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28-12-2019 विषय : हरिनाम के प्रति होने वाले दूसरे अपराध का वर्णन मैं आपको जप करते हुएदेखता हूँ तथा भगवान भी आपको देखते हैं तथा इससे भगवान प्रसन्न होते हैं। वे न केवल आपको देखते हैं अपितु आपके जप को सुनते भी हैं। जब भगवान हमें सुनते हैं तब वे यह जानते हैं कि हमारे मन के भीतर कौन से भाव तथा विचार आ रहे हैं। इस प्रकार हमारे मनोभावों को जानकर भगवान हमसे अधिक प्रसन्न तथा कम प्रसन्न होते हैं। भगवान भावग्रही है इसलिए वह हमारे भावों को ग्रहण करते हैं अतः आपको अत्यंत ध्यान पूर्वक तथा प्रेम पूर्वक इस हरिनाम का जप करना चाहिए। हमें हरि नाम के प्रति होने वाले अपराधों से विशेष रूप से बचना चाहिए। हरि नाम के प्रति होने वाला दूसरा अपराध इस प्रकार है - शिव ब्रह्मा आदि देवताओं के नामों को भगवान विष्णु के नामों के समान तथा उससे स्वतंत्र समझना। मैं चंडीदास विद्यापति का चरित्र पढ़ रहा था यह एक बहुत बड़े कवि हुए हैं। चैतन्य महाप्रभु भी इनकी कविताएं तथा भजन पढ़ते और उसका आस्वादन करते थे। चंडीदास का ऐसा दिव्य व्यक्तित्व था। उन्होंने भगवान के प्रति अपने भक्ति भाव तथा प्रेम का प्रदर्शन अपनी कविताओं के माध्यम से किया। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को चंडीदास द्वारा रचित यह गीत तथा कविताएं अत्यंत प्रिय थे। यह चंडीदास दुर्गा देवी चंडी के एक महान भक्त थे। यह दो भाई थे उनमें से एक का नाम चंडीदास है तथा दूसरे भाई के नाम का वर्णन नहीं आता है। चंडीदास चंडी देवी की आराधना करते थे तथा उनके भाई शालिग्राम शिला की आराधना करते थे। चंडीदास अत्यंत समृद्ध थे उनके पास बहुत बड़ा खेत था उद्यान थे और उन उद्यानों में उन्होंने कई प्रकार के पुष्प लगाए हुए थे जिनसे वे चंडी देवी की आराधना करते थे। परंतु इसके विपरीत उनके भाई के पास में कोई उद्यान नहीं था जिससे पुष्पों का चयन करके वे शालिग्राम शिला की आराधना कर सके। इसलिए उनका भाई अपने शालिग्राम को पुष्प नहीं चढ़ा पाते थे। एक दिन चंडीदास के भाई ने चंडीदास के उद्यान में एक अत्यंत विशेष पुष्प देखा। उसने विचार किया कि काश मैं यह पुष्प मेरे शालिग्राम को चढ़ा सकता। उसने न केवल ऐसा सोचा अपितु अपने मन में उसने शालिग्राम शिला को वह पुष्प अर्पित भी कर दिया। अगले दिन प्रातः चंडीदास अपनी आराध्या चंडी देवी की आराधना की तैयारी कर रहे थे। इसके लिए वे बगीचे में गए और उन्होंने उसी पुष्प को तोड़ा जिसे उनके भाई ने मानसिक रूप से शालिग्राम को अर्पित कर दिया था। उन्होंने वह पुष्प तोड़कर चंडी देवी को अर्पित किया और इस पुष्प को स्वीकार करके चंडी देवी अत्यंत प्रसन्न हुई। वह जानती थी कि यह पुष्प पहले भगवान को अर्पित हो चुका है। चंडी देवी इतनी अधिक प्रसन्न हुई कि वे स्वयं वहां प्रकट हो गई और उन्होंने चंडीदास को दर्शन दिया। चंडीदास से आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने पूछा कि आज ऐसा क्या हो गया? मैं प्रतिदिन आपकी आराधना करता हूं मैं प्रतिदिन आपको पुष्प चढ़ाता