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जप चर्चा
6 अक्टूबर 2020
गुरू गौरांग जयंत:
हरे कृष्णा 802 स्थानों से जप हो रहा है । आपका स्वागत है । हरि हरि । नियमों का पालन कर रहे हो । उदयपुर से माताजी है , शशि माताजी , ब्रज मंडल परिक्रमा की तैयारी कर रही है और एक परिक्रमा अब कुछ ही दिनों में प्रारंभ होगी शायद 9 तारीख को प्रारंभ होगी , वह परिक्रमा है , नवद्विप मंडल परिक्रमा की जय ।
आजकल सभी कार्यक्रम ऑनलाइन ही होते है इसलीये यह नवद्वीप मंडल परिक्रमा भी ऑनलाइन होगी । अब नवोद्वीप मंडल परिक्रमा है , यह पुरुषोत्तम मास है इसलिए इस पुरुषोत्तम मास में नवोद्वीप मंडल परिक्रमा होने जा रही है , और फिर अगले महीने में कार्तिक मास मे ब्रजमंडल परिक्रमा भी होगी तैयार रहिए या फिर पहले ही नवद्विप मंडल परिक्रमा के लिए तैयार हो जाइए , और कार्तिक में ब्रज मंडल परिक्रमा होगी । वैसे यह दोनों धाम एक ही है , ब्रज मंडल और नवद्वीप दोनों गोलोक है ।
गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवि महेशहरिधामसु तेषु तेषु ।
ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ॥
( ब्रम्हसहीता 5.43 )
अनुवाद: चौदह भुवनरूपी देवी धाम, उसके ऊपर महेश धाम, उससे ऊपरमें हरिधाम एवं सबसे ऊपर गोलोक नामक अपना (स्वयं-भगवान्
श्रीगोविन्दका) धाम है। उन -उन धामोंके अलग-अलग, विशेष-विशेष प्रभावोंका
जो नियमन करते हैं, उन आदि पुरुष गोविन्दका में भजन करता हैँ ।
ब्रह्मा जी ने कहा है ब्रह्मा संहिता में , "जो स्वयं भगवान है वह गोलोक में निवास करते हैं " हरि हरि । वैसे गोलोक के भी विभाग है , गोलोक में है वृंदावन , गोलोक में है मथुरा , गोलोक में ही है द्वारिका , गोलोक में जो वृंदावन है , उस गोलोक के वृंदावन के पुनः दो विभाग है । एक वृंदावन है जहा राधा कृष्ण अपनी लीलाएं संपन्न करते हैं और दूसरा विभाग है यह नवद्वीप धाम , एक ब्रज मंडल और दूसरा नवोद्वीप मंडल वैसे इसे सेतद्वीप भी कहा गया है । नवोद्वीप मंडल या औदारी धाम भी कहते हैं नवद्वीप मंडल को , वृंदावन है माधुर्य का धाम ,माधुर्य धाम और नवद्वीप मायापुर है औदार्य धाम जिस धाम में गौरांग महाप्रभु प्रकट हुए ।
यह वृंदावन गोलोक का भाग है , वृंदावन में राधा कृष्ण की मधुर लीलाएं संपन्न होती है , वहां का माधुर्य प्रसिद्ध है और नवद्वीप का औदार्य प्रसिद्ध है , औदार्य मतलब उदारता ।
श्रीकृष्ण चैतन्य राधाकृष्ण नाही अन्य ।
(चैतन्य चरितामृत मध्य लिला 2.282)
वृंदावन में जो एक है कृष्ण दूसरी है राधा , नवद्वीप में दोनों एक हो जाते हैं । ऐक्यम मतलब एकता , एक बन जाते है । राधा कृष्ण दो के एक हो गए और वह है गौरांग महाप्रभु । गौरांग ! गौरांग ! गौरांग !
