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हमारे इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने वाले प्रतियोगियों की संख्या प्रतिदिन घट और बढ़ रही हैं, क्योंकि आप में से कुछ भक्त प्रतिदिन इसमें सम्मिलित होते हैं वहीं कुछ भक्त कभी कभी ही सम्मिलित होते हैं। अतः प्रतिदिन इसमें सम्मिलित होइये और स्थिर रहिये। प्रतिदिन एक ही स्थान पर और एक ही समय पर जप करना अच्छा रहता हैं। यदि आस पास का वातावरण प्रतिदिन नहीं बदले तो इससे ध्यानपूर्वक जप करने और साधना करने में सहायता मिलती हैं। मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मुझे निरंतर यात्रा में रहना पड़ता हैं। परन्तु आप में से अधिकतर भक्त या तो मंदिर में हैं या अपने घरों में , अतः आप इस जप सत्र के लिए वहीं रहे उसी स्थान पर , उसी समय पर और उन्ही जप करने वाले साधकों के साथ रहें। यह आसान का अंग हैं। आसान , प्राणायाम , प्रत्याहार ,ध्यान , धारणा .... आसान का अर्थ हैं परिस्थिति और आपके आसपास क्या हैं ? आपके साथ कौन हैं ? आप किस स्थान पर हैं ? स्थान , समय , तथा आप किस बिछौने पर बैठे हुए हैं ये सभी आसान के मुख्य भाग हैं। इसके विषय में हमने बहुत समय पहले चर्चा की थी।
हम समय - समय पर जो भी चर्चाएं करते हैं उन्हें भूलिएगा मत उनका स्मरण रहना चाहिए। ऐसा हो सकता हैं कि हम पुनः उसी बात को दोहरा नहीं सकते , परन्तु हम जिस विषय पर चर्चा करते हैं उसे आप अपने जीवन में लागू कर सकते हैं। आपको उन निर्देशों का स्मरण रहना चाहिए और उनके अनुसार जीवन यापन करना चाहिए। ये निर्देश आपके ध्यानपूर्वक जप करने में सहायक होंगे।
समय , स्थान और परिस्थितियां ये सभी आसान के अंग हैं। समय के अनुसार आज का दिन अत्यंत शुभ हैं। आज अद्वैत आचार्य का आविर्भाव दिवस हैं। अद्वैत आचार्य की जय ! वे पंचतत्त्व के एक सदस्य हैं। प्रत्येक माला शुरू करने से पहले हम पंचतत्त्व के सभी सदस्यों से प्रार्थना करते हैं।
श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द।
श्री अद्वैत आचर्य पंचतत्त्व में प्रमुख सदस्य हैं, अतः आज उनके आविर्भाव दिवस पर हम उनके चरणों में प्रार्थना करते हैं। अद्वैत आचार्य का जन्म श्री चैतन्य महाप्रभु के अवतरण से लगभग ५० वर्ष पहले हुआ था।
यह एक प्रकार से महाप्रभु के अवतरण से पहले एक दल को समीक्षा करने हेतु यहाँ भेजा गया अथवा उन्होंने पहले जन्म लिया और उड़ीसा , बंगाल और भारतभर में व्यवहारगत समीक्षा की। उन्होंने अवलोकन किया - " धर्मस्य ग्लानीर (भगवद गीता - ४.७)" धर्म की हानि हो रही थी और अधर्म अपना प्रभुत्त्व जमा रहा था। उन्होंने अनुभव किया कि अब उचित समय हैं जब भगवान अवतरित हो सकते हैं। " मैं अकेला इसे करने में समर्थ नहीं हूँ , मैं तो मात्र प्रभु हूँ परन्तु इस कार्य के लिए हमें महाप्रभु की आवश्यकता हैं, हमें महाविष्णु चाहिए , हमें " कृष्णस्तु भगवान स्वयं (श्रीमद भागवतम १.३.२८) चाहिए। वे शांतिपुर में गंगा के तट पर गंगाजल और तुलसी पत्र से अपने शालिग्राम शीला का अभिषेक करते हुए निरंतर प्रार्थना करते। वे ह्रदय की गहराइयों से प्रार्थना करते। वे प्रार्थना करते हुए कहते , " हे भगवान ! अब आपको प्रकट होना पड़ेगा। "
