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जप चर्चा श्रीमान सम्यक ऋषि प्रभुजी 15 फ़रवरी 2022 हरे कृष्णा कई बार हमें न्यू वृंदावन में महाराज का कीर्तन, महाराज का नृत्य, महाराज का प्रवचन सुनने को मिलता है और ऐसी कई जगह हैं जैसे देहु मे | मैं महाराज का बहुत-बहुत आभारी हूँ उन्होंने मुझे हमेशा मार्गदर्शन दिया | उन्होंने ही मुझे कहा था कि प्रभुपाद की गुरु के रूप में सेवा कीजिये | यह उन्हीं की कृपा है कि मैं इतनी सेवा इस्कॉन में दे सका | मैं बार-बार उनसे मार्गदर्शन लेता रहा | वे बहुत ही सुतीक्ष्ण हैं और बहुत ही दयालु है | अपने भक्तों की अच्छी तरह से देखभाल कर रहे हैं, यहां भी महाराज जी के कई शिष्य हैं जो उनके प्रोग्राम को आगे बढ़ाने में लगे हैं | यह सेवा भाव महाराज ने ही उनके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है | और इस प्रकार के इस्कॉन में अपनी सेवाएं दे रहे हैं | मैं यहाँ के इस्कॉन टेंपल के लिए आप सबको आमंत्रित कर रहा हूँ, आज 15 फरवरी है और 19 और 20 फ़रवरी को यहाँ कार्यक्रम है | आप के स्थान से यह ज्यादा दूर नहीं है आप ट्रेन या बस से यहाँ आ सकते हैं | कृपया यहाँ आइए और हमें अपना आशीर्वाद दीजिए | मैं महाराज जी से भी निवेदन करूंगा कि जब उनकी तबीयत ठीक हो जाए तो यहाँ पर आएं और अपने प्रवचन और अपने कीर्तन के द्वारा लोगों को मंत्रमुग्ध करें ताकि ओर अधिक से अधिक लोग जुड़ सके | मैं कुछ शब्द जो यहाँ मंदिर प्रभुपाद जी की कृपा से बन रहा है उसके बारे मे कहता हूँ | गांव गांव में हरिनाम फैले, लोग चैतन्य महाप्रभु को जाने, महाप्रभु की शिक्षाओं को ले| प्रभुपद जी की कृपा से ही गांव गांव में गली गली में प्रचार हो रहा है| पृथ्वी ते अच्छे जत नगर आदि ग्राम सर्वत्र प्रचार होईबे मोर नाम चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है कि हर गांव गांव और गली गली में उनका नाम फैलेगा तो हम निमित्त बन कर उनकी सेवा करें | यहां आस-पास में हजार से भी ज्यादा मध्यप्रदेश में ट्राइबल एरियाज है, यहां हम प्रचार करेंगे तो इस प्रकार प्रभुपाद का मूवमेंट बढ़ेगा, देश विदेश में हरि नाम लोग ले रहे हैं लेकिन कई जगह अभी भी गांव में आंदोलन इतना प्रचार प्रसारित नहीं हुआ है, शहरों में तो कृष्ण भावनामृत का प्रचार हुआ है सब लोग जानते हैं लेकिन इस्कॉन को प्रभुपाद को चैतन्य महाप्रभु को इस क्षेत्र में लोग नहीं जानते हैं इसी को ध्यान में रखकर| मेरा जन्म पास के ही गांव में हुआ है तो मैंने सोचा कि यहां मंदिर क्यों ना बनाया जाए | शहरों में तो सभी जाते हैं परंतु यह गांव का मंदिर है| इस मंदिर के बारे में मैं आपको कुछ बताऊंगा | अभी आपको राधा गोपीनाथ मंदिर स्क्रीन में दिखलाएंगे कि मंदिर कैसा है | यह मंदिर इंदौर से करीब 140 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है | 19 और 20 फरवरी को इसका उद्घाटन है, मैं उसका समय भी आपको बताऊंगा | इनका नाम राधा गोपीनाथ इसलिए दिया गया है क्योंकि