फिर यह दोनों स्वयं भगवान है , कृष्ण भी स्वयं भगवान है और गौरांग भी स्वयं भगवान है जिनको ,
एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥
(श्रीमद भागवद 1.3.28)
अन्यवाद: उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं ।
कृष्णस्तु भगवान स्वयं कहा गया है । वैसे द्वारकाधीश स्वयं भगवान नहीं है यह अभी आपको नहीं बतायेगे बस इतना याद रखिए फिर धीरे-धीरे समझने का प्रयास कीजिए फिर उसका अध्ययन कीजिए , यह पहले समझाया भी है । स्वयं भगवान में और भगवान के विस्तारो में अंशो में ,
एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् ।
और है कला , और है अंश , और अंशांंश है या अंश के अंश के अंश के अंश है किंतु श्रीकृष्ण और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु अंशी है , स्वयं भगवान है । पूरे 100 % भगवान है ।
श्रीकृष्ण चैतन्य राधा-कृष्ण नाही अन्य । यह एकता रूप धारण करके श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु नवोद्वीप में योगपीठ में प्रकट हुए , योगपीठ । चैतन्य महाप्रभु जे जन्म स्थान योगपीठ कहते है । एक केंद्र बिंदु या जहां भगवान ने जन्म लिया और फिर वहां से सारे लीलाओं का सारे नवद्वीप मंडल में प्रकाशन हुआ । यह जो परिक्रमा होने जा रही है नवोद्वीप मंडल परिक्रमा उसका हमने प्रमोशनल वीडियो बनाया है , अंग्रेजी में है , उसे सुनिए देखिए और फिर हम और थोड़ी नवद्वीप परिक्रमा की चर्चा करते हैं ।
( व्हीडिओ दिखाया गया )
आपने देखा और सुना और आशा है कि आप सभी को समझा भी होगा । आप तैयार हो ? आपको कुछ करना तो नहीं है (हसते हुये) ऐसा अर्थ है और यह हररोज एक डेढ़ घंटे की परिक्रमा है , कुछ ज्यादा नहीं है , जहां हो वहां बैठे रहो , लेटना नहीं है , कम से कम बैठे रहो और देखो , सुनो जो भी आपको दिखाया ऑनलाइन जाएगा । वहा के अलग-अलग दृश्य , अलग-अलग मंदिर वहां की विग्रह , गंगा का भी दर्शन कर सकते हो और सभी द्विपों का दर्शन होगा ।
सिमंतद्वीप का दर्शन होगा यहां गोद्रोमद्वीप का दर्शन होगा , यह परिक्रमा आपको मध्य द्विप ले जाएंगी । मृदंग से आप गुजरोगे फिर कौलतद्वीप जाओगे या जो नवद्वीप शहर है उसे कौलत कहते है कौल मतलब वराह , जहां भगवान वराह ने दर्शन दिया था तो उसे कौलद्वीप कहते हैं , वहां से ऋतुद्वीप जाओगे ऋतू मतलब सीजन , 6 ऋतू वहा एक साथ विद्यमान रहते हैं और भगवान की सेवा करते हैं । हरि हरि । और फिर वहां से जान्हूद्वीप जाओगे । जान्हू मुनि जहां अपने संध्या वंदना करते थे , वहां रहते थे इसलिए उस द्वीप का ही नाम है जान्हूद्विप और फिर वही कुछ राधा के साथ लिलाए हैं । गंगा का अवतरण हुआ , गंगा ने नवद्वीप में प्रवेश किया ऐसी कथाएं हैं और अति प्राचीन काल की बात है , भागीरथ राजा गंगा को गंगोत्री से गंगासागर तक लेकर जा रहे थे तब रास्ते में यह नवद्विप धाम आ गया और नवद्वीप धाम मे जान्हूद्विप भी पाया गया और वहां