त नहीं हैं।"
असत संग त्याग एइ वैष्णव आचार. असत संग से मुक्त होगा । सात्विक राजसिक, तामसिक भी संग है और ऐसे विचार भी हैं, ऐसे स्थान भी हैं। हरि हरि ! *कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग:* मुक्त हो गया संग से। मुक्त हो गया जिसने छोड़ दिया क्या होगा, कुछ प्राप्त भी होगा, त्याग से प्राप्ति होती है । किसी चीज से हम अनासक्त होते हैं, उसी समय और किसी चीज से आसक्त भी होते हैं, या वैसे आसक्त हुए बिना हम अनासक्त नहीं होते कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्ग:. संग से या संसार से मुक्त होंगे । मुक्त होकर फिर क्या होगा, परम व्रजेत.. व्रज मतलब जाना या आना ।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ॥ श्रीमद्भगवद्गीता १८.६६ ॥*
अनुवाद - समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत ।
मामेकं शरणं व्रज.. कभी-कभी कहते हैं कि व्रज मतलब वृंदावन भगवान नेे कहा यह स्थान छोड़ो वह स्थान छोड़ो सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं .. वृंदावन में मेरी शरण लो या वृंदावन की शरण लो । ठीक है.. सभी भावों को निकालते हैं, गलत तो नहीं है । व्रज मतलब संस्कृत का शब्द है, या क्रिया है, व्रज मतलब जाना, आप जाओगे कहां जाओगे परम व्रजेत.. और वह परम क्या है
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: । यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥श्रीमद्भगवद्गीता १५.६ ॥
अनुवाद- वह मेरा परम धाम न तो सूर्य या चंद्र के द्वारा प्रकाशित होता है और ना अग्नि या बिजली से । जो लोग वहां पहुंच जाते हैं, वे इस भौतिक जगत में फिर से लौट कर नहीं आते ।
तद्धाम परमं मम.. यह सब होता है । जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
हमारा भी होगा परम व्रजेत.. जिनके लिए हम प्रार्थना करते हैं, संसार के लिए भी प्रार्थना करते हैं, वे भी लाभान्वित होंगे और उनका भी, वे भी मार्ग में महाजनों येन गथासो पंथ
तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम्। धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः सः पन्थाः॥च.च.मध्य.१७.१८६।।
अनुवाद - श्री चैतन्य महाप्रभु ने जारी रखा, “शुष्क तर्क अनिर्णायक है। एक महान व्यक्तित्व जिसकी राय दूसरों से अलग नहीं है, एक महान ऋषि नहीं माना जाता है। बस, वेदों का अध्ययन करके, जो परिवर्तनशील है, कोई भी सही मार्ग पर नहीं आ सकता है जिसके द्वारा धार्मिक सिद्धांतों को समझा जाता है।
धार्मिक सिद्धांतों का ठोस सत्य एक अनियंत्रित, आत्म-एहसास व्यक्ति के दिल में छिपा है। नतीजतन, जैसा कि शास्त्रों ने पुष्टि की है, किसी को भी महाजन अधिवक्ता के प्रगतिशील मार्ग को स्वीकार करना चाहिए। ''
उस पद पर वे भी पटरी पर आ जाएंगे, तो यह प्रार्थना है, प्रार्थना जारी रखिए ।
हरे कृष्ण।।
English
26 June 2020
Brighter aspect of Kaliyuga!
Hare Krishna! Devotees are chanting from 802 locations. Chanting is a prayer.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
Keep on offering this prayer. This prayer is for ourselves and also for others. Gaura premanande hari haribol!
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
This is bhava (emotion).
sarve bhavantu sukhinaḥ sarve santu nirāmayāḥ sarve bhadrāṇi paśyantu mā kaścidduḥ khabhāgbhaveta
Translation May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, may all see what is auspicious, may no one suffer. (Shanti Paath)
While chanting Hare Krishna, we pray that everyone should be happy. This is our bhava. We are trying to draw the attention of Radha and Krsna. Then They will ask us what is our prayer? The answer will be sarve bhavantu sukhinaḥ. O Radha Krsna! May everyone be at peace. May no one suffer from illness. May all experience auspiciousness and may no one suffer from any misery. This is a prayer. We may even say that it is high thinking. And how is the living? It is simple living. Simple living and high thinking! When we chant the Hare Krishna mahā-mantra then there is high thinking, “May everyone be happy and healthy. May everyone experience bliss.” Happiness could be material, but bliss is transcendental. Happiness is related to distress, but there is no duality with bliss.