गोलोकम च परित्यज्य लोकानाम त्राण करन्त कलौ गौरांग रूपेण लीला लावण्य विग्रह (मार्कण्डेय पुराण )
भगवान स्वयं घोषणा करते हैं : कलयुग में , मैं गौलोक का त्याग करके , संसार के व्यक्तियों को बचाने के लिए , अत्यंत सुन्दर और चंचल भगवान गौरांग के रूप में अवतार लूँगा।
अतः स्वयं भगवान - श्री कृष्ण चैतन्य अपने धाम गौलोक का परित्याग करके वे अपने अंश इस जगत के सभी जीवों, अपने भक्तों को कष्टों से मुक्त करने के लिए इस धरती पर प्रकट हुए। वे इस जगत के सभी जीवों से अत्यंत प्रेम करते हैं। इसलिए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के अवतरण का मुख्य कारण अद्वैत आचार्य और उनकी प्रार्थनाएं थी। वे भगवान से अभिन्न हैं अतः उनका नाम " अ - द्वैत " अर्थात जो दो नहीं हैं , हैं , और एक आचार्य , शिक्षक, अनुदेशक , तथा प्रचारक की भाँती उन्होंने इस हरिनाम की महिमा का प्रचार किया अतः उन्हें आचार्य कहा जाता हैं। इस प्रकार उनका पूरा नाम हैं - अद्वैत आचार्य। वे चैतन्य महाप्रभु के अंतरंग समूह के सदस्यों में से एक थे। पंचतत्त्व में प्रत्येक सदस्य एक तत्त्व हैं , श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं एक तत्त्व हैं , नित्यानंद दूसरे तत्त्व हैं , अद्वैत आचार्य भी तत्त्व हैं , इसी प्रकार गदाधर पंडित और श्रीवास पंडित भी तत्त्व हैं इनके आलावा गौर भक्त वृन्द भी एक तत्त्व हैं। गौर भक्त - अर्थात महाप्रभु के अनेक पार्षद , संगो पांगास्त्र पार्षदम (श्रीमद भागवतम ११.५.३२). अतः पार्षद अंग और उपंग हैं। वे भी पंचतत्त्व के अंग हैं। इसलिए हम गौर भक्त वृन्द कहते हैं। अद्वैत आचार्य पंचतत्त्व के अग्रणी सदस्य हैं।
अद्वैत आचार्य की प्रार्थनाओं के प्रत्युत्तर में महाप्रभु हरिनाम के साथ इस जगत में अवतरित हुए। गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन (चैतन्य चरितामृत आदि लीला) महाप्रभु इस जगत में खाली हाथ नहीं पधारे। यह महाप्रभु का आविर्भाव दिवस था , सभी भक्त नवजात निमाई को आशीर्वाद देने हेतु कुछ उपहार साथ लेकर जा रहे थे। विशेष रूप से अद्वैत आचार्य की भार्या सीता ठकुरानी बहुत से उपहार लेकर जगन्नाथ मिश्र के घर गई। हमें इस बात का मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए। जब महाप्रभु मायापुर में अवतरित हुए तब हरिदास ठाकुर और अद्वैत आचार्य शांतिपुर में थे। वे दोनों एक ही उम्र के थे। वे दोनों अत्यंत उल्लसित हुए और नृत्य करने लगे। हरिदास ठाकुर भी सर्वज्ञ हैं। वे समझ गए कि निमाई ने अवतार ले लिया हैं और उत्साहमयी अवस्था में नृत्य करने लगे। वे दोनों परमानन्द में नृत्य कर रहे थे। अन्य सभी व्यक्ति उन दोनों के नृत्य के पीछे के कारण को नहीं जानकार आश्चर्यचकित हो रहे थे। इस प्रकार जो कोई भी उस दिन मायापुर आ रहा था वह उपहार ला रहा था , परन्तु महाप्रभु स्वयं इस सम्पूर्ण जगत के लिए एक उपहार लेकर आए थे। वह उपहार हैं - " हरिनाम "
गोलोकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन।
उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में यही कार्य किया। कई वर्षों तक वे सभी को इस हरिनाम का उपहार देते रहे। उन्होंने स्वयं भी इसे स्वीकार किया अर्थात वे स्वयं भी हरिनाम का जप और कीर्तन करते थे। अपने निज धाम गमन करने पूर्व ६ वर्षों तक उन्होंने इस हरिनाम का प्रचार और प्रसार किया। उन्होंने एक भविष्यवाणी भी की , कि विश्व के प्रत्येक नगर , और गाँव में हरिनाम का प्रचार होगा। वे यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनका यह उपहार केवल भारतीयों को ही लाभ न दे वरन इससे सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हो। महाप्रभु केवल भारतियों के ही भगवान नहीं हैं अपितु वे सम्पूर्ण विश्व के भगवान हैं। जय जगन्नाथ ! वे रूसी , यूक्रेनी , मॉरिशियस के भक्तों और भारतीयों सभी के भगवान हैं। वे महावदान्याय प्रभु अर्थात अत्यंत दयालु भगवान चाहते थे कि इस हरिनाम का अत्यंत व्यापक रूप से सम्पूर्ण विश्व में प्रचार - प्रसार हो। तत्पश्चात संकीर्तन आंदोलन के सेनापती भक्त श्रील प्रभुपाद ने सुनिश्चित किया कि महाप्रभु की इस इच्छा पालन हो और यह हरिनाम सम्पूर्ण विश्व में फैले। उन्होंने इस अंतर्राष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) की स्थापना की , जिसके माध्यम से आज सम्पूर्ण विश्व में हरिनाम का प्रचार हो रहा हैं। अभी हम देख सकते हैं की उनके शिष्य , शिष्यों के शिष्य और कई भक्त प्रत्येक स्थान पर हरिनाम का जप और कीर्तन कर रहे हैं। हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं जिसके पिता श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु और अद्वैत आचार्य हैं। वे दोनों हमारे परम पिता हैं। चूँकि आज अद्वैत आचार्य का आविर्भाव दिवस हैं अतः हमें आज विशेष रूप से उनसे प्रार्थना करनी चाहिए , उनकी कृपा के लिए याचना करनी चाहिए , तथा इस हरिनाम के प्रचार के लिए उन्होंने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का अवतरण करवाया अतः हमें उनका ह्रदय से आभारी होना चाहिए। श्री अद्वैत आचार्य आविर्भाव तिथि महोत्सव की - जय ! निताई गौर प्रेमानन्दे हरी हरी बोल......
आज दोपहर में मैं रुक्मिणी महारानी के जन्म स्थान कौडिन्यपुर जा रहा हूँ। वहां पर भी हमारा इस्कॉन मंदिर हैं आप सभी का इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के लिए तथा हमें अपना संग प्रदान करने के लिए धन्यवाद।
हरे कृष्ण……

English

Our number of attendees keeps varying as some are steady , some are not. So be steady, be fixed up. It is good to chant every day at the same place and the same time preferably. That helps to concentrate, to meditate if the surrounding doesn't change every day. I can't manage that, because I keep traveling. But most of you have your residence or temple. So be there for the chanting session. Same time , same place, preferably with the same chanters around you. This is a part of the asana. Asana, Pranayam , Pratyahaar, Dhyana, Dharana. Asana is the circumstances and surrounding - Who else is there with you? In which place are you? Location? Time? Seat? Asana is an important factor. We have talked about this long time back.
Do not forget , what we say from time to time. We may not repeat. Whatever we have said applies. You remember and follow those guidelines. They are supposed to be favourable for attentive chanting.
