*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-२९/०५/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
*बद्री नारायण नारायण नारायण*
*बद्री नारायण नारायण नारायण*
*बद्री नारायण नारायण नारायण*
आप भी कहिये
*बद्री नारायण नारायण नारायण*
हरे कृष्ण
हमारे ऑल इंडिया पदयात्रा के भक्त श्री बद्रिकाश्रम पधारे है।
आप मेरे पीछे जो मंदिर देख रहे हो वो बद्रीनाथ धाम का मंदिर है।
वे भक्त अपने फोन से हमे श्री सरस्वती नदी के दर्शन भी करा रहे है।
हम आप सभी का स्वागत करते है।
आप सभी हमारे साथ जप कर ही रहे है कुछ समय से
लेकिन मेने कुछ अंग्रेजी भाषी भक्तों को भी जुड़े हुए देखा और मैं उन्हे बताना चाहता हु की में काफी प्रसन्न हूं उन्हे देखकर
और मैं यह बताते हुए भी प्रसन्न हो रहा हूं की हमारे पदयात्रा भक्त कल बद्रिकाश्रम पहुंच गए है। ब्रह्मचारी भक्तो के साथ मैंने कुछ गृहस्थ भक्त भी देखे
बद्रिकाश्रम अति पवित्र धाम है।
श्री उद्धव जी भी वहा नित्य निवास करते है।
हमारे अति महत्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमद भागवत महापुराण यही बद्रिकाश्रम में लिखा गया है
वहा श्रील व्यासदेव की गुफा है
और श्री गणेश की भी गुफा है।
श्रीमद भागवत के पहले स्कंध के ३ से ७ अध्याय में श्रील व्यासदेव और नारद मुनि का जो संवाद देखने मिलता है वो यही हुआ है।
भगवान श्री नर नारायण यही तपस्या कर रहे है।
उन्ही का नाम जपते हुए श्री नारदमुनी विचरण करते है।
नारदमुनी श्रील व्यासदेव के भी गुरुदेव है। काफी यादें मुझे आ रही है बद्रीनाथ का विचार करते हुए।
पर समय सीमित होने के कारण और मेरा एक ही मुख होने के कारण में नही जानता की उसमे से कितनी बार में बता पाऊंगा।
भगवान नारायण यहां तपस्वी के रूप में निवास करते है।
तपस्वी होने के कारण वे लक्ष्मी देवी के साथ नही है।
श्री लक्ष्मी देवी यहां अपने स्वरूप में नही लेकिन नारायण की सेवा के लिए एक बद्री वृक्ष के रूप में रहती है
बद्री नारायण का अर्थ है लक्ष्मी नारायण
यह चार महत्वपूर्ण धामों में से एक है।
लगभग सारे ही भारतीय लोगो के कामना होती है की वे बद्रीनाथ के दर्शन जीवन में एक बार तो कर ले।
मुझे कमसेकम ३ बार यह लाभ मिला है
पहली बार में १९७७ में गया था जब श्रील प्रभुपाद वृंदावन में रहते थे और उनका स्वस्थ बहुत अच्छा नही था
हमारी नरदमून संकीर्तन पार्टी थी जो अब श्रील प्रभुपाद आदेशानुसार बैलगाड़ी पदयात्रा में बदल चुकी थी
हम पैदल गए थे, नाकि हवाई जहाज से
कल जो ये पदायत्री पहुंचे है वह छठी बार है, वे भारत की परिक्रमा में छठा चक्कर लगा रहे है।
आप मेरे पीछे चित्र में देख सकते हो की बद्रीनाथ विशाल हिमालय पर्वतों के बीच में स्थित है। भगवान कहते है की स्थावर वस्तुओं में मैं हिमालय हूं
तो हम इस विशाल हिमालय का दर्शन करते हुए आगे बढ़ रहे थे और यह बहुत ही विशेष अनुभव था, मुझे एक मच्छर जैसा होने का अनुभव हो रहा था
विनम्रता बढ़ाने वाला अनुभव है ये
सामने देखो तो विशाल हिमालय जो भगवान से अभिन्न है
नीचे खाई में देखो तो गंगा जो भी भगवान का स्वरूप है। ऊपर देखो तो सूर्य, वो भी भगवान का स्वरूप है
भगवान कहते है सारे तेजस्वी वस्तुओ में सूर्य हूं। तो मार्ग में यह तीन वस्तु ही दिख रही थी और तीनों ही भगवदस्वरूप
हम ऊपर की ओर बढ़ते जा रहे थे
हमारी सोच भी ऊंची बढ़ती जा रही थी
श्री निताई गौरसुंदर को मस्तक पर धारण करके हम बढ़ रहे थे
जो आज चल रहे है वही १९८६ में चले थे, समग्र ब्रह्मांड में सबसे अधिक घूमे हुए विग्रह है ये।
बहुत ही अलौकिक अनुभव हो रहा था। हिमालय जैसा ऊंचा और कुछ नही है, तो जितना ऊपर हम उठे थे हम उतने गोलोक वैकुंठ के नजदीक थे। मंदिर की चारो ओर बर्फ है लेकिन मंदिर के समीप, परिसर में ही २ प्राकृतिक गर्म पानी के कुंड है
आप देख सकते हो की बहुत भीड़ लगी है, शिव और पार्वती यहां रहते थे और यही स्नान करते थे। एक कुंड का पानी तो इतना गर्म है की श्रद्धालु भक्त कपड़े की पोटली में चावल डालकर उसमे पकाते।
एक दो माला होने पर चावल पाक जाते।
दूसरे कुंड में सहने योग्य गर्म पानी है
हमने व्यासदेव की गुफा भी देखी
श्री माध्वाचार्य भी यहां ८०० वर्ष पूर्व आए थे
उन्हे यही व्यासदेव से दीक्षा भी प्राप्त हुई।
तदुप्रांत उन्होंने वेदान्त सूत्र पर अपना भाष्य लिखा और श्रील व्यासदेव को दिया
तो जब हम यह से वृंदावन लौटे हम उनसे मिलने गए। उनकी तबियत बहुत अच्छी नही थी।
वे बिस्तर में लेट थे और मुझसे पूछ रहे थे की प्रचार कैसा चल रहा है और कौनसी पुस्तक अच्छी बिक रही है?