हूं परंतु आज ऐसा क्या विशेष हुआ कि आप इतनी अधिक प्रसन्न हो गई कि आपने मुझे अपना दर्शन दिया? चंडी देवी ने कहा चंडीदास आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज तुमने मुझे मेरे प्रभु नारायण, विष्णु अथवा शालिग्राम के प्रसादी पुष्प को दिया है। जो पुष्प पहले उन्हें चढ़ाया गया वह पुष्प आज तुमने मुझे दिया है। इसलिए मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं। चंडीदास ने पूछा तो क्या नारायण आप से अधिक शक्तिशाली है? चंडी देवी ने कहा हां हां वे मेरे स्वामी हैं वही मेरे आराध्य भगवान है। आराधनम परम देवी विष्णु आराधना परम शिव जी ने भी एक बार इस बात की संस्तुति की। चंडी देवी ने बताया कि सभी प्रकार की आराधना में भगवान विष्णु की आराधना सर्वश्रेष्ठ है। भोक्तारम यज्ञ तपसाम सर्व लोक महेश्वरम अर्थात यदि हम किसी को प्रसन्न करना चाहते हैं अथवा हम किसी की सेवा करना चाहते हैं तो वह केवल भगवान विष्णु शालिग्राम अथवा श्री कृष्ण की ही आराधना हो सकती है। उस दिन चंडीदास समझ गए कि उन्होंने अभी तक अपना जीवन व्यर्थ ही गवा दिया। राधा-कृष्ण ना भजिया जानिया शुनिया विष खाईनु। चंडीदास इस प्रकार पछतावा कर रहे थे मैंने मेरा संपूर्ण जीवन व्यर्थ ही गवा दिया मैंने प्रारंभ से क्यों भगवान विष्णु की आराधना नहीं कि? इस प्रकार उन्होंने स्वयं को ठीक किया तथा पुनः भगवान विष्णु की आराधना करना प्रारंभ किया। देवता विष्णु नहीं है ना ही वे विष्णु तत्व है। देवी देवता स्वयं भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। ओम तद विष्णु परमं पदम् सदा पश्यन्ती सूर्य: यह शास्त्र के वचन हैं देवी देवता क्या करते हैं? ओम तद विष्णु परमपदम। भगवान विष्णु के चरण कमलों का ध्यान करते हैं। चंडीदास का नाम चंडीदास ही रहा परंतु चंडी देवी उनसे तब प्रसन्न हुई जब उन्होंने भगवान विष्णु के उस प्रसादी पुष्प को चंडी देवी को अर्पित किया। इस प्रकार चंडीदास भगवान के एक परम भक्त बने तथा उन्होंने भगवत प्रेम की प्राप्ति की तथा वे सदैव भगवान विष्णु की सेवा में संलग्न रहते थे । स वै पुंसः परो धर्मो, यतो भक्तिर अधोक्षज। अहेतुकी अप्रतिहता जया आत्मा सु प्रसीदति। यह भागवतम का सिद्धांत है। अधोक्क्षज भगवान का नाम है। अधोक्क्षज परम भगवान की आराधना करना हम सभी का परम धर्म है। हमें उनकी सेवा किस प्रकार करनी चाहिए? अहेतुकी अप्रतिहता। इसमें किसी भी प्रकार का हेतु नहीं होना चाहिए अथवा स्वयं के इंद्रिय तृप्ति की लालसा नहीं होनी चाहिए। देवी देवताओं के भक्त शुद्ध आध्यात्मिक सेवा नहीं करते हैं अपितु वे भुक्ति की इच्छा रखते हैं क्योंकि वह सदैव अपनी सेवा के प्रतिफल में उनसे कुछ ना कुछ इंद्रिय तृप्ति की मांग करते हैं। इसलिए भगवान के जो आराधक है उन्हें भक्त अथवा योगी कहा जाता है। वही देवी देवताओं के आराध्य को भोगी कहा जाता है। सार सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाय। भगवान के भक्त भी सारग्राही ही होते हैं वे केवल सार को ग्रहण करते हैं और कचरे को उड़ा देते हैं। इसलिए हमें विष्णु तत्व