भगवान को गोपियों का संग बहुत प्यारा है और दूसरा पास ही इंदौर में राधा गोविंद जी हैं और उज्जैन में राधा मदन मोहन जी हैं | तो हमने सोचा क्यों ना इन तीन संबंध, अभीदेय और प्रयोजन के जो देवता हैं उनमें से गोपीनाथ जो हमारा लक्ष्य है, लोगों को पता नहीं रहता है कि हम कहां जा रहे हैं किस तरफ जा रहे हैं क्यों जा रहे हैं राधा गोपीनाथ के द्वारा राधा गोपीनाथ जी की कृपा से यह मंदिर बना है और लोगों को कृष्ण भावना से जोड़ने में सहायता कर रहा है | अभी हम प्रत्येक रविवार को प्रोग्राम पिछले 2 साल से कर रहे हैं जिसमें 500 से 1000 लोग आ रहे हैं और प्रसादम ग्रहण करते हैं | मध्यप्रदेश में ट्राईबल कम्युनिटी यहां है और यह स्थान सेंट्रल इंडिया का ह्रदय है | यहां पर कई उद्यान लगाए गए हैं जिनमें ऑर्गेनिक फार्मिंग हैं, कम्युनिटी के द्वारा बसाया गया है | यह भोपाल के थोड़े साउथ और वेस्ट में है | कुंदा नदी पास में है और साथ ही महेश्वर जो नर्मदा नदी के किनारे हैं यह काफी प्रसिद्ध है इसी स्थान पर है साथ ही ओमकारेश्वर वह भी पास ही है | यहां की फास्ट ग्रोइंग कम्युनिटी है | यहां की आबादी सवा दो लाख के करीब हो चुकी हैं | और यहां हजारों गांव है | जहां की कुल जनसंख्या 4 से 5 लाख होगी| और इंदौर भारत का सबसे साफ सुथरा शहर है यहां कोई इंडस्ट्री नहीं है इस कारण यहां प्रदूषण नहीं है | मैं आप सब को आमंत्रित करता हंप कि आप सभी यहां आइए हमें भी नए मंदिर होने के कारण आप सब की सहायता चाहिए | आराम से आप इंदौर एयरपोर्ट से यहां आ सकते हैं| मुंबई और दिल्ली से 1 घंटे में हम फ्लाइट से यहां आ सकते हैं | वृंदावन यहां से ट्रेन से जाया जा सकता है | यह मैंने आपको लोकेशन के बारे में बताया यह हाट ऑफ इंडिया में स्थापित है और इजीली कम्युनिकेबल है | ओंकारेश्वर, उज्जैन, इस्कॉन उज्जैन, इंदौर आस पास ही है, नर्मदा नदी यहां से 20 किलोमीटर है, यहां से बहुत ही आसानी से वहां जा सकते हैं | अभी वृंदावन से 50 लोग यहां आने वाले हैं उन लोगों को हम टूर भी कराने वाले हैं | यहां से ओम्कारेश्वर फिर महेश्वर इस्कॉन अवंतीपुर यानी उज्जैन के 5 भव्य ऑल्टर जिन्हें भक्ति चारु महाराज ने बनाया है महाकाल के दर्शन सांदीपनि मुनि का आश्रम , इस्कॉन इंदौर आदि ले जाया जाएगा | ओमकारेश्वर यहां से डेढ़ 2 घंटे की दूरी पर है जहां भगवान शंकर का ज्योतिर्लिंग है | यहां नर्मदा नदी पर एक द्वीप है लोग उसकी परिक्रमा भी करते हैं | पूरी नर्मदा की भी परिक्रमा की जाती है | नर्मदा में स्नान करते वक्त मानसिक रूप से सब नदियों का आवाहन करके जितने भी वैष्णव गन है उनका आशीर्वाद लेते हैं माहिष्मती पुरी को वाराणसी ऑफ इंडिया भी कहा जाता है ओमकारेश्वर भगवान शिव को समर्पित है | इस्कॉन मंदिर 6 एकड़ में बनाया गया है | यहां पर पुष्टिमार्गीय वैष्णव ज्यादातर है | वे लोग बाल गोपाल की ज्यादातर पूजा करते हैं, साथ ही श्रीनाथ जी और हरदेव राय उनका भी मंदिर भविष्य में बनाया जाएगा | यहां गोवर्धन