Higher thought will be that may everyone experience transcendental bliss. Keep chanting and praying. This prayer is for ourselves too. 'Charity begins at home'. We offer prayers for others which means that we are becoming 'udar' or merciful. We should be merciful to ourselves too. This prayer is for everyone.
Do continue your prayers for Bhakti Caru Swami Maharaja. Varaha Rupa Mataji and Surdas Prabhu from Kharghar, Mumbai have also been afflicted by the Coronavirus. Please pray for them as well. 5 lakh people are affected by Corona in India and many around the world. Corona is the latest disease. People are affected by diseases in this world or with threefold miseries namely adhibhautika, adhidaivika and adhyātmika (SB 5.14.25).
indriyārtheṣu vairāgyam anahaṅkāra eva ca janma-mṛtyu-jarā-vyādhi- duḥkha-doṣānudarśanam
Translation Renunciation of the objects of sense gratification; absence of false ego; the perception of the evil of birth, death, old age and disease- all these I declare to be knowledge, and besides this whatever there may be is ignorance. (B.G.. 13.9)
Who is not miserable? There is no one who is free from any misery. Lord has made this creation and described it as duḥkhālayam aśāśvatam.
mām upetya punar janma duḥkhālayam aśāśvatam nāpnuvanti mahātmānaḥ saṁsiddhiṁ paramāṁ gatāḥ
Translation After attaining Me, the great souls, who are yogīs in devotion, never return to this temporary world, which is full of miseries, because they have attained the highest perfection. (BG. 8.15)
Śrī Krsna Caitanya Mahāprabhu gave the Hare Krishna mahā-mantra to us.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
kaler doṣa-nidhe rājann asti hy eko mahān guṇaḥ kīrtanād eva kṛṣṇasya mukta-saṅgaḥ paraṁ vrajet
Translation My dear King, although Kali-yuga is an ocean of faults, there is still one good quality about this age: Simply by chanting the Hare Kṛṣṇa mahā-mantra, one can become free from material bondage and be promoted to the transcendental kingdom. (ŚB 12.3.51
In Kali-yuga, there will be many faults. Śukhdeva Goswami had already predicated that such a time would come. Why then are we surprised? We are experiencing the faults of Kali. There is only one solution to this problem. asti means there is. Asti means bones. Hasti means elephant. Here Śukhdeva Goswami says Asti. One more news of Kaliyuga is that there is one good quality about this age. We should take note. Apart from all the demerits…
harer nāma harer nāma harer nāmaiva kevalam kalau nāsty eva nāsty eva nāsty eva gatir anyathā
Translation In this age of quarrel and hypocrisy, the only means of deliverance is the chanting of the holy names of the Lord. There is no other way. There is no other way. There is no other way. (CC Madhya 6.242)
… Śukhdeva Goswami said that there is one good quality. What is that? kīrtanād eva kṛṣṇasya. eva means certainly, only by kirtana or harer nāmaiva, only by the holy name. If Śukadeva Goswami had said upto kīrtanād eva, we would have begun kirtana. But he has not left this up to our imagination. We are very expert in mano-dharma. The whole world practices mano-dharma religion. "I think", "This is my opinion" is mano-dharma which is called gambling. We call this 'individualism'. There are many kinds of isms like communism, capitalism, nationalism, secularism, etc. Individualism is the latest ism. Every person has his own opinion. In this way Maya divides and rules. That's why we have paramparā.
evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣayo viduḥ sa kāleneha mahatā yogo naṣṭaḥ paran-tapa
Translation This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost. (BG. 4.2)
This is the opinion of Krsna, Brahma, Nārad, Śrila Prabhupāda, Bhagavad-gītā, Śrīmad Bhāgavatam, Caitanya Caritāmrta. These are the authorities. But in Kaliyuga, we try to become authority. This is a disease or low thinking. We don't accept authority. We keep on saying something. This has been called gambling or cheating. That's why Śrila Prabhupāda says, ‘Cheaters and being cheated.’ Cheaters are many. To save ourselves from such cheating, Śukadeva Goswami says kīrtanād eva kṛṣṇasya. He also gave us the manual showing us how to do it. We have to perform Krsna's kirtana. Then we will get liberated from asat sanga (association of non devotees).