तथा देवी-देवताओं के तत्व को समझने की अत्यंत आवश्यकता है। उनके तत्व अलग अलग है तथा उनसे जो वरदान प्राप्त होते हैं वह भी भिन्न-भिन्न है। परम भगवान की सेवा करने से हमें भगवत प्रेम की प्राप्ति होती है और दिन प्रतिदिन इस प्रेम में वृद्धि होती है वही देवी देवताओं की आराधना करने से दिन प्रतिदिन हमारे काम में वृद्धि होती है। आप देवी देवताओं की आराधना करके भौतिक जगत में इंद्रिय तृप्ति को प्राप्त कर सकते हैं परंतु आपको भगवत प्रेम की प्राप्ति नहीं हो सकती। देवान देव यजो यान्ति मत भक्त यान्ति माम अपि। भगवान भगवत गीता में कहते हैं यह अत्यंत ही सरल तथा स्पष्ट है। जो देवी-देवताओं की आराधना करते हैं वे उनके लोक को जाते हैं परंतु जो मेरी आराधना करता है वह भक्त मेरे परमधाम को प्राप्त करता है। अतः आप कहां जाना चाहते हैं? स्वर्ग, वैकुंठ अथवा गोलोक? अतः यह समझिए कि भगवान कौन है तथा देवी देवता कौन है? अतः ध्यानपूर्वक जप करने के लिए हमें इस हरि नाम के प्रति होने वाले दूसरे अपराध से बचना चाहिए। मैंने आपको यह अपराध चंडीदास की इस कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया है। चंडीदास चंडी देवी की आराधना करते थे परंतु अंततोगत्वा चंडी देवी तभी उनसे प्रसन्न हुई जब उन्होंने भगवान विष्णु के उस प्रसादी पुष्प को चंडी देवी को अर्पित किया तथा इस प्रकार प्रसन्न होकर चंडी देवी ने उन्हें भगवान विष्णु की सेवा की तरफ मोडा। तब वह चंडीदास भगवान विष्णु के एक परम भक्त बने तथा उन्हें कृष्ण प्रेम की प्राप्ति हुई। तत्पश्चात उन्होंने भगवान के प्रेम को प्राप्त करके कई दिव्य गीतों की रचना की जो भगवान के प्रेम से भरे हुए थे और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को यह गीत अत्यंत प्रिय थे। चैतन्य महाप्रभु कहते थे मैं चंडीदास के गीत सुनना चाहता हूं। इस प्रकार यह चंडीदास एक समय चंडी देवी के दास थे परंतु अंततः वे कृष्ण दास बन गए। इसलिए हमें इसको ठीक प्रकार से समझना चाहिए तथा अन्य को भी समझाना चाहिए। जारे दाखो तारे कहो कृष्ण उपदेश । आप अधिक से अधिक मात्रा में भगवद्गीता का वितरण कीजिए जिससे सभी व्यक्ति आध्यात्मिक जीवन के इस सिद्धांत को समझ सकें। भगवत गीता में कई प्रकार के सिद्धांतों का वर्णन आता है और श्रीला प्रभुपाद ने इन सिद्धांतों को अत्यंत श्रेष्ठ तरीके से विस्तृत रूप से वर्णित किया है। इतना विस्तृत वर्णन होने के पश्चात भी लोग देवी-देवताओं की आराधना करते हैं और परम भगवान की आराधना नहीं करते। ऐसे कई जीव भगवान की तरफ मुड़ सकते हैं यदि उन्हें एक बार कोई गीता दे सके। कई ऐसे हैं जो अपना जीवन व्यर्थ ही गवा रहे हैं। इसलिए उन तक भी आप यह संदेश पहुंच आइए और उन्हें भी इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के लिए प्रेरित कीजिए। आप सभी इस हरि नाम के सेवक हैं। आप सभी हरि नाम के प्रति होने वाले इन अपराधों से बचें जिससे आपको दिव्य प्रेम की प्राप्ति हो सके और आप ध्यान पूर्वक भगवान के नामों का जप कर सके और इससे भगवान आप पर प्रसन्न हो सके। हरे कृष्ण!