पहाड़ के रूप में बनाया जाएगा जिसके नीचे श्रीनाथजी का विग्रह रहेगा और भगवान अपनी उंगली से गिरिराज जी को उठाते हुए दिखाई देंगे | भक्तों को यहां गिर्राज और उनकी परिक्रमा का मिनी फॉर्म मिलेगा | पीछे वाली बिल्डिंग में तीन सो रूम अभी है और तीन सो रूम बनने वाले हैं | यहा नेचुरोपैथी आयुर्वेदिक मेडिसिन का सेंटर है | जहां कोई भी जाकर दवाइयां ले सकते हैं| और अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर सकते हैं | यह मंदिर बिल्डिंग 35000 स्क्वायर फीट में फैला हुआ है जो 3 फ्लोर में है | लाइब्रेरी भी बनाई है जहां कोई भी आकर पढ सकता है | शिखर 108 फीट ऊपर है | जय विजय आजकल में आने ही वाले हैं | जिनकी ऊंचाई 18 फीट की है| नरसिंह भगवान और गरुड़ जी भी हैं | जैसे जैसे लोगों ने सलाह दी है और जैसे-जैसे भगवान ने हमें प्रेरणा दी है गाइड किया है गाइड करने वाले तो स्वयं नित्यानंद प्रभु है जिनकी कृपा से हुआ है इसकी ग्रैंड ओपनिंग में मैं आप सबको आवाहन करता हूँ कि आप लोग आइए हम सबको इस से प्रोत्साहन मिलेगा | वृंदावन के पुजारी यहां आकर विग्रह को स्थापित करेंगे | परम पूज्य गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज हमारे मुख्य अतिथि हैं | और मैं आशा करता हूँ कि लोकनाथ स्वामी महाराज भी यहां पर आएं और चीफ गेस्ट के रुप में हमारे ओपनिंग में रहे | वैसे भी हृदय में तो वे हैं ही | अब मैं आपको शेड्यूल बताता हूँ, 19 तारीख शनिवार 08:30 बजे को गुरु पूजा है, 10 बजे सुदर्शन होम, 11:30 बजे सुदर्शन अभिषेक स्थापना प्रतिष्ठा, फिर प्रसाद और रेस्ट, नेत्र मिलन अधिवास 6:00 बजे है मंदिर में खुशबूदार रूम में भगवान आराम लेंगे रविवार को सुबह 6:00 बजे से प्रोग्राम होगा जागरण सेवा प्रभुपाद पूजा महाराज जी वगैरह की क्लास होगी 10:00 महा अभिषेक प्राण प्रतिष्ठा पुष्प अभिषेक और 1:00 बजे दर्शन और महा आरती और 2:00 से प्रसाद | हमने सब के लिए प्रसाद की व्यवस्था की है हो सकता है 10,000 से लेकर 100000 तक लोग आ सकते हैं | रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम और परम पूज्य गोपाल कृष्ण गोस्वामी महाराज और लोकनाथ महाराज की छोटी सी क्लास भी होगी | कुछ लोग यहां बाहर से आ रहे हैं तो वृंदावन वालों के लिए तो हमने यात्रा का इंतज़ाम किया है | भगवान के विग्रह और भगवान में कोई अंतर नहीं है | भगवान के नाम और भगवान के विग्रह में कोई अंतर नहीं है| रूप गोस्वामी लिखते हैं कि यदि सांसारिक चीजों में आपका आकर्षण है, आप कभी केसी घाट पर मत जाइए क्योंकि केसी घाट पर भगवान त्रिभंगी मुद्रा में है और वह आपको सांसारिक वासना से छुड़ा लेंगे | लेकिन हमारे साथ ऐसा होता है क्यों नहीं है हम अभी भी केसी घाट जाते हैं भगवान का दर्शन करते हैं राधा कृष्ण का दर्शन करते हैं क्योंकि चिन्मय वस्तु को धारण करने के लिए हमारी इंद्रियां भी चिन्मय होनी चाहिए और इंद्रियों को चिन्मय करने के लिए हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप, भक्तों