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हरे कृष्ण जप चर्चा पंढरपुर धाम से, 1 नवंबर 2020 आज हमारे साथ 522 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। शायद आपने प्रयास नहीं किया और उनको इस झूम कॉन्फ्रेंस में जोड़ने का। शायद आपको दया नहीं आ रही है, वह कॉन्फ्रेंस से नहीं जुड़ रहे है,देखो कुछ प्रयास करो! ताकि जो रिक्त स्थान है वह भर जाए। इस कॉन्फ्रेंस में अभी भी कुछ खाली स्थान बचे हुए है तो, आप सब देख लीजिएगा के प्रयास करके उसको हाउसफुल कर सकते हो। वैसे भी कार्तिक का महीना है, दामोदर मास की जय! तो यह विशेष पर्व है।हरि हरि। इसको कार्तिक व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत है कार्तिक व्रत कई सारे प्रसिद्ध व्रतों में से एक महान व्रत है। तो औरोंको भी संपन्न करने दो, उनको भी स्मरण दिलवादो और आप भी लगे रहिए, जुड़े रहिए! अभी तो बस 1 दिन और एक रात बीत चुकी है अभी तो पूरा महीना शेष है। वैसे कार्तिक मास तो आज से ही प्रारंभ हो रहा है। आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है। कल थी पूर्णिमा, अश्विन मास की पूर्णिमा! मराठी में उसे कोजागिरी पौर्णिमा कहते या शरद पूर्णिमा कहते है। उस रात्रि को भगवान की कालरात्रि! श्रीमद् भागवत में सुखदेव गोस्वामी दशम स्कंध के 29 अध्याय के प्रारंभ में कहें, श्रीबादरायणिरुवाच भगवानपि ता रात्री : शारदोत्फुल्लमल्लिकाः । वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रित॥ श्रीमद भागवत स्कंद १० अध्याय २९ श्लोक १ अनुवाद :- श्रीबादरायणि ने कहा : श्रीकृष्ण समस्त ऐश्वर्यों से पूर्ण भगवान् हैं फिर भी खिलते हुए चमेली के फूलों से महकती उन शरदकालीन रातों को देखकर उन्होंने अपने मन को प्रेम - व्यापार की ओर मोड़ा । अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपनी अन्तरंगा शक्ति का उपयोग किया । यह शरद रितु है, इस रात्रि को क्या हुआ? शारदोत्फुल्लमल्लिकाः मल्लिका यानी पुष्प, पुष्प खिल गए रन्तुं मनश्चक्रे भगवान के मन में रमणने का विचार आया। रमन करने का! वे तो राधा रमन है ही! या फिर कुछ रमणीय स्थल पर राधा और गोपियों के साथ रमन करने का विचार आया। योगमायामुपाश्रित तो योग माया की और बड़े और भगवान जब संकेत करते है तो योगमाया समझ जाती है। भगवान के मन में इच्छा उत्पन्न होते ही योग माया उसे समझ लेती है और उसके अनुसार सारी व्यवस्था प्रारंभ हो जाती है। योगमायामुपाश्रित! तो ऐसे ही उस रात्रि को भी हुआ। सर्वप्रथम तो भगवान को रमने का विचार हुआ, आप भगवान वन में पहुंचे है, मुरली वादन हुआ है, और उसी के साथ सब को बुलावा और संदेश भेजे गए है। मुख्य समाचार! यहां आ जाओ, यहां पधारो! तो राधारानी और गोपियां सभी दिशाओं से भागी दौड़ी पहुंच जाती है। तो ऐसा बहुत विस्तृत वर्णन है, अब तो जपा टॉक ही चल रहा है, कोई भागवत कथा तो नहीं है इसीलिए विस्तार से नहीं कह पाते! कैसे मुरली कि ध्वनि को सुनते ही गोपियों के मन की स्थिति कैसे हुई, कैसी विचलित हुई और तुरंत कृष्ण की और दौड़ने के लिए तैयार हो गई, जो भी कार्य चल रहा था वह वही ठप हुआ। उनको घरवाले रोक रहे थे लेकिन उसकी परवाह भी नहीं कि इन गोलियों ने!