English

28 December 2019 Avoid the second offence to the holy name I am watching you chanting and the Lord also sees all of you chanting. When the Lord sees you all chanting the Lord becomes very happy. He not just sees you but He also listens to you. When the Lord listens, He knows or He is watching our thoughts and emotions also. And depending upon that the Lord is more pleased by someone and less pleased by someone. Lord sees your bhava. Lord is bhavagrahi so you should chant with love and attention. We should avoid nama-aparadha /offences against the holy name. The second offence is: To consider the names of demigods like Lord Siva or Lord Brahma to be equal to or independent of the name of the Lord Vishnu. I was reading caritra of Chandi Dasa Vidyapati who was a great poet. Caitanya Mahaprabhu used to relish his poems. Such was Chandi Dasa. He has demonstrated his bhava bhakti, love for the Lord through his poems. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu used to like the poems of Chandi Dasa. So this Chandi Dasa was a great devotee of Durga Chandi. They were two brothers Chandi Dasa and his brother’s name is not mentioned. Chandi Dasa used to worship Chandi Devi and his brother used to worship Saligram Sila. Chandi Dasa was rich. He had a farm, land and a big garden where he had many flowers and with those flowers he would worship Chandi Devi. But his brother who used to worship Saligram Sila did not have any garden. So he could not even offer flowers to the Lord. One day Chandi Dasa’s brother saw a very special flower in the garden. He thought, ‘I wish I could offer this flower to my Saligram’. He not just thought it, but in his mind he offered the flower to his Saligram Sila. The next day Chandi Dasa was preparing the worship of his Chandi Devi. He went to the garden and picked the same flower which was offered to Saligram by his brother. He offered that flower to Chandi Devi who was very pleased. She knew that flower was offered to the Lord. She appeared and gave darsana to Chandi Dasa. Chandi Dasa was surprised, “What happened today? I worship you daily. I offer you flowers. What is so special today that you are so happy and giving me darsana?” Chandi Devi said, “Thank you Chandi Dasa. Today you offered me prasadi flower of my Lord Saligrama or Narayan or Visnu. The flower which was offered to Him you have offered me today. So I am very happy.” Chandi Dasa said, “So Narayan is more powerful than you?” Chandi Devi, “Yes, Yes. He is my Swami, my Lord.” aradhananam param devi visnor aradhanam param Once Shivji had also told me this. So Chandi Devi is saying “Of all aradhana, visnu- aradhanam is the best." bhoktaram yajna-tapasam sarva-loka-mahesvaram  [BG 5.29] The only enjoyer whom we should try to please is Lord Visnu, Saligram, Sri Krsna. So from that day Chandi Dasa understood that he had wasted his lifetime. radha-krishna na bhajiya, janiya suniya visha khainu Chandi Dasa was lamenting. ‘I wasted by life. Why didn’t I worship Visnu since the beginning.’ He corrected himself and started the worship Lord Visnu. Demigods are not the Lord, they are not Visnu tattva. Demigods also worship Lord Visnu. om tad visnoh paramam padam sada pasyanti surayah These are the words of sastra. What do demigods do? om tad visnoh paramam padam. They meditate on the lotus feet of Lord Visnu. So Chandi Dasa’s name remained the same but Chandi Devi was pleased only when Lord Visnu’s prasada was offered to her. So Chandi Dasa became a great devotee of the Lord and he achieved the Lord’s love and devotional service by worship of Lord Visnu. sa vai pumsam paro dharmo yato bhaktir adhokṣaje ahaituky apratihata (SB 1.2.6). This is siddhanta of Bhagavatam. .Yato bhaktir adhoksaje. Lords name is Adhoksaja. Worshiping Him is param dharma. How should you worship Him? ahaituky apratihata. There should be no motive, no desire to enjoy or sense gratification. The devotees of demigods are not performing devotional service, but they are engaged in bhukti since in return they desire sense gratification. So the Lord’s worshippers are called bhaktas or yogis. On the other hand demigod worshipers are bhogi. saar-saar-ko-gahi-rahe-thotha-dey-udaaye The Lord’s devotees are saragrahi, that is they only accept the essence and throw away the useless. So we need to understand Visnu tattva and tattva of demigods. Their tattva of worship is different and the benedictions they give are also different. Worship of the Lord will enrich us with love of Godhead and worship of demigods will enrich us with lust. Your desires for material enjoyment may get fulfilled but you not get love of Godhead. devan deva-yajo yanti mad-bhakta yanti mam api [BG 7.23] Lord has said in Bhagavad gita, it’s very simple and very clear. Those who worship the demigods go to the planets of the demigods, but My devotees ultimately reach My supreme planet. So where do you all want to go? Heaven or Vaikuntha or Golok? So try to understand who is Lord and who Demigod are? So to chant with attention one needs to avoid second offence to holy name. So I tried to explain this through the story of Chandi Dasa. Chandi Dasa was worshipping Chandi Devi but ultimately Chandi Devi only reformed him and directed him towards Visnu. Then he became a great devotee of Lord Visnu and achieved Krsna prema. And after achieving the love of Godhead he wrote poems filled with love that Caitanya Mahaprabhu liked his poems. Caitanya Mahaprabhu used to say “I want to hear Chandi Dasas poems.” So once he was Chandi Dasa and then he became Krsna Dasa. To understand this nicely and preach these things. Jare dako tare kaho krsna upadesh Keep distributing gita then people will understand the principles of devotion life. Many other siddhants are given in Bhagavat-gita by the Lord and Srila Prabhupada has explained them very nicely. yanti deva-vrata devan pitrn yanti pitr-vratah bhutani yanti bhutejya yanti mad-yajino 'pi mam [BG 9.25] People are still worshipping demigods and not worshipping Lord. So many of them can turn to the Lord once they get Gita. So many of them are wasting their lives. Let this message reach to them and make them chant Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Krsna Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare You are worshippers of the holy name. Avoid these offences against the holy name so that their devotion is pure, attentive and pleasing to the Lord.