का संग और प्रसाद अति आवश्यक है | भक्तों की सेवा करना अति आवश्यक है | भगवान हमारे हृदय में है और जब भगवान देखेंगे कि इसका हृदय मुझे पाना चाहता है और भगवान अपने भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं | धीरे-धीरे भगवान हमें बुद्धि देते हैं ताकि हम भगवान की तरह मुड़ सके | यह साधारण मूर्तियां नहीं है | परम पूज्य लोकराज महाराज गोपाल कृष्ण महाराज ने कितने कितने मंदिर बनाए है और कितने लोग उनसे फायदा उठा रहे हैं इसी को ध्यान में रखते हुए यह गांव के लोग इससे जुड़े और ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाएं| इन मूर्तियों को प्रतिमा मानना एक तरह का अपराध है | Sei aparādhe tāra nāhika nistāra ghora narakete paḍe, ki baliba āra CC Ādi 5.226 चैतन्य चरित्रामृत में दिया है कि जो यह अपराध करते हैं नरक में गिरते हैं | भगवान स्वयं कहते हैं alaṅkurvīta sa-prema mad-bhakto māṁ yathocitam ŚB 11.27.32 भागवतम में भगवान स्वयं कहते हैं कि यह जो मेरे विग्रह हैं मैं स्वयं हूँ तो मूर्ति में और भगवान में कोई भेद नहीं है| तो कुछ लोग कहेंगे कि जो मूर्तियां स्वयं प्रकाश होती हैं उनमें यह बात होती है | ऐसा नहीं है | स्वयं प्रकाशित मूर्तियां वृंदावन में है | सारी मूर्तियां भगवान स्वयं ही हैं | वे अपनी शक्ति से अपनी इच्छा से मूर्ति में भी प्रकट हो सकते हैं| जब भक्त पुकारते हैं मूर्ति में, तो वे प्रकट हो जाते हैं| एक कथा है | एक व्यग्र शिकारी के वाण से घायल होकर गिर गया, एक कुत्ता उसे मुंह में लेकर चारों ओर मंदिर मे घूमता रहा, क्योकि उसने मंदिर में विग्रहो की परिक्रमा की तो उसकी मुक्ति हो गई | एक बार एक चूहा दिए में घी खाने के लिए चला तो उसे घी की बत्ती थोड़ी ऊपर हो गई उससे मंदिर में प्रकाश ज्यादा हो गया, तो उसे दीपदान का फल मिला और उसकी भी मुक्ति हो गई | भगवान के दूत आए और उसे भगवत धाम में ले गए | सबसे अच्छा प्रमाण की भगवान के विग्रह में भगवान साक्षात है, गौरी दास पंडित के सेवित गौर निताई के विग्रह से पता चलता है | एक बार गौरांग महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु अंबिका कलना में आए और सूर्यकांत उनके छोटे भाई हैं जो नित्यानंद प्रभु के ससुर जी हैं, उनका महोत्सव काफी अच्छा रहा | बाद में जब भी जाने लगे तुमसे कहा कि आप जाइए मत | तब अंत में भगवान ने अपनी मूर्तियां उनको दी और कहां इनको रखो, गौरी दास पंडित ने कहा नहीं हम आपको रखेंगे| भगवान स्वयं विग्रह हो गए| पूछा जाएगा कि भगवान मूर्ति में अवत्तीर्ण क्यों होते हैं | यह भगवान की अहैतु की कृपा है, हम जीव भगवान की सेवा करके इस भवसागर से पार हो सकते हैं, इसका इससे ज्यादा और कोई आसान तरीका नहीं है | तो भगवान मूर्ति में प्रकट होकर के हमारी सेवा ग्रहण करते हैं | हम और पर निर्भर रहते हैं उन्हें कब खाना देना है कब सुलाना है कब जगाना है | मौसम के अनुसार कपड़े पहनाये जाते हैं | भगवान मौन धारण