और फिर पहुंच ही गई। श्रीभगवानुवाच स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः । व्रजस्यानामयं कच्चिद्भूतागमनकारणम् ॥ श्रीमद भागवत स्कंद १० अध्याय २९ श्लोक १८ अनुवाद:- भगवान् कृष्ण ने कहा, हे अति भाग्यवंती नारीगण , तुम्हारा स्वागत है । मैं तुम लोगों की प्रसन्नता के लिए क्या कर सकता हूँ ? व्रज में सब कुशल - मंगल तो है ? तुम लोग अपने यहाँ आने का कारण मुझे बतलाओ । जब वह पहुंचती है तो स्वागतम सुस्वागतम ! भगवान कहते हैं, आप सभी का स्वागत है, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? इतना ही नहीं आप क्यों आई हो? ऐसा भी भगवान पूछते है। तो गोपीया उत्तर देती है, क्यों आए मतलब? आपने बुलाया तो हम चले आए। प्रेम्णः गातिः अहिरेव!ऐसा एक सिद्धांत है, प्रेम की गति कैसी है? प्रेम की गति सर्प जैसी होती है, टेढ़ी-मेढ़ी होती है, सीधी नहीं होती! तो यह कृष्ण का क्यों आई हो यह प्रश्न पूछना और कहना कि ओ, अच्छा तुम यहां वन की शोभा देखने के लिए आई हो! तो ऐसी बातें कृष्ण करते है। और फिर कृष्ण सलाह देते है, अच्छा है कि तुम अपने घर लौटो! यह घोररूप रजनी! यह रात्रि भयानक है, यह वन है यहां पशु भी है। और तुम युवती को मेरे साथ यानी मेरे जैसे युवक के साथ नहीं होना चाहिए! यह भी अनुचित है! और ऐसा कारण देकर भगवान बोलते है, लोटो जाओ! हरि हरि। तो फिर सभी गोपिया बड़ी निराश, उदास और हताश हो जाति है। और सभी मिलकर एक गीत गाती है। जो इस 29 वे अध्याय में है। श्रीमद भागवत के दशम स्कंध में पांच अलग-अलग गीत, गोपियों के ही गीत है और राधा भी उनके साथ है। और उसमें से ही यह एक गीत है। और भी प्रसिद्ध गीत है जैसे गोपिगीत भी होने वाला है, और भ्रमरगीत है, और इस पंच अध्याय में एक अध्याय गोपीगीत वाला है। और एक वेणुगीत भी होने वाला है, और एक युगलगीत है तो ऐसे अलग-अलग नाम है उन गीतों के। तो इस गीत में गोपियों ने अपना भाव प्रकट किया है। गोपीभाव! जो सर्वोपरि है। परकीय भाव! परकीय भावे जहां ब्रिजते प्रचार ब्रज में परकिय भाव का पूरा प्राधान्य है। इस गोपी भाव का बृजभाव का तो यह सब इसमें प्रकट है, इन गोपियोंके गाये हुए अलग-अलग गीतों में प्रगट हुआ है। तो यहां पर भी एक गीत गाई है। कृष्ण के चरणों में गाई है गोपियां, कृष्ण के चरणों में गोपिया निवेदन की है। तो फिर कृष्ण थोड़े भाव में आकर मान जाते है।अब कृष्ण उन्हे घर लौटने के लिए नहीं कह रहे है। और धीरे-धीरे रास प्रारंभ हो रहा है, कुछ कदम उठाए जा रहे है और कुछ हलचल धीरे-धीरे प्रारंभ हो रही थी। यह शरद पूर्णिमा की रात्रि की बात है अभी भी रात बीत रही है, ओर यह प्रतिपदा का प्रातकाल है। तो भगवान सभी गोपियों को वहीं छोड़कर अचानक केवल और केवल राधारानी को साथ में लेके घनघोर वन में प्रवेश करते है। सुखदेव गोस्वामी कहे है, प्रसमेय प्रसादाय गोपिया सोच रही थी कि, हम कुछ विशेष ही होंगी इसीलिए भगवान हमारे साथ खेलना चाहते है, ऐसा कुछ अहम भाव, गर्व के