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*जप चर्चा*
*वृंदावन धाम से*
*31 अक्टूबर 2021*
हरे कृष्ण ! आज 706 भक्त हमारे साथ जपा टॉक में सम्मिलित हैं। आज हम थोड़ा जल्दी जपा टॉक शुरू कर रहे है क्योंकि मुझे कृष्ण बलराम मंदिर में श्रृंगार दर्शन के लिए पहुंचना है और मुझे मंदिर में 8 बजे भागवतम कक्षा देनी हैं। तो अभी आप थोड़ा जपा टॉक सुन लीजिए और थोड़ी देर बाद 8 बजे विस्तार में श्रीमद् भागवत कथा होगी। आप जानते ही हो व्रजमंडल परिक्रमा की जय। ऑनलाइन और दूर से व्रजमंडल परिक्रमा का अनुसरण कर रहे हैं। व्रजमंडल परिक्रमा कल बद्रिकाश्रम पहुंचे गई। बद्रीकाश्रम धाम की जय। कल की रात बिताई थी और आज रहेंगे। आज की रात बिताएंगे और फिर केदारनाथ के लिए प्रस्थान करेंगे। जैसे हम हिंदू तो नहीं है या सनातनी कह सकते हो। भागवत धर्म के अनुयाई वैसे चार धाम की यात्रा एक बार करना चाहते हैं। नंद बाबा और यशोदा भी चार धाम की यात्रा करना चाहते थे। बद्रीकाश्रम की यात्रा करना चाहते थे। अपने आपत्यो या पुत्रों का फर्ज बनता है कि अपने माता-पिता की यात्रा कराए। जैसे ही कृष्ण बलराम को पता चला नंदबाबा–यशोदा और बाकी सब यही चाहते थे। बुजुर्ग भी बद्रिकाश्रम की यात्रा करना चाहते थे। तो कृष्ण और बलराम नंद बाबा और यशोदा के साथ सभी बृजवासी जिनका भगवान के साथ वात्सल्य का संबंध है। इन सबको लेकर कृष्ण बलराम बद्रीकाश्रम पहुंचे। बद्रीकाश्रम की यात्रा करवाएं और फिर केदारनाथ भी पास में ही है।
कल परिक्रमा केदारनाथ जाएगी। वहां से आगे काम्यवन पहुंचेगी। जहां पर रामेश्वरम भी है और मथुरा में द्वारकाधीश का मंदिर है। इस प्रकार यह चारों धाम व्रजमंडल में है। व्रजमंडल पूरा है। सारे धाम एक धाम में है वृंदावन धाम में है। इसलिए कहा जाता है कि बस आप व्रजमंडल परिक्रमा करो, व्रज की यात्रा करो, तीर्थ यात्रा करो। सारे संसारभर के तीर्थो की यात्रा हो गई। आप कभी 2 इन 1 या 3 इन 1 की बात करते हो। यहां ऑल इन वन है। सारे धाम एक धाम में है। कृष्ण सभी अवतारों के उद्गम या स्त्रोत है। वैसे ही वृंदावन धाम सभी धामों का स्त्रोत है। वृंदावन धाम की जय। बद्रिकाश्रम में बद्री के पेड़ है और बद्री के फल भी हैं। बद्रीनारायण मतलब वैसे लक्ष्मीनारायण ही है। बद्रीकाश्रम में जो बद्री के वृक्ष है। यह स्वयं लक्ष्मी ने रूप धारण किया हुआ है और इन्ही वृक्षों के फल भी, पत्रं पुष्पं फलं तोयं नारायण को खिलाती रहती है । तो एक समय की बात है। नारायण नारायण नारायण, नारद मुनि का मुख्यालय वैसे बद्रिकाश्रम है क्योंकि वह परिव्राजक आचार्य हैं। हरि हरि। नारद मुनि जब एक समय वैकुंठ पहुंचे, पुनः पुनः जाते रहते हैं।