जान्हू मुनि अपनी संध्या , वंदना कर रहे थे तब उनकी संध्या , वंदना में उत्पन्न हुआ जब गंगा बड़ी तेजी के साथ वहां से बह रही थी , बहना प्रारंभ किया भगीरथ राजा के रथ के पीछे पीछे गंगा भी जा रही थी । हरि हरि । उस समय विघ्न उत्पन्न हुआ उनकी वंदना में तब जान्हू मुनी बड़े क्रोधीत हुए और जब उनको पता चला कि गंगा के कारण मेरी वंदना में , संध्या में बाधा उत्पन्न हुई है तब उन्होंने सारे गंगा को पी लिया , गंगाजल का एक बिंदु भी बाहर नहीं था , पूरी गंगा जान्हू मुनि मे या उनके पेट में चली गई । राजा भगीरथ नेें इतना प्रयास करके , अपने प्रयासों के लिए ही राजा भगीरथ प्रसिद्ध है , जब प्रयत्न की बात होती है तो राजा भगीरथ ने जितने प्रयत्न किए प्रयत्नों के बाद प्रयत्न के बाद प्रयत्न कर रहे थे । गंगा स्वर्ग में ही रहती थी , स्वर्ग से फिर धरा पर लाने के लिए कितने सारे प्रयास , कितने सारे प्रयत्न उन्होंने किए , इसीलिए भगीरथ का स्मरण होता है । राजा भगीरथ जैसा प्रयास इतना सारा प्रयास करके गंगा को लेके लगभग गंगासागर पहुंचने वाले ही थे । हरि हरि ।
ताकि पूर्वजोका उद्धार होगा , पूर्वजों के अस्थियोका गंगा मे विसर्जन होगा । गंगा स्पर्श करेगी उनकी अस्थियों को तब इतने में भगीरथ राजा ने पुनः देखा की गंगा कहां है ? अपने रथ को पीछे मुड़ कर के देखने गए कहां है , गंगा कहां है ? जान्हू मुनि का आश्रम तक पहुंच गए और उनको पता चला कि जान्हू मुनी की करतुत होनी चाहीये इन्होंने हीे मेरी गंगा को , मैंने जिस गंगा को लाया था उस गंगा को छुपाया होगा या फिर कुछ किया है गंगा को तब विशेष निवेदन और शमा याचना भी की राजा भगीरथ ने और विशेष निवेदन करने पर फिर जान्हू मुनि ने कहा ठीक है और पुनः गंगा को बाहर किया और फिर वह पुनः बहने के लिए आगे बढ़ने के लिए तैयार हुई थी । जान्हू मुनि से अभी उत्पन्न हुई गंगा , एक पहले राजा भगीरथ ने गंगा को इस धरातल पर लाया इसीलिए गंगा का नाम हुआ भागीरथी । भागीरथी क्यों कहते है ? भागीरथ राजा ने लाया गंगा को इसलिए भागीरथी गंगा कहते हैं , और अब जान्हू मुनी ने पी लिया था और पुनः यह गंगा जान्हू मुनि से उत्पन्न हुई तो गंगा का दूसरा नाम हूआ जान्हवी ।
जय जय गोराचाँदेर आरतिक शोभा।
जाह्नवी तट वने जगमन लोभा॥
अनुवाद: श्रीचैतन्य महाप्रभु की सुन्दर आरती की जय हो, जय हो। यह गौर-आरती गंगा तट पर स्थित एक कुंज में हो रही है तथा संसार के समस्त जीवों को आकर्षित कर रही है।
जान्हवी पुनः प्रकट हुई । आगे बढ़ना था , भागीरथ राजा ने कहा चलो चलते हैं जिस उद्देश्य मैंने आपको यहां लाया था वह उद्देश अभी सफल होगा । वह स्थान कपिल मुनि का आश्रम , कपिल देव का आश्रम यहां से दूर नहीं है तो चलो चलते हैं इतने में गंगा ने फिर घोषणा सुनी क्या घोषणा थी , गौरपौर्णिमा महोत्सव संपन्न होने जा रहा है , यहीं पर नवद्वीप में योगपीठ में जहां गौरांग महाप्रभु प्रकट हुए । या फिर