तो यह सारा रिपोर्ट देते हुए मेने श्रील प्रभुपाद से कहा की हमने आपकी भगवद गीता श्रील व्यासदेव को उनकी गुफा में जाकर बताई
यह सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुए
तो यह मंदिर केवल ६ महीने खुला रहता है
सर्दियों के समय मंदिर बर्फ से ढका जाता है और सारे लोग बद्रीनाथ से निकल कर नीचे के स्थानों में चले जाते है। इन ६ महीने नरदमुनी और देव गण पूजा करते है,
भारतीय सेना के तैनात कई सैनिकों का अनुभव है की मंदिर बन होने बावजूद उन्हें शंख एवं घंट आदि की आवाज आती है
अर्थात सेवा चालू ही रहती है
वहा भारत का आखरी गांव भी पड़ता है
वहा एक चाय की दुकान भी है जिसपर लिखा है "भारत की आखरी चाय की दुकान"
यह दुर्भाग्य है की अब चाय इतनी प्रचलित हो गयी है। भीम के द्वारा बनाया हुआ पुल भी वहा है
सरस्वती नदी के ऊपर यह विशाल पत्थर रखकर भीम ने पांडवों के जाने के लिए मार्ग तय किया था।
सबसे पहले द्रौपदी ने देह छोड़ा मार्ग में
फिर सहदेव और तदुपरांत नकुल
फिर अर्जुन
फिर केवल भीम और युधिष्ठिर रह गए
भीम ने यह पुल बनाया केवल एक विशाल पत्थर रखकर। फिर आगे जाकर अंत में केवल युधिष्ठिर महाराज बच गए और उन्हें विमान लेने आया।
उनके साथ पूरे मार्ग में एक कुत्ता भी आया था
उन्होंने विमान चालक जो स्वयं यमराज थे उनसे कहा की यदि कुत्ता नही आसक्त तो मैं भी नही आऊंगा
यह उनकी एक परीक्षा थी जिसमे वे उत्तीर्ण हुए। ध्रुव महाराज भी भगवद धाम लौटते समय यहां आए थे और उन्होंने स्नानादि करके ऋषियों से भेंट करी थी। उन्होंने अपनी माता का भी स्मरण किया, वे मेरी मार्गदर्शक रही है, आज में उनके बिना भगवद्धाम कैसे जाऊं।
तभी उन्होंने समिपमे एक और विमान देखा जिसमे सुनीति माता भी भगवद्धाम प्रयाण कर रही थी।
अर्जुन भी यही से अपने पिता इंद्र से मिलने गए थे। सारे पांडव और द्रौपदी बद्रिकाश्रम में उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। एक बार एक दिव्य पुष्प उड़ते हुए उनके पास आया और द्रौपदी ने और इसे पुष्पों की मांग की तो भीम नजदीक के एक पर्वत पर गए
मार्ग में वे एक वृद्ध वानर से मिले।
वे अपनी लंबी पूछ मार पर लेटाए हुए सो रहे थे
भीम ने उनसे निवेदन किया की वे अपनी पूछ हटा ले पर उन्होंने कहा की में अति वृद्ध हु, तुम ही हटा दो। पर अतिशय दम लगाने पर भी उनसे पूछ न हिली और निवेदन करने पर उस वृद्ध वानर ने दर्शन देते हुए बताया की वे हनुमान थे और उन्हे कई वरदान दिए। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया की महाभारत के युद्ध में वे साथ देंगे और अर्जुन के रथ पर वे ध्वजा बन कर विराजमान हुए।
मैं उस पर्वत का नाम भूल गया हूं
समय किसके लिए नही रुकता, समय हो गया है, मैं अपनी वाणी को यही विराम देता हु। हम रोज मिलेंगे ऐसी आशा है।
हरे कृष्ण।
गौर प्रेमा नंदे हरी हरी बोल।
बद्रिकाश्रम धाम की जय
माधवाचार्य की जय।
शंकराचार्य की जय
श्रील प्रभुपाद की जय
ग्रन्थ राज श्रीमद भागवतम की जय।
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By admin|2023-07-29T09:38:57+00:00May 29th, 2022|Comments Off on Badrinath – The birthplace of various scriptures!