विचार उनके मन में आ रहे है, ऐसा कृष्ण सोच रहे थे! तो शमनाय या दामनाय, उन विचारों का दमन करने के लिए भगवान वहां से निकल पड़े और प्रसादाय राधारानी को प्रसाद देने के लिए। राधारानी पर विशेष कृपा करने के लिए, जब सभी गोपियोंके साथ वहां पर राधा थी और कृष्ण का विवाह उनके साथ वैसे ही हो रहा था जैसा अन्य गोपियों के साथ हुआ था तो यह बात राधारानी को अच्छी नहीं लगी लेकिन राधारानी सोचती थी कि, मैं विशेष हूं! मैं तो महाभावा राधा ठकुरानी हूं! मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार जैसे और उनके साथ हो रहा है! तो राधारानी के इस बात या उनके मन में उत्पन्न होने वाले विचारों पर विचार करके कृष्ण ने, क्या करने का सोचा? प्रसादाय! राधा रानी को कुछ विशेष कृपा करने हेतु कृष्ण वहां से निकल पड़ते है। और फिर जब कृष्ण वह से अंतर्धान हुए तो सारी गोपियां कृष्ण के खोज के लिए निकल पड़ती है, और उसी के साथ फिर अध्याय 30 का वर्णन प्रारंभ होता है। गोपियां कैसी-कैसी कहा कहा पर कृष्ण को खोज रही थी और रास्ते में सभी से पूछ रही थी। है हिरण तुमने देखा है कृष्ण को? हे तुलसी, क्या तुमने देखा है कृष्ण को? अरे किसी ने तो देखा ही होगा कृष्ण को! शायद तुम कद में ऊंचाई में थोड़े छोटे हो इसीलिए शायद तुमने देखा नहीं होगा, या देख नहीं पा रहे हो। फिर वहां पर जो सबसे ऊंचा वृक्ष है उससे पूछने लगती है, तुम इतने ऊंचे हो तुम वहां से देखो तुम्हें कृष्ण दिखते ही होंगे जहां पर भी है! बता दो कहां पर हम कहां पर हैं हमारे कृष्णा? तो यह सब विरह की व्यथा है। हरि हरि।गोपियों की विप्रलंब स्थिति या उसका प्रदर्शन या उनकी व्याकुलता का वर्णन इस तीसरे अध्याय में हुआ है। तो खोज रही है, खोज रही है और फिर किसी गोपी ने सर्वप्रथम देखा कृष्ण के चरण कमलों को, तो चरण कमल में भी अलग-अलग चिन्ह से चिन्हाअंकित है। कृष्ण के तलवे में कई सारे चिन्ह है। तो उसी से यह बात पता चली कि यह कृष्ण के चरण चिन्ह है। यह चरणचिन्ह कृष्ण के ही है! तो जिस गोपी ने वह चरणचिन्ह देखे थे उसने सब को बुला लिया। वह कहने लगी आजाओ, आजाओ देखो! यह कृष्ण के चरणचिन्ह है, ताजे है लगता है अभी अभी यहां से गुजरे हैं, पास में ही होंगे बहुत दूर तो नहीं होंगे! तो गोपियों ने चरणों का अनुसरण कियाऔर अनुसरण करते हुए आगे बढ़ रही है इतने में ही, उन्होंने और एक व्यक्ति के चरनचिन्ह देखें। तो कुछ गोपिया पूछने लगी कि, यह चरनचिन्ह किसके है? तो उत्तर में कुछ गोपियों ने कहा, पगली कहीं की! नहीं समझती? और किसके हो सकते हैं, यह चरनचिन्ह तो राधारानी के ही हो सकते है, और किसके होंगे अनयाराधितो नूनं तो कृष्ण की आराधना करनी वाली जो है ना! सीधे तो राधारानी तो नहीं कहा है। राधारानी का नाम लेते ही बस बात ख़तम। उनके शरीर पर रोमांच खड़े होते है या उन्हें कुछ भान नहीं रहता। तो शुकिष्टा! शुकदेव गोस्वामी की इष्टा है राधारानी। जैसे ईष्ट देव होते है उसी तरह इष्टा होती है देवी। इसीलिए राधारानी का नाम है शुकेष्टा। तो भागवत में शुकदेव गोस्वामी राधारानी का नाम नहीं लेते हैं। राधारानी के नाम का संकेत हुआ है तो यही स्थान है श्रीमद्भागवत का दसवां स्कंद, अध्याय 30 श्लोक 28 में। अनयाराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वर: । यन्नो विहाय गोविन्द: प्रीतो यामनयद् रह: ॥ भागवत स्कंद 10.अध्याय 30. श्लोक 28 अनुवाद:- निश्चित रूप से इस विशेष गोपी ने पूरी तरह से पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, गोविंद की शक्तिशाली व्यक्तित्व की पूजा की है, क्योंकि वह उनसे बहुत खुश थे कि उन्होंने हमें छोड़ दिया और उन्हें एकांत स्थान पर ले आए। निश्चित ही ये राधारानी के चरणचिन्ह हैं। ऐसा कुछ गोपियों ने उत्तर दिया। और भी गोपियां आगे बढ़ रही है खोजते खोजते। और भी दृश्य उन्होंने देखें हैं। और खोजते खोजते गोपियां जो हजारों लाखों में है। कहीं कहीं पर उल्लेख हुआ कि तीन करोड़ गोपियों के साथ कृष्ण रासलीला खेला करते थे। तीन करोड़ क्या होता है कुछ भी नहीं।और भी अधिक संख्या में गोपियों के साथ कृष्ण क्रीड़ा खेलते हैं। इतनी सारी गोपियों का समूह या झुंड आगे बढ़ रहा है। राधा कृष्ण दोनों को खोज रही है। थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्होंने राधारानी को देखा। पहले तो कृष्ण गोपियों से अलग हुए। और फिर राधारानी के साथ मे थे तो राधारानी के मन में भी कुछ गर्व का विचार या अभिमान का विचार आया। वैसे कृष्ण राधारानी को कंधे पर लेकर चल रहे थे और पुनः रखें भी थे। और पुनः आगे बढ़ने की समय, राधारानी ने कहां मैं थक गई हूं। मुझे उठा लो पुनः। कृष्ण बैठ गए और उन्होंने कहा बैठ जाओ। तो राधारानी कृष्ण को थोड़ा बनाना चाहती थी। उनके कंधे पर सवार होने के विचार से आगे बढ़ रही थी। कृष्ण अंतर्ध्यान हुए। और फिर जब कृष्ण का सानिध्य छूट गया तब राधारानी का क्या हाल हुआ। ऐसी स्थिति में गोपियों ने राधारानी को प्राप्त किया। तो उस समय राधारानी पुकार रही थी, कह रही थी I हा नाथ रमण प्रेष्ठ क्‍वासि क्‍वासि महाभुज । दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम् ॥ भागवत स्कंद १० अध्याय १० श्लोक २८ अनुवाद:- उन्होंने पुकारा: हे स्वामी! मेरे प्रेमी! हे प्रियतम, तुम कहाँ हो? आप कहाँ हैं? हे बलवान, हे मित्र, हे अपने सेवक, मुझ गरीब सेवक के समक्ष प्रकट हुए ! हे राधारानी के नाथ, हे नाथ गोपीनाथ, हे राधानाथ, हे प्राणनाथ क्‍वासि क्‍वासि कहां हो? महाभुज हे महाभुजा वाले । रमन हे नाथ हे रमन , रमन कृष्ण का नाम है। वे कृष्ण है जो रमन करते हैं। रमन में जो प्रसिद्ध हैं। तो राधा रानी पुकार रही है , हे रमन मेरे साथ आप घूम रहे थे। लेकिन अचानक आप कहां चले गए। दास्यास्ते कृपणाया मे सखे दर्शय सन्निधिम् - दास्यास्ते मैं तो आपकी दासी हूं। कृपणाया मैं कृपण, मैं बेचारी राधारानी और कृपा करो। आप जहां भी हो मुझे आप वहां पर पहुचाओ। या आप यहां आओ जहां मैं हूं। ऐसी प्रार्थना करती हुई पुकारती हुई राधारानी को सभी गोपियों ने देखा। हरि हरि। और तब गोपियां तो खोज ही रही थी और अब राधारानी भी उनके साथ हो गई। वे कृष्ण को खोज रही है। ऐसा वर्णन 30वे अध्याय में आता है। और फिर कृष्ण मिले नहीं खूब खोजने पर। तो निराश होकर राधारानी और गोपियां जमुना की तट पर पहुंच जाती है। और सब मिलकर कृष्ण के गुण गाती है। और वही जो गुण गाए और गुणों को ही नहीं गाया। उन्होंने कृष्ण की लीलाओं का भी स्मरण करके लीला का वर्णन किया है और नाम गुण रूप लीला वर्णन करते हुए गा रही है। तम कथा अमृतं तप्त जीवनम तो यही है गोपी गीत। अध्याय संख्या 31। 