Russian

Джапа сессия 28.12.2019 У нас сегодня 366 участников. Численность может возрасти. Я вижу вас воспевающими. Господь также видит вас и Он доволен когда видит вас воспевающими. Он не только видит вас, также Он слышит вас. Тогда Он становится ещё более удовлетворённым. Он знает ваши чувства и мысли. И Он становится более или менее довольный кем-то. Пожалуйста не воспевайте сейчас. Пожалуйста слушайте. Господь голоден на Бхаву. Нам нужно воспевать внимательно. Мы должны избегать оскорблений. Второе оскорбление считать Имена Господа и полубогов на одном уровне. Я читал о Чанди Дас. Он выразил свою преданность Господу через поэмы Ему, которые Господь Чайтанья высоко оценил. Чанди Дас поклонялся до этого Чанди Деви. Его брат поклонялся Шалаграму. Чанди Дас был богат, имел поля и сады на которых привык выращивать много цветов, которые использовал для поклонения Кали. Его брат поклонялся Шалаграму, но у него не было садов. Он почти не использовал цветов для предложения. В один день он увидел цветок в саду Чанди даса. И он предложил этот цветок Шалаграму в своем уме. На следующий день Чанди дас взял этот же самый цветок и предложил его Чанди Деви. Этот цветок был очень особенным. Чанди деви была очень довольна этим предложенным цветком и дала даршан Чанди дасу. Чанди дас задумался, почему она стала такой удовлетворённой сегодня. Она сказала, что она довольна тем, что ей предложили цветок, который до этого был предложен её Господину. Она сказала, что как только ты предложил этот цветок мне, я очень обрадовалась, потому что я Его служанка. Чанди дас спросил, выше ли Нарайана, чем ты? Однажды Господь Шива сказал мне, что поклонение Господу Вишну самое лучше. Всё, что нам нужно это радовать Кришну, который является Верховным Наслаждающимся. Чанди дас выразил сожаление, что он до сих пор сознательно употреблял яд. Сразу же он исправил себя и начал поклонятся Вишну. Все полубоги также поклоняются Господу Вишну. Полубоги также принимают прибежище и медитируют на лотосные стопы Господа Вишну. Чанди Деви была очень довольна, когда Ей предложили цветок, который сначала был предложен Господу Вишну. Его имя осталось тоже самое как Чанди дас. Тогда Чанди дас получил бхакти и любовь к Господу и надлежащим образом поклонялся Ему. Высшая религия это поклонение Адхокшадже. Как поклонятся Ему? Это должно быть свободно от скрытых мотивов удовлетворения чувств. Поклоняющиеся полубогам для удовлетворения чувств не преданные. Как они просят взамен на удовлетворение чувств. Поклоняющиеся Господу это бхакты или йоги. До тех пор пока поклоняются полубогам это bhukta. Поклоняющиеся Господу это Sara grahi. Мы должны принять суть, а не тяжесть всего мира. Нам следует понять различие между Вишну Таттва и полубогами. Поклоняясь Господу мы получим любовь, но поклоняясь полубогам мы получим выполнение наших материальных желаний. Поклоняющиеся полубогам могут достичь высших райских планет. Но поклоняющиеся Кришне могут пойти на Кришна Локу. Так куда вы хотите пойти? Райские планеты или Вайкунтха? Такое понимание, что такое Вишну Таттва и полубоги и их положение. Поэтому воспевайте Святое Имя бережно, внимательно, мы должны защитить себя от второго оскорбления. Я попытался объяснить это через историю о Чанди дас. Чанди Деви только исправила его и направила его к Господу Вишну. Тогда он стал преданным Господа и достиг любви к Нему. Также он написал поэмы наполненные любовным экстазом. Господь Чайтанья обратился с просьбой к Сварупе Дамодаре прочитать те поэмы. Таким образом однажды Чанди дас стал Шри Кришна дас или Радха Кришна дас. Поэтому поймите это и поделитесь этим со всеми. Также распространяйте Бхагавад Гиту. Тот кто читает Бхагавад Гиту поймёт все выводы, уроки. Господь объяснил это в Б.Г. и Шрила Прабхупада подробно подготовил это. Так поклоняющиеся нескольким полубогам могут принять поклонение Господу Вишну, иначе они напрасно тратят свою жизнь. Сделайте их воспевающими и объясните это им тщательно. Все вы поклоняющиеся Святому Имени, которое мы должны распространить по всему Миру. Тогда их воспевание будет чистым. (Перевод матаджи Оджасвини Гопи)