किए रहते हैं और हम भक्तों की परीक्षा लेते रहते हैं | सेवा करते करते हमारी दोष दृष्टि दूर हो जाती है | पर इसके अलावा भगवान अपने भक्तों से आदान-प्रदान करते हैं | यह सिर्फ हमारी गरज नहीं है कि भगवान हमें मिले यह भगवान की भी गरज है कि भक्त उन्हें मिले| भगवान भी आनंद लेते हैं कई रूपों में आकर| भक्त आते हैं उन्हें मालिश करते हैं, खिलाते हैं, प्यार करते हैं , भगवान बहुत आनंदित होते हैं भगवान कई तरह से रस लेना चाहते हैं | विग्रह से भगवान एक प्रकार का रस लेते हैं | यह भी एक तरह का द्वीप है | बंगाल में लाला बाबू थे, नदी के किनारे टहल रहे थे, मछुआरे की लड़की ने कहा कि बाबा दिन ढल रहा है, चलिए घर चले तो लाला बाबू को लगा कि यह कह रही है कि मेरी उम्र ढल रही है मेरा भी अंतिम समय आ रहा है और मुझे अपने वास्तविक घर गोलोक वृंदावन जाना है और वह सब कुछ त्याग कर के वृंदावन चले आए | और हम सब का भी दिन ढल रहा है इसलिए हमें हमेशा ही कृष्ण भावना में रहना चाहिए, भगवान की सेवा में उन्हीं की याद में उन्हीं के लिए सब कुछ करने का प्रयत्न करना चाहिए | वृंदावन में लाला बाबू के मंदिर नाम से मंदिर है जहां उन्होंने राधा कृष्ण की स्थापना की | प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनके मन में आया कि भगवान यहां आए हैं कि नहीं | तो उन्होंने मक्खन का टुकड़ा भगवान के सर पर रखा और मक्खन पिघल कर गिरने लगा | भगवान के शरीर के ताप से वह पिघल गया | एक माताजी पिसीमा का मंदिर वृंदावन में बनखंडी महादेव के पास है यह मुरारी गुप्त द्वारा सेवित है | यहां अभी भी गौर निताई के विग्रह हैं, पिसीमा वृद्धावस्था को प्राप्त हुई तो गोपेश्वर गोस्वामी को योग्य पात्र समझकर के सेवा करने के लिए प्रदान कर दिया | एक दिन उन्होंने ठाकुर जी को ठंडे पानी से स्नान करा दिया गर्म पानी नहीं था माताजी को जब पता चला मेरे इष्ट देव को या मेरे बेटों को तुमने आज कष्ट दिया है, उन्होंने कहा भगवान मेरे बच्चे हैं और भगवान भी उसी प्रकार से आदान-प्रदान करते हैं ye yathā māṁ prapadyante tāṁs tathaiva bhajāmy aham mama vartmānuvartante manuṣyāḥ pārtha sarvaśaḥ- BG 4.11 और उनके विग्रह गौर निताई को बुखार हो गया | उन्हें दिखता भी नहीं था | उन्होंने कहा आपने ठंडे पानी से भगवान को नहलाया ठीक नहीं किया, मेरे बालकों को ठंड लग रही है, उन्हें सर्दी लग गई है, गोपेश्वर प्रभु को यह विश्वास नहीं हुआ, माताजी ने अपनी साड़ी के पल्लू से कहा कि बेटा जरा नाक अपनी छीको, दोनों गौर निताई की नाक निकल पड़ी, विग्रह को ठंड भी लगती है सर्दी भी लगती है, गर्मी भी लगती है, हमें उनकी उसी प्रकार से बात करनी चाहिए भगवान तो चराचर जगत अनंत ब्रह्मांड के मालिक हैं उन्होंने ही बनाया है उन्हीं की शक्ति से सब कुछ हो रहा है हमें यह नहीं कभी सोचना चाहिए कि मैंने यह किया है हमारी ये भावना नहीं होनी चाहिए, फिर गोपेश्वर प्रभु समझ गए कि मैंने जो किया है वह सही नहीं है | भगवान सिर्फ जीवो पर दया करने के लिए विग्रह रूप मे प्रकट ही नहीं होते हैं, बल्कि भगवान की खुद की गरज भी है| वे प्रेम का स्वरूप है अतृप्ती, प्रेम कभी भी तृप्त नहीं होता चाहे कितना भी प्रेम हो | प्रेम जितना अधिक होता है उतना ही उसे अपना अंतर खाली लगता है | वह उसमें और अधिक प्रेम भरने के लिए व्याकुल होता है | परंतु भगवान का प्रेम अनंत है | उन्होंने जीवन की रचना की है इतने ब्रह्मांड भर दिए हैं | आध्यात्मिक लोक भौतिक लोक | भगवान का प्रेम अनंत है | मूर्ति रूप में प्रकट होकर अनंत भक्तों के प्रेम को स्वीकार करना उनकी मनोवृत्ति के अनुकूल व्यवहार करना उनको शुद्ध करना यह उनका अनंत प्यार है | यह कोई किसी पर एहसान नहीं करता है भगवान अपने भक्तों से प्यार करते हैं और भक्त अपने भगवान से | दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते हैं | भक्त भगवान को अपना सब कुछ समर्पण कर देता है | और भगवान भी अपने भक्तों को सब कुछ समर्पण कर देते हैं | छोटी छोटी चीजों के लिए इतना लालायित रहते हैं भगवान हमारे पिता है भगवान का धाम हमारे लिए खुला है और सब चीजें भगवान की है | हमारा अधिकार है पिता की संपत्ति पर परंतु हमें वह कब मिलेगा जब हम पिता को संतुष्ट करेंगे | पिता की सेवा में लगे रहेंगे| सब तरह से उनकी सेवा करते रहें | पिता तो अपना धन संपत्ति बच्चे को दे ही देंगे | उसी प्रकार भगवान भी हमारे परम पिता है | जो भी है गोलोक वृंदावन में है या अन्य स्थानों पर है वह सब भक्तों के लिए ही है | भक्तों को सब कुछ अपना नहीं मान कर रखना चाहिए, यह मानना चाहिए कि सब कुछ भगवान का है और भगवान की सेवा के लिए | भगवान अपने अनंत ऐश्वर्य को त्याग करके भक्तों के लिए अपने बन जाते हैं | भक्त जैसे रहता है भगवान भी वैसे ही रहते हैं | भक्त जो खिलाता है वही भगवान खाते हैं | जब सुलाता है तब सोते हैं जब जगाता है तब जागते हैं | भक्तों की इच्छा अनुसार ही वे उठते और बैठते हैं | इसी तरह से भगवान हमारे हृदय में भी परमात्मा के रूप में है | और कोई हमारा शुभेच्छु नहीं है | Bg. 5.29 bhoktāraṁ yajña-tapasāṁ sarva-loka-maheśvaram suhṛdaṁ sarva-bhūtānāṁ jñātvā māṁ śāntim ṛcchati गोपाल भट्ट गोस्वामी के पास शालिग्राम थे, वह नेपाल गए थे तो वहां से शालिग्राम लाये थे | वृंदावन में उनकी सेवा करते थे | नेपाल में बार-बार उनकी कमंडल में शालिग्राम आ रहे थे | एक भक्त कई प्रकार की श्रृंगार पोशाक की सामग्री देखकर सभी मंदिरों में गए थे, गोपाल भट्ट गोस्वामी ने बहुत सोचा कि मैं अपने भगवान को कैसे पहनाउ, तो भगवान रात को ही त्रिभंगी मुद्रा में खड़े हो गए, और उन्होंने उनको वस्त्र आभूषण पहनाये, राधा रमन मंदिर आज आप भी देख सकते हैं | उसमें तीनों संबंध अभिधेय प्रयोजन के भगवान के रूप हैं | इसी प्रकार पूरी के निकट साक्षी गोपाल का मंदिर है | पूरी के एक रानी थी और उनके पास बहुमूल्य मुक्ता था | वो सोचती थी इससे मैं भगवान की नथनी बनवाती अगर भगवान के नाक में छिद्र