Time, place , circumstances are part of asana. Time factor wise today is very, very auspicious day. Today is Appearance day of Advaita Acarya. Advaita Acarya ki Jai! He is the member of Pancatattva. At the beginning of each round we offer prayers to Pancatattva members.
sri krsna caitanya prabhu nityananda sri advaita srivasadi gaur bhakta vrinda. Sri Advaitacarya is a principal member. So today we offer our prayers unto him on His Appearance day. Advaitacarya appeared some 50 years, prior to appearance of Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu. It was kind of an advanced party study or he appears first and does a feasibility study in India,Bengal Orissa etc. His observation was - dharmasya glanir (BG.4.7) There was a decline in religious principals or practises and there was a domination of irreligion. He felt that this is the time that the Lord should make his appearance. “I cannot handle it alone. We need Mahaprabhu. I am just Prabhu. We need Mahavishnu.” We need a krsna stu bhagwan swayam (S.B.1.3.28) He had begged, offered prayers, Ganga jal and Tulasi to his Saligram Sila on the banks of Ganga in Santipur. His prayers were heart felt. He was praying, “Oh Lord, You will have to appear for this fallen souls.” And then Lord responded. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu responded.
golokam ca parityajya lokanam trana-karanat kalau gauranga-rupena lila-lavanya-vigrahah (Markandeya-Purana)
the Supreme of Godhead declares: In the Kali-Yuga, I will leave Goloka and, to save the people of the world. I will become the handsome and playful Lord Gauranga.
So svayam Bhagawan - Lord Sri Krsna Caitanya abandoned Goloka and He appeared in this world in order to give relief to people who are his part and parcel, His children, His devotees. He loves them so much. So Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu's appearance was caused by Advaitacarya. He is non-different from the Lord, so is called ''A-dvaita”. As acarya he was propagating Krsna consciousness ,as a teacher, instructor, propagator of the holy name. He is also called as Acarya, so the name Advaita Acarya. He was in the core team of Caitanya Mahaprabhu. Pancatattva. In it each one is a Tattva. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu is a tattva himself. Nityanand is another tattva, Advaitacarya is a tattva, Srivas Pandit is a tattva, Gadadhar Pandit is a tattva. Gaur bhakta Vrinda is also tattva. Gaur bhaktas - so many other associates of Mahaprabhu- sango pangastra parsadam (SB 11.5.32) So parsadam are anga and upanga. They are also a part of Pancatattva. So we say ‘ Gaur Bhakta vrinda. Advaiitacarya is also leading member of Pancatattva.
Responding to the call of Advaiitacarya, Mahaprabhu appeared with the holy name. Golokera prema dhan harinama sankirtana. ( CC. Adi Lila) Mahaprabhu didn't appear empty handed. It was Mahaprabhu’s birthday. Devotees went to bless little Nimai with gifts. Specially Sita Thakurani, wife of Advaiitacarya had gone with lots of gifts. We should take note of this. When Mahaprabhu appeared in Mayapur , Srila Haridas Thakur & Advaiitacarya were in Santipur. They both were of similar age. They both became jubilant and started dancing. Haridas Thakur is also sarvajna . They understood that Nimai has appeared and became ecstatic. Both of them were dancing in ecstasy. Everyone was wondering about the reason behind their dancing. So those who were arriving in Mayapur on that day, were bringing gifts. But Mahaprabhu himself had a gift for whole world. That gift is the holy name.
Golokera prema dhan harinama sankirtana.
That is what he did throughout his life. For years he was giving the gift of harinama. He did so himself. For 6 years He was propagating the holy name prior to his departure returning to his own abode. He made a prediction that in every town, every village of the world the holy name will be chanted. He wanted to ensure that the gift is not only available in India. Mahaprabhu is not only Indians’ God. He is a God of the whole existence. Jai Jagannatha! He is Lord of Russians, Ukrainians and of people from Mauritius and Indians. That most merciful Lord - mahavadanyaya wanted to make sure this gift reaches far and wide. Then commander in chief of the sankirtana army Srila Prabhupada made sure that Caitanya Mahaprabhu's will is executed. He founded this International Society for Krishna Consciousness which is spreading the holy name. See disciples, devotees are chanting everywhere. We are one family with one father - Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu and Advaiitacarya. They are our Supreme father. Today is Advaiitacarya's Appearance day. We have to remember Him and pray to Him and express our deep gratitude for bringing Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu in this world to give the gift of holy name to the world. Sri “Advaiitacarya avirbhava tithi mahotsav” ki Jayi! Nitai Gaur Premande Hari Hari bol!
Today afternoon I will go to Kaudinyapur, birthplace of Rukmini. We have ISKCON over there. Thank you all for joining, thank you for your association.
Hare Krishna!

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