हर समय वह देखते हैं कि बस नारायण विश्राम कर रहे हैं अनंत शय्या पर लेटे हुए हैं और लक्ष्मी उनके चरणों की सेवा कर रही हैं। तो इस मानक का दर्शन वह जब भी जाते हैं तो उनको ऐसा ही दर्शन होता है। तो फिर लोग पूछते हैं कि आपने नारायण को देखा ? वह कहते हां हां, मैने उनके दर्शन किए। उनसे तो कहते हैं कि चरणों की सेवा करवा रहे थे । अगली बार पूछते तो कहते की चरणों की सेवा हो रही है। तो उन्होंने सोचा कि यह आदर्श अच्छा तो नहीं है। वैसे गृहस्थ ऐसा आराम करना चाहते है। वह सुनेंगे कि भगवान विश्राम कर रहे हैं और चरणों की सेवा करवा रहे हैं तो वह भी वैसा करवाते रहेंगे । यह आदर्श ठीक नहीं है। गृहस्थ के लिए तो प्रचारक नारद मुनि ने विशेष निवेदन किया। हे प्रभु ऐसा कुछ कर के दिखाइए कि ऐसी कोई लीला जिसका वर्णन करके मैं सुनाऊंगा तो लोग प्रोत्साहित होंगे, कुछ तपस्या करेंगे ।
ऋषभ उवाच नार्य देहो देहभाजां नलोके कष्टान्कामानहते विड्भुजा ये ।
तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं शुद्धधेरास्माद्ब्रह्मसौख्य वनन्तम् ॥
( श्रीमद् भागवद् 5.5.1 )
अनुवाद:- ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा - हे पुत्रो , इस संसार समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन - रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर - सूकर भी कर लेते हैं । मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने लिए वह अपने को तपस्या में लगाये । ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है , तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है , जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है ।
भगवान् ऋषभदेव कहे ही है कि तपस्या करो तपस्या करो। नारद मुनि ने कहा कि हे प्रभु नारायण, आप थोड़ी तपस्या करके दिखा दो। अपने वैराग्य का प्रदर्शन करो। उसी के साथ फिर नारायण बद्रिकाश्रम जाते हैं और वहां पर तपस्या करते हैं। नर नारायण ऋषि के रूप में तपस्या करते हैं। नारायण बद्रिकाश्रम में तपस्या करने लगते हैं। तो वैसे लक्ष्मी को वह पीछे ही छोड़ कर गए थे। लक्ष्मी ने सोचा कि मुझे मेरे प्रभु की सेवा करनी है। तो उन्होंने सोचा कि वह लक्ष्मी के रूप में वहां पर नहीं जा सकती, प्रभु तपस्या करना चाहते हैं। फिर लक्ष्मी वहां पर पहुंच जाती हैं बद्री के वृक्षों के रूप में और श्रीनारायण को छाया ही प्रदान करती हैं। उस बद्री के फल भी खाने के लिए उपलब्ध होते हैं। हरि हरि। नारायण जब वैकुंठ को छोड़कर ढूंढ रहे थे कि वह कहां पर तपस्या कर सकते हैं। तब वह हिमालय पहुंच गए और वैसे बद्रीकाश्रम ही आ गए। उनको लगा कि मैं यहां पर रहना चाहता हूं।