होता , भगवान उसे सपने में कहां देखो मेरे नाक में छेद है, इस प्रकार भगवान ने उन्हें भक्तों के लिए नाक में छिद्र करवा लिया | भगवान भक्तों की सेवा मूर्ति रूप में ग्रहण ही नहीं करते, बल्कि सेवा ग्रहण करके सुखी भी होते हैं | भगवान भी भक्तों की सेवा करते हैं | माधवेंद्र पुरी को गोविंद कुंड पर गोपाल मूर्ति ने दर्शन दिए, उन्हें दूध भी पिलाया, फिर बाद में उन्होंने सपने में कहा मुझे निकालो मैं यहां हूँ | इस प्रकार माधवेंद्र पुरी की कृपा से श्रीनाथ जी बाहर आए और उन्होंने उनके लिए मंदिर बनाया | बाद में सपने में फिर आए और कहा इतने दिनों में पहाड़ के नीचे था वहां बहुत गर्मी थी, मैं गर्मी से जल रहा हूँ मुझे जगन्नाथ पुरी का मलय चंदन लाकर लगाओ | वे गए और रास्ते में उड़ीसा में गोपीनाथ जी का मंदिर था वहां रुके और वहां की सेवा पद्धति देखें | और आपको पता है कि किस प्रकार की गोपीनाथ ने माधवेंद्र पुरी के लिए एक कटोरा खीर अपने पीछे छुपा लिया था | माधव दास बाबा जी बहुत ही सुंदर भक्तों से और उनको भक्तों ने अलग कर दिया था वह बहुत ही कमजोर हो गए थे, भगवान सिंह आकर कपड़े लंगोटी वगैरह देते थे और उनकी सफाई करते थे, एक बार उन्होंने भगवान का हाथ पकड़ लिया और कहा कि प्रभु सब कुछ आपके हाथ में हैं इस तरह से क्यों आप निकृष्ट कार्य करते हैं, मेरे जैसे तुच्छ जीव के लिए आप यह काम करते हैं आप तो मेरी बीमारी ही ठीक कर सकते हैं तो भगवान ने कहा कि मैं भक्तों की सेवा करके भक्तों को संभाल करके आनंदित होता हूँ | इस प्रकार कई तरह से मूर्तियों की सेवा होती है | 8 तरह की मूर्तियां कास्ठ से निर्मित, शीला से निर्मित, संगमरमर से बनी, धातु से बनी, मिट्टी से बनी, चंदन से बनी, बालू से बनी, चित्रपट, मनोमयी मन में भगवान की मूर्ति होती हैँ | शालिग्राम शिला तो स्वयं भगवान ही है | जहां शालिग्राम है वहां भगवान स्वयं है ही है | दीक्षित होते हैं तो उनके हृदय में प्रेम होता है वे भगवान को ज्यादा समझते हैं| इसलिए दीक्षित लोगों को भगवान की सेवा करनी ही चाहिए | परंतु घर में आप कभी भी शुरू कर सकते हैं | किसी गुरु के निर्देशन में विधि सीख लेनी चाहिए | जिनके पास संपत्ति है उन्हें बड़ा मंदिर बनाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आ सके और वैसे घर को भगवान का ही घर माना जाएगा भगवान सेंटर में रहेंगे और सारे कार्य उनके इर्द-गिर्द होते रहेंगे| कमाओ भगवान के लिए, घर परिवार चलाओ भगवान के लिए, बच्चे पैदा करना है भगवान के लिए, बाजार में शॉपिंग करना है भगवान के लिए | ऐसा सोचना चाहिए कि यह पत्नी बच्चा जो भगवान ने दिया है वह मेरे सुपुर्द किया है मुझे उनकी देखभाल करनी चाहिए | तो भगवान को हमेशा मंदिर में रखना ही चाहिए | जो व्यक्ति जितना खाता है उसी तरह उतनी क्वांटिटी में भगवान को खिलाना चाहिए | सनातन गोस्वामी ने कहा है कि लोक व्यवहार में अपने बंधु को हम वही खिलाते हैं जो उसे पसंद होता है | उसी प्रकार भगवान को जो भी निवेदन