कुछ घोषणा हुई होगी या पोस्टर , बैनर सुना होगा या फिर कैसे पता लगा होगा गंगाने की गौरपूर्णिमा महोत्सव संपन्न होने जा रहा है । फिर गंगा ने कहा कि नहीं नहीं नहीं मैं यही रहूंगी , मैं इस गौर पूर्णिमा महोत्सव में शामिल होना चाहती हूं , फिर राजा भागीरथ और गंगा गौर पूर्णिमा तक नवद्विप में रुके रहे और उन दोनों ने भी गौर पूर्णिमा महोत्सव संपन्न किया ,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। इसका कीर्तन करते हुए कहियोने स्नान किया गौरपुर्णिमा के दिन गंगा में स्नान किया और उपवास भी किया होगा , गंगा ने भी उपवास किया गंगाने ने निर्जला उपवास किया , गंगाने जल का एक बूंद नहीं पिया , उसदिन निर्जला उपवास हुआ और फिर
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।
प्रभू का स्मरण , गैरांग का कीर्तन गंगा ने भी किया और राजा भगीरथ ने भी किया , और फिर गौर पूर्णिमा महोत्सव के उपरांत फिर यह दोनों भी भगीरथ आगे आगे जा रहे हैं और पीछे पीछे गंगा आगे बढ़ रही हैं (हंसते हुए) हम लोग जान्हू दीप तक पहुचे थे उसके बाद मृदद्वीप है जहां राम त्रेता युग मे प्रकट हुए थे । अब सारी लीला नही बतायेगे मृदद्वीप के बाद है रूद्र द्वीप जहां बेलपकूर भी है , नाम सुना होगा , रूद्र द्वीप है , रुद्र का भी स्थान है , रूद्र भी वहां रहते हैं , शिवजी 11 अलग-अलग रूपों में वहां निवास करते हैं , वहा बेल के कई सारे वृक्ष है तो इसके लिए उसको बिलपुकुर भी कहते बिलपुकुर मतलब करा । वहां तट पर कई सारे बेल के वृक्ष है और फिर यह बेलपुकुर , नवद्विप का बेलपुकुर वृंदावन के साथ उसकी तुलना है ऐसे भी तूलना है । वृंदावन मे बारा वन है और नवंद्वीप मे 9 द्वीप है यह भी समझने का प्रयास कीजिए । यह द्वीप इस वन के साथ या इस धाम के साथ है , बेलपुकुर जो रूद्रद्वीप में है यह आठवां द्वीप हुआ यह अलग-अलग आठ द्वीप आठ पंखुड़ी जैसे है और मध्य में है कार्निका और मध्य का जो विभाग है वह है अंतरद्वीप , मध्य भाग और अंतर द्वीप में जो भक्ति होती है वह आत्मनिवेदन चलाता है । वहां नवद्विप है , एक द्विप में श्रवनम दूसरे द्वीप में गौद्रूम द्वीप में कीर्तनम फिर अगले द्वीप में स्मरणम , पादसेवनम , अर्चनम , वंदनम , दास्यम , सांख्यम , आत्मा निवेदनम , अंतर द्वीप में हम पहुंचते हैं सारे द्वीप की परिक्रमा करके फिर अंततोगत्वा तो वहां आत्मा निवेदन करना होता है ।
मानस, देहो, गेहो, जो किछु मोर्
अर्पिलु तुवा पदे, नन्द-किशोर्
और इस अंतर द्वीप में ही योगपीठ है और लगभग अंतर द्वीप मे ही श्रील प्रभुपाद ने मायापुर चंद्रोदय मंदिर की स्थापना कि हैं । श्रीलप्रभुपाद नें इस्कॉन मायापुर का जो मंदिर है उसको नाम दिया । क्या नाम दिया ? मायापुर चंद्रोदय , मायापूर मे चंद्र का उदय हुआ कौन से चंद्र का उदय हुआ ? चैतन्य चंद्र का उदय हुआ , पहले थे रामचंद्र , कृष्ण चंद्र और वह अब बने है गौरचंद्र या चैतन्य चंद्र ।