यह तपस्या के लिए अच्छी जगह है। यहां पर शांति है, शीतलता भी है और बर्फ गिरती है तो तपस्या हो जाती है। लेकिन उन्होंने देखा कि बद्रिकाश्रम में कोई रह रहा है। वहां पर शिव और पार्वती रह रहे थे। एक दिन उन्होंने देखा कि शिव और पार्वती कहीं जा रहे हैं। बद्रिकाश्रम में तप्त कुंड एक स्थान है वहां स्नान के लिए जा रहे है। वहां पर नारायण एक बालक के रूप में असहाय होकर रो रहे हैं, कोई मेरी मदद कर सकता है? शिव और पार्वती ने दोनों देखा। वैसे पार्वती आगे बढ़ी और उस बालक को उठाई और अपने निवास स्थान पर रखी और फिर शिव और पार्वती तप्त कुंड में स्नान के लिए गए और जब वह लौटे तो उन्होंने देखा कि सारे दरवाजे और खिड़कियां अंदर से बंद है, तो शिव और पार्वती खूब खटखटाते रहे । बेल बजाते रहे लेकिन नारायण ने एक नहीं मानी । यह नारायण को स्थान पसंद था तो वही अपना अड्डा बनाना चाहते, तो शिव पार्वती समझ गए । वैसे यह हमारे प्रभु ही है । यह स्वयं नारायण भगवान है और इनको यह स्थान पसंद है ये यहां रहना चाहते हैं तो फिर शिव पार्वती दूसरे स्थान की खोज में निकल चले । हिमालय में ही और खोजते खोजते इनको केदारनाथ स्थान उन्होंने देखा उनको पसंद आया और फिर शिव और पार्वती केदारनाथ में रहने लगे । इस प्रकार बद्रिकाश्रम और फिर केदारनाथ । एक नारायण का आश्रम, एक शिव जी का आश्रम ।
इसीलिए हरिद्वार और जानते हो हरिद्वार, तो कुछ भक्त कहते हैं कि यह हरिद्वार है तो कुछ लोगों के लिए हर-द्वार है । "हर हर गंगे" यह शिव जी के भक्त हैं इसको हर-द्वार कहते हैं । इसी स्थान से यही द्वार है । बद्रिकाश्रम के लिए द्वार है तो हरिद्वार है और शिव भक्तों के लिए वो हर-द्वार है । आप केदारनाथ जा सकती हो जहां हमारे परिक्रमा के भक्त पहुंचे हैं । आज दिन में वे सारे बद्रिकाश्रम का यात्रा करेंगे । वहां भी ऋषिकेश वहां भी हरिद्वार है । कल बता ही रहे थे इष्टदेव प्रभु; बालक नंदा है वहां व्यास गुफा है और वैसे वहां बद्रिकाश्रम में दर्शन भी है बद्री नारायण के तप्त कुंड है । तप्त कुंड नहीं तपस्या कुंड है । यह सब स्थान हमारे भक्त वहां आज देखेंगे और सचमुच यह तपस्या स्थली ही है । पहाड़ है और यह बद्रिकाश्रम, यात्रा वैसे ब्रजमंडल की और यात्राओं से भिन्न है । सचमुच वहां, गोवर्धन एक पहाड़ है ठीक है, वर्षाणा पहाड़ है । नंदग्राम एक पहाड़ है ऐसे पहाड़ तो हम देखते रहते हैं दर्शन करते रहते हैं लेकिन जब बद्रिका आश्रम जाते हैं तो वहां पहाड़ ही पहाड़ है । पहाड़ी इलाका है यह अलग है । एक नया अनुभव है और सब एकांत है । हरि हरि !! आप भी कभी यात्रा वरजमंडल परिक्रमा की यात्रा करो । बद्रिकाश्रम भी जाओ, केदारनाथ जाओ । व्रजमंडल में जो रामेश्वर है वहां जाओ । इस प्रकार भी आप चार धाम की यात्रा वहां कर सकते हो । हरि हरि !!
एक समय श्री कृष्ण वैसे छुप जाते हैं और फिर गोपियां खोजने लगती है कृष्ण को । कृष्ण ! कहां हो कृष्ण ? कृष्ण को खोजती हुई जाती है तो कृष्ण को पता चला की गोपियां आरही है, मेरी और ही आ रही है । कृष्ण क्या करते हैं ? कृष्ण नारायण का रूप धारण करते हैं । कृष्ण चतुर्भुज हो जाते हैं । कृष्ण को सदैव अच्छा लगता है गोपियों के साथ हास्य विनोद चलता रहता है । यह प्रेम कभी सीधा नहीं होता है कभी टेढ़ा मेढ़ा होता है । "प्रेमना गति आहेरिब" अहि मतलब सर्प । प्रेम की गति, प्रेम की चाल सर्प जैसी होती है । वैसे यह प्रसिद्ध वचन भी है, तो कृष्ण ऐसे कुछ चाल चल रहे थे तो उन्होंने चतुर्भुज रूप धारण किया । गोपिया जैसी वहां पहुंची उन्होंने देखा तो वह कहती, नमो नारायणाय ! हे नारायण नमस्कार । आपने हमारे कृष्ण को देखा है ? बस इस नाटक को आगे नहीं बढ़ा पाए कृष्ण । वो जिस भाव से उन्होंने पूछा क्या हमारे कृष्ण को देखा है ? वैसे कृष्ण को ही देख रही थी लेकिन कृष्ण तो चतुर्भुज रूप दिखा रहे थे । लेकिन जिस भाव से जिस उत्कंठा के साथ पूछा वो नारायण नारायण नहीं रह पाए । उनका जो नाटक चल रहा था उन्होंने मेकअप किया हुआ था और जो अतिरिक्त हाथ जो थे वो हाथ गिर गए, वो नहीं रहे कृष्ण वापस फिर से अपने स्वरूप में आ गए । कृष्ण द्वीभुज उनको बनना ही पड़ा प्रेम बस । गोपियों का प्रेम ने कृष्ण को कृष्ण रूप में बनाया । हरि हरि !! तो गोपियों के लिए या फिर व्रज वासियों के लिए उनको तो कृष्ण ही उनके आराध्य देव कृष्ण ही है ।
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं
रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता ।
श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्
श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादशे नः परः ॥
(चैतन्य मंज्जुषा)
अनुवाद:- भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है । व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी , वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्दप्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है - यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है । यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है ।
तो व्रज वासियों के पसंद आराध्य देव है श्री कृष्ण । व्रजेंद्र नंदन, यशोदा नंदन और फिर राधानाथ, गोपीनाथ, भक्तवत्सल श्री कृष्ण से ही स्नेह करती हैं गोपियां और ग्वाल बाल और नंद यशोदा, तो नारायण वै भी कृष्ण है किंतु वे बैकुंठ के कृष्ण हैं या फिर कहो कृष्ण ही वैकुंठ में नारायण बनते हैं और राधा ही वैकुंठ में लक्ष्मी बनती हैं ।
चिन्तामणिप्रकरसद्यसु कल्पवृक्ष-
लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम् ।
लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्रमसेव्यमानं
गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥
( ब्रह्म संहिता 5.29 )
अनुवाद:- जहाँ लक्ष-लक्ष कल्पवृक्ष तथा मणिमय भवनसमूह विद्यमान हैं, जहाँ असंख्य कामधेनु गौएँ हैं, शत-सहस्त्र अर्थात् हजारों-हजारों लक्ष्मियाँ-गोपियाँ प्रीतिपूर्वक जिस परम पुरुषकी सेवा कर रही हैं, ऐसे आदिपुरुष श्रीगोविन्दका मैं भजन करता हूँ ।
गोपियों को वे ब्रह्मा जी कहे; गोपियां भी हैं लक्ष्मी है । वैकुंठ की गोपी लक्ष्मी है । अगर आप समझ सकते हो तो । वृंदावन की लक्ष्मी है गोपी और वैकुंठ की गोपी हे लक्ष्मी । हरि हरि !! तो कृष्ण से ही फिर आगे, कृष्ण ही बनते हैं द्वारिकाधीश और राधा रानी बनती है कौन ? या वृंदावन की व्रज की गोपियां ही बन जाती हैं अलग-अलग द्वारिका की रानियां । राधा बन जाती है सत्यभामा द्वारिका में और फिर आगे विस्तार होता है और वे नाराय या विष्णु रूप धारण करते वैकुंठ में । वृंदावन की गोपियां यह पटरानी या बनती हैं द्वारिका में उनका और आगे विस्तार होता है और वे लक्ष्मी नारायण या लक्ष्मी नरसिंह, लक्ष्मी वराहा ऐसे रूप वे धारण करते हैं । जय जय श्री श्रीराधाश्याम सुंदर की जय ! वृंदावन में तो है राधा और श्याम सुंदर तो सर्वोपरि है ।
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥
( भगवद्गीता 7.7 )
अनुवाद:- हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है । जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है ।
नारायण भी बराबरी नहीं कर सकते कृष्ण की और उसी प्रकार लक्ष्मी भी बराबरी नहीं कर सकती राधा के साथ । ठीक है मैं यही रुकता हूं ।
॥ हरे कृष्ण ॥