किया जाए प्रीति पूर्वक निवेदन करना चाहिए | patraṁ puṣpaṁ phalaṁ toyaṁyo me bhaktyā prayacchatitad ahaṁ bhakty-upahṛtamaśnāmi prayatātmanaḥ BG 9.26 भक्ति से लबालब भोग भगवान को अर्पण करना चाहिए, भगवान प्रेम के भूखे हैं | भगवान ने दुर्योधन के छप्पन भोग छप्पन क्या कई भोग छोड़कर विदुर जी के घर में आए | भगवान प्रीति के भूखे हैं द्रव्य के नहीं| जो कुछ दिया जाता है भगवान उसे प्रेम से खाते हैं | मूर्ति पूजा में किसी जाति वर्ण का विचार नहीं है| ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि सभी उसके अधिकारी हैं | कोई भी भगवान की सेवा अपने भाव में कर सकता है | मंदिरों में विशेष कर दो दीक्षित भक्त हैं उन्हें सेवा करने का अवसर दिया जाता है | भगवत दीक्षा के प्रभाव से शूद्र आदि भी शुद्ध हो जाते हैं | और विधि भगवान की पूजा कर सकते हैं| यह विचार गलत है कि इसमें इस परिवार में जन्म लिया है| भगवान के नाम स्मरण से शुद्धता आती है | कल उसे चेतना हमारे ह्रदय से निकल जाती है और कोई भी भगवान की पूजा का अधिकारी बन सकता है | इस प्रकार मैंने मंदिर के बारे में और क्यों विग्रह पूजा करनी चाहिए यह बताएं | प्रभुपाद जी ने भी कहा है कि अगर आपके पास पैसा है तो मंदिर बनवाओ बुक छपवा कर बाटो सब को भगवान की सेवा में लगाओ जप करवाओ यह करने से हम स्वयं भी पवित्र होंगे और सामने वाले को भी पवित्र कर देंगे| इस प्रकार हम उन्हें ऊंचा उठा सकते हैं | संसार की जो तकलीफ है वह इसीलिए हैं क्योंकि हम यह बातें नहीं समझ रहे हैं | मैं भी अमेरिका गया था 1971 में | इस आंदोलन से मैं जुड़ा 1972 में | दीक्षा मैंने 1977 में ली | मैं मेडिकल प्रैक्टिस करता था लेकिन भक्तों का संग, कई बार भक्तों को घर में बुलाना मंदिर जाना | पास ही में गुरुकुल था तो मैं भक्तों को कॉल करके उन्हें दवाइयां प्रिसक्रिप्शन देना करता था | प्रभुपाद की कृपा से मुझे उन भक्तों का संग प्राप्त हुआ | मैं आप सब से प्रार्थना करता हूँ कि यह जो सेंटर बन रहा है इसे अधिक से अधिक लोगों को जोड़कर उन्हें भगवान से जोड़ा जाए | लोग भक्त बने भक्त बन कर अपने जीवन को पवित्र करें और गांव गांव में जाकर के भक्ति को वितरित करें | जैसे महाप्रभु एक धोबी के पास आए तो धोबी को लगा कि इन्हे कुछ कपड़े धुलवाने हैं परंतु महाप्रभु ने कहा कि हरि नाम बोलो उससे हरे कृष्ण मंत्र जाप करवाया वह तो बिल्कुल पागल हो गया और उसकी पत्नी रोटी लेकर आई तो वह भी हरि नाम में उन्मत्त हो गई | प्रभुपाद मात्र 3 दिन के लिए रसिया में गए थे और आज रसिया में लाखों-करोड़ों भक्त हो गए हैं | मैं लोकनाथ महाराज से प्रार्थना करता हूं कि वह हमें प्रेरणा और आशीर्वाद दें ताकि हम गांव गांव में हरि नाम को फैला सकें और उनके पद चिन्हों पर चल सके | अगर वह आ सके तो हम उनके अनुग्रहित रहेंगे, उनका जैसा सरल है कम ही देखने को मिलता है, उनसे मैंने बहुत मार्गदर्शन लिया है|

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