29,30,31 में प्रसिद्ध गोपी गीत और साथ में राधारानी भी गा रही है। इस गोपी गीत को भी गाने की परंपरा है वृंदावन में। कार्तिक मास में दामोदराष्ट्रकम तो गाते हैं ही। कुछ भक्त गोपी गीत का भी गान करते हैं। हरि हरि। तो जब गोपियां गोपी गीत गा रही है तब भगवान का वचन है जहां भक्त एकत्रित होकर मेरा गान करते हैं कीर्तन करते हैं गुणगान करते हैं यत्र मद भक्त गायन्ति वहां मैं उपस्थित रहता हूं। मैं वहां प्रकट होता हूं। तो वैसा हुआ गोपियां गीत गा रही थी तब गाते गाते और गीत के समापन तक कृष्ण वहां पहुंच गए वहां प्रकट हुए। और फिर उसके अगले अध्याय में अध्याय संख्या 32। रास के जो पांच अध्याय हैं 32वा अध्याय जो है पुनः जब मिलन हुआ है कृष्ण गोपी राधारानी का । तो उनके मध्य का संवाद है। कृष्ण सभी को संबोधित कर रहे हैं और गोपियां अपने मनोरथ के भाव व्यक्त कर रही है। कुछ अंग संग हो रहा है। तो फिर इस अध्याय की अंत में तब संवाद हो रहा था तब कृष्ण का प्रसिद्ध वचन , हे गोपियों मैं आपका ऋणी हूं। आप जितना और जो कुछ करती रहती हो उसका बदला मैं चुका नहीं सकता। उसका बदला चुकाने में मैं असमर्थ हूं। सर्व समर्थ कृष्ण अपनी असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। हरि हरि। यह माधुर्य रस है श्रृंगार रस है। जो गोपी राधा रानी कृष्ण के मध्य संभव है। कृष्ण कितना आनंद लूटते हैं कितने प्रसन्न होते हैं। गोपियों की जो सेवाएं हैं, भाव है,भक्ति है। तो यह कृष्ण ने कहा अपने शब्दों में गोपियों का राधा रानी का गौरव राधा ही है। और कृष्ण का कहना न पार्य अहम अब क्या कहा जा सकता है। गोपियों की महिमा राधारानी की महिमा का गान इन शब्दों में किए हैं। अध्याय संख्या 33 में रास नृत्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को जो रास हुआ ही। रास क्रीड़ा संपन्न हुई उसका वर्णन शुकदेव ने 33वे अध्याय में करा है। ये जो रासलीला संपन्न हुई पंच अध्याय में उसका जो श्रवण कीर्तन करता है परंपरा के आचार्यों की अध्यक्षता में। जिस तरह डॉक्टर से परामर्श लेते है ये दवा लो। तो यह रास क्रीड़ा यह लीला दवा के रूप में कार्य कर सकती है परंतु इसका जो खुराक लेनी है वो मनगढ़ंत या मनोधर्म से नहीं करनी है। यह मना है निषेध है। तो इसलिए कहा गया है किसी से सुने इसको । और अगर ऐसा करते है तो भक्ति प्राप्त होगी । काम नाम का जो रोग है उससे व्यक्ति मुक्त होगा । यह अंतिम श्लोक है इस अध्याय का। कृष्ण कन्हैया लाल की जय! राधारानी की जय! राधा श्याम सुंदर की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!

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