asat-saṅga-tyāga, — ei vaiṣṇava-ācāra ‘strī-saṅgī’ — eka asādhu, ‘kṛṣṇābhakta’ āra
Translation A Vaiṣṇava should always avoid the association of ordinary people. Common people are very much materially attached, especially to women. Vaiṣṇavas should also avoid the company of those who are not devotees of Lord Kṛṣṇa. (CC Madhya 22.87)
We will become free from rājasik and tāmasik sanga.
utsāhān niścayād dhairyāt tat-tat-karma-pravartanāt saṅga-tyāgāt sato vṛtteḥ ṣaḍbhir bhaktiḥ prasidhyati
Translation There are six principles favorable to the execution of pure devotional service: (1) being enthusiastic, (2) endeavoring with confidence, (3) being patient, (4) acting according to regulative principles [such as śravaṇaṁ kīrtanaṁ viṣṇoḥ smaraṇam – hearing, chanting and remembering Kṛṣṇa], (5) abandoning the association of non devotees, and (6) following in the footsteps of the previous ācāryas. These six principles undoubtedly assure the complete success of pure devotional service. (Verse 3, The Nectar of Instruction)
We will achieve something by detachment. We will get attached to something by detachment from something else. Without getting attached to something, we cannot be detached from another.
mukta-saṅga paraṁ vrajet
We will get liberated from material bondage and then vrajet means one can go or come.
sarva-dharmān parityajya mām ekaṁ śaraṇaṁ vraja ahaṁ tvāṁ sarva-pāpebhyo mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ
Translation Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear. (BG 18.66)
Sometimes we say 'vraja' meaning Vrindavan. Lord has said, “Leave all the places and just surrender unto Me in Vrindavan. This can also be the bhava. This is not wrong. But 'vraja' means - 'to go' , in Sanskrit. paraṁ vrajet means you will go to the transcendental kingdom.
na tad bhāsayate sūryo na śaśāṅko na pāvakaḥ yad gatvā na nivartante tad dhāma paramaṁ mama
Translation That supreme abode of Mine is not illumined by the sun or moon, nor by fire or electricity. Those who reach it never return to this material world. (BG. 15.6)
This all happens when we chant Hare Krishna.
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare
In this way, we and those for whom we are praying will also experience 'paraṁ vrajet’
tarko ’pratiṣṭhaḥ śrutayo vibhinnā nāsāv ṛṣir yasya mataṁ na bhinnam dharmasya tattvaṁ nihitaṁ guhāyāṁ mahājano yena gataḥ sa panthāḥ
Translation Śrī Caitanya Mahāprabhu continued, “ ‘Dry arguments are inconclusive. A great personality whose opinion does not differ from others is not considered a great sage. Simply by studying the Vedas, which are variegated, one cannot come to the right path by which religious principles are understood. The solid truth of religious principles is hidden in the heart of an unadulterated, self-realized person. Consequently, as the śāstras confirm, one should accept whatever progressive path the mahājanas advocate. (CC Madhya 17.186)
Keep on praying. Wait as there is one announcement.
All devotees are eagerly waiting for Guru Maharaja's Vyasa Puja which is going to be celebrated on the day of Asadhi Ekadasi. Many devotees couldn't understand yesterday's announcement. Earlier we used to celebrate Guru Maharaj's Vyasa Puja in Pandharpur dhama in which many devotees and senior disciples of Guru Maharaj around the world couldn't deliver their Glorification due to lack of time. Considering this, we have organised an International "Loka Śiśya Sanga Samelan", from 27 to 30 June. Time will be 6.30 to 8 am IST. All the temple authorities are requested to begin darsana arati and Guru Puja after 8 am. If you want to send a glorification, you can send it to Padmamali Prabhu at 8980636683. Especially mention the services you have offered to Guru Maharaja and future services. All are requested to attend these 4 days program in Vaiśnava attire and tilaka, especially those who deliver the glorification. You will be given 5 minutes. The participants will be informed prior to the starting of the program.
Hare Krishna!